कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जब से भारत जोड़ो यात्रा की है, उनका सियासी सफर कुछ अलग अंदाज में आगे बढ़ता दिखा है। किसानों के साथ किसान बनने वाले भी राहुल हैं, ट्रक ड्राइवरों से मुलाकात के दौरान ड्राइवर की भूमिका निभाने वाले भी राहुल हैं और रेलवे स्टेशन कुलियों से बातचीत के दौरान खुद कुली बनने वाले भी राहुल ही हैं। ये अंदाज, ये सियासत, काफी कुछ बता रही है। इसके पीछे की मंशा साफ समझी जा सकती है, ऐसा नहीं है कि बिना किसी रणनीति के कांग्रेस नेता समाज के इन वर्गों से यूं मुलाकात कर रहे हैं। मौसम चुनावी है, ऐसे में हर दांव में सियासत की पूरी छाप भी दिखाई पड़ रही है।
बात सबसे पहले राहुल गांधी के कुली वाले अवतार की करनी चाहिए। गुरुवार को अचानक से कांग्रेस नेता दिल्ली के आनंद विहार रेलवे स्टेशन पहुंच गए। वहां पर उन्होंने सिर्फ कुलियों से मुलाकात नहीं की, बल्कि उनकी तरफ से खुद भी एक कुली की भूमिका निभाई गई। उन्होंने बकायदा कुली वाले लाल कपड़े पहने, सिर पर सामान उठाया और कुछ देर तक दूसरे कुली साथियों के साथ चलते भी रहे। इसके बाद राहुल गांधी उन कुलियों के बीच ही बैठ गए, उनसे लंबी बातचीत की, उनकी चुनौतियों के बारे में जाना और वहां से चल दिए।
बड़ी बात ये है कि बाद में जब उन कुलियों से उस मुलाकात के बारे में पूछा गया तो सभी ने एक सुर में कहा कि जो गरीबों के बीच रहेगा, वहीं गरीबों के दर्द को समझ पाएगा। राहुल गांधी के लिए अगर कोई ये बात कह रहा है, ये अपने आप में कांग्रेस नेता की पहली बड़ी जीत मानी जाएगी। यहां ये समझना जरूरी हो जाता है कि 2014 और फिर 2019 का जो लोकसभा चुनाव रहा था, उसमें बीजेपी ने राहुल के खिलाफ नेरेटिव सेट किया था- ये लड़ाई कामदार बनाम नामदार की है। अमित शाह से लेकर पीएम नरेंद्र मोदी तक ने राहुल को ‘शहजादा’ कहकर संबोधित किया था।
उस समय आम जनता के बीच में भी ये नेरेटिव सेट हो गया था कि राहुल गांधी को बिना मेहनत के पद दे दिया गया है, वे तो एक ‘अमीर’ नेता हैं जिनका सरनेम गांधी है और उसी वजह से उन्हें सारी सुविधाएं मिल रही हैं। लंबे समय तक ये नेरेटिव राहुल से चिपका रहा और कांग्रेस को इसका पॉलिटिकल लॉस समय-समय पर मिला। लेकिन राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने सबसे पहले उस नेरेटिव पर कड़ा प्रहार किया। जिन राहुल के लिए ‘एसी रूम में बैठने वाले नेता’ जैसे बयानों का इस्तेमाल हुआ, उन्होंने पैदल ही हजारों किलोमीटर की यात्रा कर डाली। किसानों से लेकर व्यापारियों तक, नौजवानों से लेकर महिलाओं तक, बुजुर्गों से लेकर दलित-आदिवासी तक, राहुल ने सभी से मुलाकात की।
वो वायरल वीडियो भी सभी जहन में ताजा है जिसमें राहुल गांधी ने पंजाब के ट्रक डाइवरों से मुलाकात की थी। दिल्ली से अंबाला तक उन्होंने एक ट्रक में सफर किया, अपनी अत्याधुनिक और VIP गाड़ी की कुर्बानी दी। उस यात्रा के दौरान राहुल ने खुद भी ट्रक चलाया, काफी देर तक उन ड्राइवरों से बात की, उनकी समस्यों को जानने का प्रयास किया। अब ये सब मायने रखता है, राजनीति में नेरेटिव और परसेप्शन वो कमाल कर सकता है जो कई मौकों पर जातीय समीकरण भी नहीं कर पाते हैं।
