यूपी के बाराबंकी में 28 साल पहले हुए एक मर्डर केस में आरोपी के 27 साल तक जेल में रहने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने उसे बरी करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि घटना के वक्त वह नाबालिग था और जुवेनाइल के दौरान वह साढ़े चार साल तक जेल में गुजार चुका था। ऐसे में उसे अब जेल में रहने की जरूरत नहीं है। हालांकि इसी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उसे दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसकी वजह से वह अब भी जेल में है।
घटना पहली दिसंबर 1995 की है। उस दिन खेत में पानी डालने के विवाद में आरोपी के हमले से पीड़ित की मौत हो गई थी। उस वक्त जुवेनाइल जस्टिस एक्ट-1986 के तहत 16 साल तक की उम्र को जुवेनाइल माना जाता था। हालांकि बाद में वर्ष 2000 में इस कानून को बदलकर इसमें दो वर्ष का इजाफा कर दिया गया और 18 की उम्र तक को जुवेनाइल माना जाने लगा। तब तक आरोपी साढ़े चार साल तक की सजा जेल में गुजार चुका था।
मामले में 1999 तक ट्रायल चला और उसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा। कोर्ट ने दो साल पहले 2021 में आरोपी की उम्र को लेकर निचली अदालत से रिपोर्ट मांगी। कोर्ट में पेश मेडिकल रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया और उसको विश्वसनीय नहीं माना। कोर्ट ने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा-94 के प्रावधान के तहत दसवीं कक्षा के सर्टिफिकेट में जो जन्म तिथि है, वही स्वीकार होगी। जिसके पास यह सर्टिफिकेट नहीं है तो फिर म्युनिसिपल कॉरपोरेशन या पंचायत की ओर से जारी सर्टिफिकेट को माना जाएगा। लंबी सुनवाई के बाद मामले में अब सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को रिहा करने का आदेश दिया
उधर, दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक सफाई कर्मचारी की विधवा को 30 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है जिसकी सीवर की सफाई के दौरान मौत हो गई थी। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने महिला की उस याचिका को स्वीकार कर लिया जिसमें कहा गया था कि उच्चतम न्यायालय के हालिया आदेश के अनुसार उसे अधिक मुआवजा दिया जाए।
शीर्ष अदालत ने सीवर की सफाई करने के दौरान जान गंवाने वाले कर्मियों के आश्रितों को दिए जाने वाले 10 लाख रुपये के मुआवज़े को बढ़ा कर 30 लाख रुपये कर दिया था। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने कहा कि शीर्ष अदालत का फैसला वर्तमान मामले पर भी लागू होगा और राज्य सरकार से कहा कि वह दो महीने में महिला को बढ़ा हुआ मुआवज़ा दे। इसी के साथ अदालत ने महिला की याचिका का निपटान कर दिया। याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया था कि उसे 10 लाख रुपये का मुआवज़ा मिल गया है, लेकिन शीर्ष अदालत के फैसले के मद्देनज़र मुआवज़े को बढ़ाकर 30 लाख रुपये किया जाए। उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला अक्टूबर में दिया था।