तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन अज़रबैजान के दौरे पर हैं। जहां वह अजरबैजान के राष्ट्रपति से मुलाकात करेंगे। यह बैठक अजरबैजान द्वारा नागोर्नो-काराबाख इलाके पर कब्जा करने के कुछ ही दिनों बाद तुर्की के अजरबैजान को समर्थन का एक प्रदर्शन है। इस दौरान चर्चा अजरबैजान के इस कब्जे के बाद बड़ी तादाद में नागोर्नो-काराबाख को छोड़कर भाग रहे अर्मेनियाई लोगों की हो रही है जिन्हें यहां अपनी सुरक्षा को लेकर खतरा दिखाई दे रहा है।
अर्मेनियाई सरकार ने रविवार देर रात कहा कि कुल 1,050 लोग नागोर्नो-काराबाख से अर्मेनिया आए हैं। नागोर्नो-काराबाख में बड़ी तादाद में जातीय अर्मेनियाई लोग रहते हैं। नागोर्नो-काराबाख ऐसे क्षेत्र में मौजूद है जो सदियों से फारसियों, तुर्कों, रूसियों, ओटोमन्स और सोवियतों के प्रभुत्व में रहा है। 1917 में रूसी साम्राज्य के पतन के बाद अजरबैजान और आर्मेनिया दोनों ने इस पर दावा किया था और इसे लेकर एक लंबी लड़ाई दोनों के बीच चली।
अर्मेनिया की ओर से कहा गया है कि वह अजरबैजान की सैन्य जीत के बाद अर्मेनियाई लोगों को अपने मुल्क में शरण देने के लिए तैयार हैं। प्रधान मंत्री निकोल पशिन्यान ने रविवार को कहा कि उन्हें उम्मीद है कि दक्षिण काकेशस के क्षेत्र के लगभग 120,000 नागरिक आर्मेनिया बस जाएंगे क्योंकि वे अजरबैजान के हिस्से में नहीं रहना चाहते हैं। उन्होंने कहा, “संभावना बढ़ रही है कि नागोर्नो-काराबाख के अर्मेनियाई लोग अपनी मातृभूमि से निष्कासन को ही एकमात्र रास्ता मानेंगे।” आर्मेनिया के पीएम ने आगे कहा कि वह नागोर्नो-काराबाख के भाइयों और बहनों का प्यार से स्वागत करेंगे।
अर्मेनियाई नेता ने मॉस्को के साथ मतभेद की ओर भी इशारा करते हुए कहा कि रूस के नेतृत्व वाला सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीएसटीओ) देश की रक्षा के लिए पर्याप्त नहीं था।
अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने गुरुवार को जीत की घोषणा करते हुए कहा कि यह पूरी तरह से हमारे नियंत्रण में है और एक स्वतंत्र नागोर्नो-काराबाख का विचार ज़िंदा है।
उन्होंने क्षेत्र में रहने वाले अर्मेनियाई लोगों के अधिकारों और सुरक्षा की गारंटी देने का वादा किया और कहा कि वह हमारे बीच रह सकते हैं। नागोर्नो-काराबाख एक ऐसे क्षेत्र में स्थित है जो सदियों से फारसियों, तुर्कों, रूसियों, ओटोमन्स और सोवियतों के प्रभुत्व में रहा है। 1917 में रूसी साम्राज्य के पतन के बाद अज़रबैजान और आर्मेनिया दोनों ने इस पर दावा किया था और इसे लेकर एक लंबी लड़ाई दोनों के बीच चली। अजरबैजान की ओर से कहा गया है कि वह अधिकारों की गारंटी देगा और क्षेत्र को एकीकृत करेगा।
आर्मीनिया-अज़रबैजान के बीच पिछले हफ्ते तक जारी रहे यद्ध में कई जानें जा चुकी हैं। जिस मुद्दे पर लड़ाई है वो नागोर्नो-काराबाख़ क्षेत्र से जुड़ी है, यह इलाका अजरबैजान का हिस्सा है लेकिन यहां रहने वाले लोग आर्मीनियाई ईसाई हैं। अजरबैजान में बहूसंख्यक मुसलमान है और तुर्की अजरबैजान के साथ खड़ा रहा है। आर्मीनिया का दावा है कि तुर्की ने अजरबैजान को सैन्य सहायता भी दी है। अब जब अजरबैजान ने इस लड़ाई में जीत हासिल की है तो तुर्की के राष्ट्रपति भी वहां पहुंच रहे हैं और जीत में शामिल होने का पूरा संकेत दे रहे हैं।
तुर्की और अजरबैजान के बीच संबंध हमेशा मजबूत रहे हैं।अजरबैजान के पूर्व राष्ट्रपति हेदर अलीयेव अक्सर दोनों को “एक राष्ट्र, दो राज्य” के रूप में वर्णित करते थे। तुर्की 4 जून, 1918 (बाटम की संधि) पर अज़रबैजान की स्वतंत्रता को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था, इससे इन दोनों देशों के बीच के मजबूत संबंध को समझा जा सकता है।