जब 2014 के बाद से बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अप्रत्याशित सफलता का विश्लेषण किया जाता है, उसमें उनकी उपलब्धियां तो मायने रखती ही हैं, उससे ज्यादा वो नेरेटिव जरूरी हो जाता है जिसके दम पर कई बार मुश्किल में फंसी बीजेपी की डगर भी बीच मझधार से निकल जाती है। अब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी वो फंडा समझ लिया है, इसी वजह से वे सिर्फ रैलियां या फिर सोशल मीडिया के जरिए जनता से संवाद स्थापित नहीं कर रहे हैं। उनकी तरफ से तो सीधे जमीन पर जा लोगों से मुलाकात की जा रही है।
यहां भी ये लोग कहने को किसी भी जाति, किसी भी धर्म के हो सकते हैं। ये ओबीसी हो सकते हैं, अति पिछड़े हो सकते हैं, शहरी हो सकते हैं, ग्रामीण रह सकते हैं। लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि ये सभी लोग ‘आम आदमी’ हैं। ये देश का वो वर्ग है जो रोज मेहनत कर पैसा कमा रहा है, अपने परिवार का पेट पाल रहा है। राजनीति में जब अंतिम पंक्ति तक सभी को फायदा पहुंचाने की बात होती है, तो वो अंतिम पंक्ति ये आम लोग ही हैं। राहुल ने अपनी कुछ मुलाकातों के जरिए इन्हें ही साधने का काम किया है।
दिखाने का प्रयास हुआ है कि राहुल गांधी आम लोगों के बीच में कितने सहज हैं, वे किस तरह से उनकी मुश्किलों को समझते हैं, वे किस तरह से आगे बढ़कर उनकी बात को सुनना चाहते हैं। वे सिर्फ अपने मन की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि दूसरों की मन की बात को सुन रहे हैं। कांग्रेस के लिए चुनावी मौसम में ये वाला नेरेटिव काफी मददगार साबित हो सकता है। जो छवि 2014 के बाद से बन गई है, उसे तोड़ने में समय जरूर लग सकता है, लेकिन उस दिशा में राहुल के कदम तेज गति से बढ़ चले हैं।
वैसे भी इस समय जब बीजेपी राष्ट्रवाद से लेकर हिंदुत्व तक की पिच पर जोरदार बैटिंग कर रही है, उस बीच कांग्रेस को अपनी खुद की सियासी पिच तैयार करने की जरूरत पड़ने वाली है। कॉमन मैन वाली ये पिच देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए मुफीद साबित हो सकती है क्योंकि ये वोटबैंक किसी जाति-धर्म पर आधारित नहीं है, ये तो बस उसे वोट करने वाला है जो उनके हक की बात करेगा। इन्हें ना राष्ट्रवाद के मुद्दों से ज्यादा फर्क पड़ता है ना ही ये मंदिर-मस्जिद वाले विवाद में फंसते हैं। ऐसे में बिना बीजेपी के नेरेटिव में फंसे अगर इस कॉमन मैन को अपने पाले में कर लिया गया तो कांग्रेस के अच्छे दिन फिर आ सकते हैं।
अब सही दिशा में राहुल गांधी ने कदम जरूर बढ़ा दिए हैं, लेकिन उनकी ये वाली राह भी उतनी आसान नहीं रहने वाली है। इसका कारण है वो सियासी कॉम्टीशन जो उन्हें इस डिपार्टमेंट में भी पीएम नरेंद्र मोदी से ही मिलने वाला है। असल में जिस रणनीति पर राहुल इस समय चल रहे हैं, पीएम मोदी ने तो उसी के सहारे अपनी राजनीतिक यात्रा को संवारा है। जनता से सीधा कनेक्ट ही उनकी वो ताकत रही जिसके दम पर तीन बार गुजरात के मुख्यमंत्री तो वहीं दो बार देश के पीएम के रूप में काम कर चुके हैं।
आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने तो अपनी पार्टी का नाम ही आम आदमी पार्टी रखा हुआ है, ऐसे में उनकी सियासी नींव भी इस कॉमन मैन के सपोर्ट पर ही खड़ी हुई है। ऐसे में इस यात्रा पर चलने में राहुल गांधी लेट जरूर हो गए हैं, लेकिन अगर अब लगातार वे इसी अंदाज में इस कॉमन मैन को रिझाते रहे, उनके बीच जाकर बीजेपी द्वारा बनाए गए उनके तमाम परसेप्शन को तोड़ते रहे, आगामी लोकसभा चुनाव में इंडिया बनाम एनडीए की एक दिलचस्प लड़ाई देखने को मिल सकती है।