विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि भारत सिंधु जल संधि के प्रावधानों के अनुसार मुद्दों के समाधान का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है। जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रतले पनबिजली परियोजनाओं पर नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच विवाद का समाधान करने के उद्देश्य से वियना में तटस्थ विशेषज्ञ कार्यवाही की दो दिवसीय बैठक में भारत ने भाग लिया।
मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “जल संसाधन विभाग के सचिव के नेतृत्व में भारत के एक प्रतिनिधिमंडल ने 20 और 21 सितंबर को वियना में स्थायी मध्यस्थता अदालत में किशनगंगा और रतले मामले में तटस्थ विशेषज्ञ कार्यवाही की बैठक में भाग लिया।” बयान में बताया गया है कि वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे केसी भारत के प्रमुख वकील के रूप में वहां उपस्थित रहे। इसका अलावा भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधि भी बैठक में उपस्थित थे।
इस साल जुलाई में मध्यस्थता अदालत ने व्यवस्था दी थी कि जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रतले पनबिजली परियोजनाओं के मुद्दे पर विचार करने के लिए वह सक्षम है। परियोजना के निर्माण कार्य का पाकिस्तान ने कड़ा विरोध किया है।
पाकिस्तान सिंधु जल संधि के उल्लंघन में कम जल प्रवाह, पर्यावरणीय प्रभाव तथा विभिन्न संधि व्याख्याओं के बारे में चिंताओं का हवाला देते हुए जल विद्युत परियोजनाओं पर आपत्ति जताता रहा है। वर्ष 2016 में पाकिस्तान ने तटस्थ विशेषज्ञ का अपना अनुरोध वापस लेते हुए इसकी जगह मध्यस्थता अदालत का प्रस्ताव रखा। हालांकि भारत ने तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति पर जोर दिया।
भारत सिंधु जल प्रावधानों के उल्लंघन का हवाला देते हुए मध्यस्थता अदालत के संविधान का विरोध करता रहा है। इसके अलावा भारत ने मध्यस्थता अदालत के अधिकार क्षेत्र और क्षमता पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि इसका गठन संधि के अनुसार नहीं किया गया था। भारत ने एकल विवाद समाधान प्रक्रिया की आवश्यकता पर बल देते हुए मध्यस्थों की नियुक्ति नहीं की है।