जलवायु में आते बदलावों का खामियाजा भारत को अलग-अलग रूपों में भुगतना पड़ रहा है। कहीं बाढ़, कहीं सूखा, तो कहीं तूफान ऐसी चरम मौसमी घटनाओं का आना आज बेहद आम हो गया है। इतना ही नहीं इसका सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। डेलावेयर विश्वविद्यालय के जलवायु केंद्र ने अपनी नई रिपोर्ट ‘लास एंड डैमेज टुडे: हाउ क्लाइमेट चेंज इस इम्पैक्टिंग आउटपुट एंड कैपिटल’ में खुलासा किया है, कि 2022 में जलवायु परिवर्तन के चलते भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को आठ फीसद का नुकसान झेलना पड़ा है।
देखा जाए तो नुकसान का यह आंकड़ा देश की जीडीपी में 2022 के दौरान हुई औसत वृद्धि से भी एक फीसद अधिक है। गौरतलब है कि 2022 में भारत के जीडीपी में सात फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया था।
ऐसे में यदि भारत पर जलवायु परिवर्तन की मार न पड़ रही होती तो उसके जीडीपी में आठ फीसद का इजाफा हो सकता था। इतना ही नहीं रपट में यह भी खुलासा किया गया है कि 2022 तक भारत की पूंजी संपदा में 7.9 फीसद की गिरावट आई है, जिसका मुख्य कारण मानव-निर्मित पूंजी जैसे बुनियादी ढांचे आदि पर जलवायु परिवर्तन की पड़ती मार है। हालांकि यदि देश की रिन्यूएबल कैपिटल पर पड़ते प्रभाव को देखें तो वो करीब-करीब तटस्थ है, क्योंकि बढ़ते तापमान का जो सीधा प्रभाव पड़ रहा है उसकी भरपाई जीडीपी के विकास में आती गिरावट से हो रही है। रपट के अनुसार पिछले तीन दशकों में रियो कन्वेंशन के बाद से, पूंजी और संसाधनों पर पड़ते प्रभावों की गणना करते हुए, इसके कुल आर्थिक नुकसान को देखें तो वो 296.1 लाख करोड़ रुपए (355,500 करोड़ डालर) आंका गया है।
रपट के अनुसार ऐसा नहीं है कि अर्थव्यवस्था को होने वाला यह नुकसान केवल भारत के जीडीपी तक ही सीमित है। यह वैश्विक अर्थव्यवस्था को पहले ही बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है। हालांकि इसका सबसे ज्यादा खामियाजा विकासशील देशों को भुगतना पड़ रहा है।
बता दें कि अपनी इस रपट में अर्थशास्त्री जेम्स राइजिंग ने जलवायु परिवर्तन के कारण मौजूदा समय में होने वाले व्यापक आर्थिक नुकसान पर प्रकाश डाला है। यह रपट 58 आर्थिक माडलों की मदद से तैयार की गई है। साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण वर्तमान जीडीपी और पूंजीगत हानि के सर्वोत्तम अनुमान का आंकलन करने के लिए इसमें मशीन लर्निंग जैसे नई तकनीकों की भी मदद ली गई है।
रपट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर यदि जलवायु परिवर्तन के चलते वैश्विक जीडीपी में आई गिरावट को देखें तो वो करीब 6.3 फीसद दर्ज की गई है। बता दें कि जीडीपी को हुए इस नुकसान में लोगों की कुल संपत्ति को हुए नुकसान को भी ध्यान में रखा गया है। वहीं इसके बिना 2022 में वैश्विक स्तर पर अर्जित जीडीपी में हुए नुकसान से जुड़े आंकड़ों को देखें तो वो 1.8 फीसद दर्ज किया गया है, जो करीब 125 लाख करोड़ रुपए (डेढ़ लाख करोड़ डालर) के बराबर है। इन दोनों आंकड़ों के बीच जो यह अंतर है वो स्पष्ट करता है कि इसके प्रभाव हर जगह समान नहीं हैं।
इसका मतलब है कि वो कमजोर देशों और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों को अधिक प्रभावित कर रहे हैं, जहां आबादी ज्यादा, लेकिन पैसा कम है।