महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों के आदिवासी छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त करने और उज्जवल भविष्य का सपना देखने के लिए सरकारी आवासीय छात्रावासों पर भरोसा करते हैं। इसमें उन्हें डीबीटी (Direct Benefit Transfer) योजना से आर्थिक मदद मिलती है। जनजातीय कल्याण विभाग के 2018 के संकल्प के नियमों के आधार पर डीबीटी राशि तिमाही के अंतिम महीने के दूसरे हफ्ते में छात्रों को दी जानी चाहिए।
जून से मई तक के शैक्षणिक वर्ष को चार साइकिल में डिवाइड किया गया है और छात्रों को अगली तिमाही शुरू होने से पहले प्रत्येक किस्त हासिल करनी होती है। दिसंबर से फरवरी तक शुरू होने वाले तीसरी तिमाही की किश्त नवंबर के दूसरे सप्ताह तक दी जानी थी। लेकिन एक बार फिर इसमें देरी हुई है।
विरोध के बावजूद डीबीटी में एक महीने की देरी छात्रों के लिए मुसीबत बन रही है। इससे ग्रामीण छात्रों को संघर्ष करना पड़ रहा है और उन्हें छात्रावास छोड़ने और राशि प्राप्त होने तक घर वापस जाने के लिए मजबूर होना पड़ा है। डीबीटी योजना लाभार्थियों के लिंक किए गए बैंक खातों में सीधे दी जाती है। केंद्र सरकार ने इसे 2013 में शुरू किया था। तीन महीने के लिए कुल 12,900 रुपये छात्रों को दी जाती है।
इस राशि को दो भागों में डिवाइड किया गया है। खाने के लिए 10,500 रुपये और एक्स्ट्रा खर्च के लिए 2,400 रुपये हर तिमाही पर दिए जाते हैं। इसके अलावा इंजीनियरिंग और मेडिकल छात्रों को स्टेशनरी के लिए 6,000 रुपये की एक निश्चित राशि दी जाती है, जबकि अन्य पाठ्यक्रमों के छात्रों को 4,500 रुपये दिए जाते हैं। यह राशि वर्ष में एक बार वितरित की जाती है।
कोरेगांव पार्क आदिवासी छात्रावास में रहने वाले विशाल मेश्राम ने कहा कि अक्सर डीबीटी में देरी दूसरों पर असर नहीं डालती है, लेकिन मात्र एक महीने की देरी उनके और उनके समुदाय के लिए एक अनिश्चित स्थिति पैदा करती है। विशाल गढ़चिरौली के परधान जनजाति से आते हैं और फर्ग्यूसन कॉलेज (एफसी) में अर्थशास्त्र (बीए) के तीसरे वर्ष की पढ़ाई कर रहे हैं। ।
विशाल अपने नाना के साथ रहते हैं। उन्होंने बताया कि उनका परिवार उनकी पढ़ाई और महीने का खर्च वहन नहीं कर सकता। इसके लिए वह अक्सर अपनी किस्मत आजमाने के लिए भाषण और नृत्य प्रतियोगिताओं में अवसर तलाशते हैं। कुछ प्रतियोगिताओं में जीत हासिल करने से उनके खर्चों में मदद मिलती है।