बीते दिनों अफ्रीका महाद्वीप से भारत लाए गए चीतों में से कुछ की मौत के मामले को लेकर काफी हंगामा हुआ था। लेकिन अब इस पर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के सदस्य सचिव एसपी यादव का बेहद महत्त्वपूर्ण बयान सामने आया है। जिसमें उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में हुई तीन चीतों की मौत उन्हें पहनाए गए रेडियो कालर की वजह से नहीं बल्कि चीतों की मोटी चमड़ी में हुए गंभीर संक्रमण की वजह से हुई थी।
इसे देखते हुए अब भारत की योजना अफ्रीका से ऐसे चीतों का आयात करने की है, जिनकी चमड़ी मोटी न हो। उन्होंने कहा कि परियोजना के दूसरे वर्ष में हमारा पूरा ध्यान चीतों के प्रजनन पर दिया जाएगा। इसके अलावा चीतों की अगली खेप की बात करें तो वह अगले साल 2024 में देश पहुंचेगी। एसपी यादव ने यह जानकारी शनिवार को दी।
उन्होंने बताया कि दक्षिण अफ्रीका ने चीतों के पुनरुत्पादन में विशेषज्ञता प्राप्त करने से पहले के 20 वर्षों में 9 असफल प्रयासों और 200 से अधिक चीतों की मौत को देखा है। अफ्रीका से कूनो पहुंचे 20 में से 6 चीतों की अब तक मौत हो चुकी है और अब वहां 14 चीते ही जीवित हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 17 सितंबर को नामीबिया से लाए गए चीतों के एक समूह को कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़कर भारत में चीता परियोजना की शुरुआत की थी।
मध्य प्रदेश के दो अभयारण्यों में रहेंगे चीते
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण प्रमुख ने कहा कि चीता कार्रवाई योजना के तहत कूनो राष्ट्रीय उद्यान में केवल 20 चीतों को रखने की क्षमता है। इसलिए अब दक्षिण अफ्रीका से आने वाली चीतों को मध्य प्रदेश के दो अन्य अभयारण्यों में रखने की योजना है। इसमें गांधीसागर और नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं।
यादव ने कहा कि गांधीसागर में चीतों को रखने की तैयारियां जोरशोर से चल रही हैं। मुझे उम्मीद है कि नवंबर और दिसंबर के अंत तक यह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। जिसके बाद हमें इस संबंध में रपट मिलेगी और फिर हम साइट पर जाएंगे। वहां तैयारियों का व्यापक रूप से मूल्यांकन किया जाएगा और फिर दिसंबर के बाद चीतों की दूसरी खेप को स्वदेश लाने पर निर्णय लिया जाएगा।
इसमें चीतों के चयन में बेहद सावधानी बरती जाएगी और हम ऐसे चीतों के आयात को प्राथमिकता देंगे। जिनमें या तो शीतकालीन कोट विकसित नहीं होते हैं या पतले विकसित होते हैं। परियोजना के पहले वर्ष की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक जंगल में चीतों के बीच देखा गया सफल प्राकृतिक शिकार का व्यवहार है। इस 12 महीने की अवधि में हमने कई मील के पत्थर हासिल किए हैं।
चीतों के शरीर पर उभरी मोटी ‘फर’ बनी चुनौती
यादव ने देश में चीतों की मौत के मामले को विस्तृत रूप से समझाते हुए कहा कि उनकी देखभाल में आई मुख्य चुनौती चीतों द्वारा अपने शरीर पर अफ्रीका महाद्वीप के सर्दी के मौसम की अवधि (जून से सितंबर तक) के हिसाब से मोटी फर विकसित करना भी था। जिसकी अफ्रीकी विशेषज्ञों को भी उम्मीद नहीं थी।
यह फर भी उनकी मौत की एक वजह बनी है। मोटी फर, तेज तापमान, अधिक उमस के कारण चीतों को खारिश होती है और वो उसे दूर करने के लिए पेड़ के तनों या जमीन पर अपनी गर्दन को रगड़ते हैं। इससे उनकी खाल फट जाती है और उस पर मक्खियां आकर बैठती हैं, अंडे देती है। जिससे संक्रमण फैलता है और पशुओं की मौत हो जाती है।