राज्यसभा से भी महिला आरक्षण बिल पारित हो गया है। सर्वसहमति से इसे संसद ने पास करवा दिया है। इस बिल के पक्ष में कुल 215 वोट पड़े हैं, खिलाफ में किसी ने भी अपना मतदान नहीं किया है। इसी वजह से महिला आरक्षण बिल सिर्फ पास नहीं हुआ है, बल्कि ये ऐतिहासिक बहुमत से तमाम सांसदों द्वारा पारित करवाया गया है। इससे पहले लोकसभा में भी प्रचंड बहुमत के साथ इस बिल को पास करवा दिया गया था, उस समय में पक्ष में 454 वोट पड़े थे और सिर्फ दो AIMIM सांसदों ने उसका विरोध किया था।
इस बिल के तहत संसद और विधानसभा में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण देने की बात हुई। सरल शब्दों में लोकसभा की जो 543 सीटें हैं, वहां पर 181 महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगी। इसके अलावा देश में एसी-एसटी के लिए जो 131 सीटें आरक्षित रहती हैं, वहां भी 43 सीटें महिलाओं के लिए रहने वाली हैं। यहां ये समझना जरूरी है कि महिला आरक्षण बिल किसी एक सरकार का प्रयास नहीं है, बल्कि कई सरकारों ने करीब 27 सालों तक इसे लागू करने की कोशिश की थी।
साल 1989 में सबसे पहले प्रधानमंत्री राजीव गांधी महिला आरक्षण बिल लेकर आए थे। उस समय ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रावधान था। ये बिल लोकसभा में पास हुआ, लेकिन राज्यसभा में फेल हो गया था। इसके बाद 1992-93 में नरसिम्हा राव की सरकार आई, फिर वहीं ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय चुनाव में महिलाओं के आरक्षण की बात हुई। इस बार ये बिल लोकसभा और राज्यसभा में पास हो गया। लेकिन उस समय सिर्फ LOCAL BODIES में महिला आरक्षण की बात हुई थी।
इसके बाद देवगोड़ा की सरकार में सबसे पहले संसद में महिलाओं के आरक्षण की मांग उठी। उस मांग को बिल का रूप दिया गया, लेकिन वो लोकसभा से पास नहीं हो पाया। उसे JOINT PARLIAMENTRY COMMITTE के पास भेज दिया गया। उसके बाद अटल बिहारी वाजपेपी की सरकार आई और कुल 4 बार ये बिल पेश किया गया, लेकिन हर बार फेल। फिर यूपीए का कार्यकाल आया और राज्यसभा से बिल को पारित करवा दिया गया, लेकिन लोकसभा में गाड़ी फंस गई।
लेकिन अब मोदी सरकार के कार्यकाल में महिला आरक्षण बिल दोनों लोकसभा और राज्यसभा में पास हो गया है। बड़ी बात ये है कि पारित होने के बाद भी अभी 2029 तक ये कानून नहीं बन पाएगा, इसका कारण ये है कि पहले परिसीमन की प्रक्रिया को पूरा किया जाएगा।