उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बुधवार को चिन्यालीसौड़ अस्पताल में भर्ती श्रमिकों से मिलकर उनका हालचाल जाना और उन्हें एक—एक लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि का चेक सौंपा। सभी श्रमिक स्वस्थ हैं और उन्हें आगे की जांच के लिए एम्स ऋषिकेश ले जाया गया है।
उत्तरकाशी की सिल्कयारा सुरंग में फंसे मजदूर मंगलवार की रात जैसे ही बाहर निकले देशवासियों ने राहत की सांस ली। सुरंग से निकले कुछ श्रमिकों के चेहरों पर मुस्कान थी तो कुछ के चेहरे 17 दिन की परेशानियों के बाद थके हुए दिख रहे थे। मजदूरों ने टनल के भीतर बिताए गए समय को याद करते हुए अपने अनुभव बांटे। वहीं, क्षेत्र में डेरा डाले चिंतित श्रमिकों के रिश्तेदार भावुक थे। बचाव अभियान की सफलता से छाई खुशियों के बीच बचाए गए मजदूरों से जुड़ी एक बुरी खबर सामने आ रही है।
सुरंग से बचाए गए श्रमिकों में से झारखंड के रहने वाले एक मजदूर के पिता की अपने बेटे को वापस आता देखने से पहले ही मौत हो गयी। 70 वर्षीय बासेत मुर्मू सांस रोककर अपने 29 वर्षीय बेटे भक्तू मुर्मू को उत्तरकाशी की सिल्कयारा सुरंग से बाहर आते देखने का इंतजार कर रहे थे। पर उनका इंतजार खत्म होने से पहले ही उनकी सांसें खत्म हो गईं। बासेत के बेटे के साथ-साथ अन्य फंसे हुए श्रमिकों को मंगलवार को बचा लिया गया, पर दुर्भाग्य से बासेत ने उसी दिन अंतिम सांस ली। जानकारी के मुताबिक, झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के बहदा गांव निवासी बासेत की मंगलवार को ही दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गयी।
बासेत के दामाद ठाकर हांसदा ने बुधवार को एचटी को बताया, “12 नवंबर को सुरंग में फंसने के बाद से वह भक्तू के बारे में चिंतित थे। मंगलवार की सुबह वह लगभग 8 बजे अचानक खाट से गिर गए और दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। जिसके बाद मैंने अन्य रिश्तेदारों को सूचित किया।” मंगलवार की सुबह जब भक्तू के पिता बासेत की मृत्यु हुई तो उनकी मां पिटी मुर्मू, उनकी बहन और बहनोई घर में थे।
परिवार के सदस्यों के अनुसार, सुरंग में फंसने की घटना के बारे में पता चलने के बाद से बासेत उदास थे। भक्तू के सुरंग से बाहर आने की कोई सकारात्मक जानकारी नहीं मिलने से पिता दिन-ब-दिन उदास होते जा रहे थे। इससे दिल का दौरा पड़ा।”