सोनम लववंशी
आधुनिक समाज में ‘फास्ट या जंक फूड’ हम सभी के जीवन का अहम हिस्सा बन गया है। सुविधाओं और भोग-विलास के बोझ तले हम इतना दब गए हैं कि इस तरह के खानपान पर समाज की निर्भरता बढ़ती जा रही है। कहते हैं कि जैसा खाओ अन्न, वैसा होगा मन। दरअसल, भोजन की प्रकृति बदलने के साथ मनुष्य की प्रवृत्ति में भी बदलाव आता जा रहा है।
खाने की ये चीजें देखने में आकर्षक और स्वादिष्ट लगती हैं, लेकिन ये वास्तव में स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक होते हैं। इस तरह के भोजन नियमित खाने पर व्यक्ति के भीतर कई बीमारियां अपना घर बना लेती हैं। बच्चों के स्वास्थ्य पर इसका बहुत बुरा असर पड़ता है। हृदय संबंधी बीमारियों से लेकर कैंसर, हड्डियों से जुड़ी बीमारी और मोटापे की समस्या का वाहक ‘जंक फूड’ हैं।
हाल ही में स्तनपान के महत्त्व को दर्शाने के मद्देजनर ‘ब्रेस्टफीडिंग प्रमोशन नेटवर्क आफ इंडिया’ (बीपीएनआइ) और पोषण नीति पर काम करने वाले अन्य दो संगठनों ने संयुक्त रूप से एक रपट प्रकाशित की है, जिसका शीर्षक है ‘दी जंक पुश’। इस रपट में कहा गया है कि भारत मोटापे और मधुमेह जैसी गंभीर बीमारियों के कारण विकट स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है।
ऐसे में कहने को तो मानव स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में तेजी से विकास हो रहा है, लेकिन हमारे खानपान का रंग-ढंग भी उतनी ही तेजी से बदलता जा रहा है। इसका दुष्परिणाम हमारे स्वास्थ्य पर देखा जा सकता है। चाकलेट, बिस्कुट, ठंडे पेय और भुजिया जैसे डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ में निर्धारित मानक से कई गुना ज्यादा चीनी और चर्बी की मात्रा ने मानव शरीर को बीमारियों का घर बना दिया है।
इसी साल किए गए ‘आइसीएमआर’ के अध्ययन से भी स्पष्ट पता चलता है कि दस करोड़ लोग मधुमेह का दंश झेल रहे हैं। इसका मतलब यह है कि हर चार में से एक व्यक्ति मधुमेह और मोटापे जैसी बीमारी से ग्रसित है। पोषण पर निगरानी रखने के जरिए जुटाए गए आंकड़ों में यह बात पता चली है कि पांच साल से कम उम्र के तेंतालीस लाख बच्चे मोटापे का शिकार हो चुके हैं और यह उन कुल बच्चों के सिर्फ छह फीसद का आंकड़ा है। इससे समझा जा सकता है कि स्थिति कितनी विकट हो चली है।
दूसरी तरफ विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्लूएचओ इंडिया के अगस्त 2023 के अध्ययन की मानें तो भारत में अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की खुदरा बिक्री 2011 और 2021 के बीच 13.37 फीसद की सालाना वार्षिक दर से वृद्धि कर रही है। एक अन्य रपट के मुताबिक, मोटापे की समस्या 2035 तक दुनिया की आधे से अधिक, यानी 51 फीसद आबादी को प्रभावित करेगी।
गौरतलब है कि यह रपट ‘बाडी मास सूचकांक’ के आधार पर बनाई जाती है। अगर समय रहते मोटापे से बचाव और उपचार के उपाय नहीं हुए तो आने वाले वर्षों में दुनिया के लगभग दो अरब लोग मोटापे का शिकार हो जाएंगे। मोटापा सिर्फ एक व्यक्ति को ही नुकसान नहीं पहुंचाता, बल्कि इससे देश की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है। अगर चार में से एक व्यक्ति मोटापे से पीड़ित होगा तो सचमुच यह विकट परिस्थितियों को जन्म देगा।
ऐसे में ‘जंक फूड’ का कारोबार भले तेजी के साथ बढ़ रहा है, लेकिन यह हमारे वर्तमान और भविष्य दोनों को प्रभावित कर रहा है। यह खानपान कहीं न कहीं कुपोषण में भी अहम योगदान देता है, क्योंकि यूनिसेफ की एक रपट के मुताबिक, देश के भीतर 80 फीसद से अधिक बच्चे ‘छिपी हुई भूख’ से पीड़ित हैं। यहां ‘छिपी हुई भूख’ से आशय है कि बच्चे जंक फूड के नाम पर अनाप-शनाप खाते रहते हैं, जिससे उन्हें शरीर के विकास के लिए जरूरी पोषक तत्त्व नहीं मिलते और वे कुपोषण का शिकार हो जाते हैं।
