पिछले कुछ दिनों से अखबारों, टीवी न्यूज और सोशल मीडिया पर डीपफेक वीडियो चर्चा का विषय बन गया है। डीपफेक तकनीक के शिकार होने के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। इस तकनीक के गलत इस्तेमाल से जहां आम लोग प्रभावित हो रहे हैं, वहीं हाल के दिनों में मशहूर हस्तियों के भी कई डीपफेक वीडियो प्रसारित हुए हैं। इस कड़ी में फिल्म अभिनेत्री रश्मिका मंदाना, काजोल, कटरीना कैफ का नाम सामने आया है। लेकिन ये डीपफेक के मामले केवल भारत तक सीमित हो ऐसा नहीं है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा से लेकर फेसबुक के प्रमुख मार्क जुकरबर्ग भी इससे अछूते नहीं रहे हैं।
डीपफेक दरअसल, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) का इस्तेमाल करता है जिसके जरिए किसी की भी फर्जी तस्वीर बनाई जाती है। इसमें किसी भी तस्वीर,आडियो या वीडियो को फर्जी दिखाने के लिए एआइ के एक प्रकार डीप लर्निंग का इस्तेमाल होता है और इसलिए इसे डीपफेक कहा जाता है। इसमे से ज्यादातर पोर्नाग्राफिक या अश्लील होते हैं। एम्सटर्डम स्थित साइबर सिक्योरिटी कंपनी डीपट्रेस के मुताबिक 2017 के आखिर में इसकी शुरुआत के बाद डीपफेक का तकनीकी स्तर और इसके सामाजिक प्रभाव में तेजी से विकास हुआ। डीपट्रेस की साल 2019 में छपी इस रपट के मुताबिक कुल 14,678 डीपफेक वीडियो आनलाइन थे. इनमें से 96 फीसद वीडियो अश्लील सामग्री थी और चार फीसद ऐसे थे जिनमें ये सामग्री नहीं थी।
ये तकनीक केवल वीडियो में ही उपयोग में नहीं लाई जाती, बल्कि फोटो को भी फर्जी दिखलाया जाता है और ये पता लगाना इतना मुश्किल होता है कि असल नहीं बल्कि फर्जी है। वहीं इस तकनीक के जरिए आडियो का भी डीपफेक किया जाता है। बड़ी हस्तियों की आवाज बदलने के लिए वायस स्किन या वायस क्लोन्स का इस्तेमाल किया जाता है। साइबर सिक्योरिटी और एआइ विशेषज्ञ पवन दुग्गल कहते हैं कि डीपफेक कंप्यूटर, इलेक्ट्रानिक फारमेट और एआइ का मिश्रण है। इसे बनाने के लिए किसी तरह के प्रशिक्षण की जरूरत नहीं होती। इसे मोबाइल फोन के जरिए भी बनाया जा सकता है जो एप और टूल के जरिए बनाया जा सकते हैं।
पवन दुग्गल बताते हैं कि इसका ज्यादातर इस्तेमाल साइबर अपराधी कर रहे हैं। वे बताते हैं कि ये लोगों के अश्लील वीडियो बनाते हैं और फिर ब्लैक मेल करके फिरौती के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। किसी व्यक्ति की छवि को खराब करने के लिए सोशल मीडिया पर डाल देते हैं और इसका उपयोग खासकर सेलीब्रिटीज, राजनीतिज्ञों और बड़ी हस्तियों को नुकसान करने के लिए किया जा रहा है। लोग ऐसे वीडियो इसलिए भी बनाते हैं क्योंकि ऐसे वीडियो ज्यादा लोग देखते हैं और उनके व्यू बढ़ते हैं और इससे उनका फायदा होता है।
वहीं, पवन दुग्गल ये अशंका जताते हुए कहा हैं कि डीपफेक का इस्तेमाल चुनावों को भी प्रभावित कर सकता है। उनके अनुसार, राजनेताओं के डीपफेक वीडियो बनाए जा सकते हैं, इससे न केवल उनकी छवि को धूमिल किया जा सकता है लेकिन पार्टी की जीत की संभवनाओं पर भी असर पड़ सकता है।
डीपफेक की तकनीकी से बचने के लिए समाज को जागरूक भी करना होगा। सबके पास मोबाइल होने और ऑनलाइन के जमाने में यहां तक पहुंच बच्चों की भी हो गई है। इससे समाज में एक नया तरह का अपराध पनपना शुरू हो जाएगा।
आंखों को देखकर: अगर कोई वीडियो डीपफेक है तो उसमें लगा चेहरा पलक नहीं झपक पाएगा।
होठों को देखकर: डीपफेक वीडियो में होठों का हिलना और बातचीत में सामंजस्य नहीं दिखाई देगा।
बाल और दांत के जरिए: डीपफेकमें बाल के स्टाइल से जुड़े बदलाव को दिखाना मुश्किल होता है और दांत को देखकर भी पहचाना जा सकता है कि वीडियो फर्जी है या फिर असली।
भारत के आइटी एक्ट 2000 की धारा 66 ई में डीपफेक से जुड़े आपराधिक मामलों के लिए सजा का प्रावधान किया गया है। इसमें किसी व्यक्ति की तस्वीर को खींचना, प्रकाशित और प्रसारित करना, निजता के उल्लंघन में आता है और अगर कोई व्यक्ति ऐसा करता हुआ पाया जाता है तो इस अधिनियम के तहत तीन साल तक की सजा या दो लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है।