इस तरह के खानपान के व्यापक दुष्प्रभावों को देखते हुए सन 2015 में दिल्ली हाई कोर्ट ने भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण यानी एफएसएसएआइ को स्कूलों और उनके आसपास अधिक फैट यानी चर्बी, नमक और चीनी वाले खाद्य पदार्थों की बिक्री को रोकने के दिशानिर्देश को लागू करने का निर्देश दिया था, लेकिन अब तक इस आदेश का ठीक से अनुपालन नहीं हो पाया है।
खाद्य एवं जांच एजेंसी के अनुसार देश के भीतर 2019 तक डिब्बाबंद खाना खाने वालों की संख्या तकरीबन पच्चीस फीसद थी, जो 2022 आते-आते चालीस फीसद को पार कर चुकी है। वहीं इस तरह का खाना खाने वालों के मामले में हमारा देश तेरहवें स्थान पर है। इस सूची में अमेरिका और ब्रिटेन शीर्ष पर हैं। ‘जंक फूड’ का कारोबार किस तरह तेजी से फल-फूल रहा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2021 तक वैश्विक स्तर पर इसका बाजार 5,775 करोड़ रुपए था, जो 2030 तक 7,900 करोड़ रुपए पहुंचने वाला है।
पोषण पर काम करने वाले गैर सरकारी संगठन ‘न्यूट्रिशन एडवोकेसी इन पब्लिक इंटरेस्ट’ के अध्ययन की मानें तो तेंतालीस डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ में से एक तिहाई में चीनी, चर्बी और सोडियम की मात्रा तय मानक से अधिक है। यह दिल की बीमारी के लिए घातक है। ‘जंक फूड’ का सेवन बच्चों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।
लुभावने विज्ञापनों का मायाजाल बच्चों को इस तरह के खाने की तरफ आकर्षित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। समय-समय पर तमाम चिकित्सक खाने में नमक और चीनी की मात्रा कम लेने की बात कहते हैं, लेकिन यह बात कम ही लोग जानते हैं कि खाने में किस मात्रा में इन पदार्थों का सेवन करना सही होगा। तमाम चेतावनियों के बावजूद ‘जंक फूड’ में तय मानकों से अधिक चीनी और नमक मौजूद रहता है, जो शरीर में चर्बी की मात्रा को कई गुणा बढ़ाने का काम करता है।
मोटापा न केवल हमारे शरीर को बेडौल बनाता है, बल्कि यह हमारे शरीर को बीमार भी करता है। इस वजह से स्लिप एप्निया, दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। इससे मौत की संभावना बढ़ जाती है और हमारी उम्र दस साल तक कम हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रपट में कहा गया कि दुनियाभर में हर साल करीब पचास लाख लोग मोटापे के चलते अपनी जान गंवा रहे हैं। ‘ग्लोबल न्यूट्रिशन 2020’ का आंकड़ा बताता है कि बयासी करोड़ लोगों को भरपेट भोजन तक नसीब नहीं हो पाता।
इस अनुपात से देखे तो नौ में से एक व्यक्ति भुखमरी की मार झेल रहा है। फिर भी देश में मोटापा बढ़ रहा है। लेकिन ‘जंक फूड’ के बढ़ते चलन में हम यह भूल जाते हैं कि हमारे खाद्य पदार्थ शरीर में चर्बी बढ़ाने वाले तो नहीं हैं। बदलती दिनचर्या में हम स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह होते जा रहे हैं। दिखावे के दौर में हमने अपनी दिनचर्या को ही बदल दिया है।
सैकड़ों सालों की सभ्यता और संस्कृति के इस दौर में खाने का महत्त्व सिर्फ हमारे शरीर को पोषण देने भर का नहीं रहा है, बल्कि यह हमारी पारंपरिक व्यवस्था से भी जुड़ा हुआ है। खाना बनाने के पारंपरिक तरीकों के पीछे भी सालों का ज्ञान-विज्ञान छिपा हुआ है। हर क्षेत्र का मौसम और संस्कृति अनुकूल खानपान के तरीकों के पीछे हमारे पूर्वजों का सदियों का ज्ञान और गहन अध्ययन रहा है।
लेकिन आधुनिकता के इस दौर में खाने का स्वरूप पूरी तरह बदल गया है। पाश्चात्य संस्कृति का असर हमारे खाने के साथ-साथ हमारी दिनचर्या में भी देखने को मिलता है। जीवनशैली के नाम पर हम अपनी सेहत से खिलवाड़ करने को उतावले हुए जा रहे हैं। इसका परिणाम भी गंभीर बीमारियों के रूप में सामने आने लगा है। दिल की बीमारी, रक्तचाप और मधुमेह आम बात हो चली है।