देश भर के लिए तैयार हो रही सौर ऊर्जा की परियोजनाओं में बार-बार अंडगा लग रहा है। यही वजह है कि केंद्र सरकार तय लक्ष्य के आधे तक भी नहीं पहुंच पाई है। इस पर सौर पार्क को लेकर बनी संसद की विशेष समिति की एक रिपोर्ट हाल ही में लोकसभा में सभापति संजय जायसवाल ने पेश की। तय योजना के मुताबिक कुल 24 गीगावाट क्षमता के 29 संयंत्र लगाए जाने थे, लेकिन केवल 9.3 गीगावाट की योजनाओं पर ही काम हुआ है।
इस स्थिति से निपटने के लिए समिति ने केंद्र सरकार को एक विशेष तंत्र स्थापित करने की सिफारिश की है। समिति का दावा है कि देश में सौर ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। तकनीकी अड़चनों को दूर करके देश में बड़ा सौर ऊर्जा उत्पादन संयंत्र का तंत्र तैयार किया जा सकता है। यह जीवाश्म ईंधन के उपयोग के दुष्प्रभावों में एक बड़ा फैसला साबित हो सकता है।
इस रिपोर्ट में राजस्थान के सौर पार्क का हवाला दिया गया है और बताया गया है कि इनके आसपास की लाइनों की वजह से पक्षियों के लिए प्राकृतिक आवास की संख्या में कमी दर्ज की गई है। पक्षियों के लिए ऐसे आवासों की संख्या सौ से भी कम रह गई है। पक्षियों को बचाने के लिए संसदीय समिति ने केंद्र सरकार से सिफारिश की है कि वह वायरलेस ट्रांसमिशन सिस्टम पर काम करे।
रिपोर्ट में बताया गया है कि राजस्थान के कई सोलर पार्क जैसे फलौदी- पोकरण सोलर पार्क (750 मेगावाट) और नोख सोलर पार्क (950 मेगावाट) के संयंत्र में कई चुनौतियां सामने आई हैं। यहां राजसी पक्षी विलुप्त होने के कगार पर हैं। इसके लिए सबसे अधिक खतरनाक बिजली लाइनों का नेटवर्क साबित हो रहा है।
इसके अतिरिक्त 19 अप्रैल 2021 के एक आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने भी एमके रंजीत सिंह और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य के मामले में एक आदेश पारित किया है। इसके मुताबिक भी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआइबी) के लिए प्राथमिक स्तर पर आवास के रूप में पहचाने गए क्षेत्रों में खुले में ऊपर से जा रहे बिजली के तारों को भूमिगत करने का आदेश दिया गया है ताकि इन विलुप्त होती प्रजातियों को बचाया जा सके।
सौर ऊर्जा के लिए केंद्र सकार द्वारा केंद्रीय वित्त सहायता (सीएफए) जारी की जाती है। जांच रिपोर्ट में सामने आया है कि सोलर पार्क के लिए 4050 करोड़ रुपए की राशि का अनुमान लगाया गया था, लेकिन इसमें से केवल 1803.79 करोड़ रुपए की राशि का ही वितरण किया गया है। समिति का मानना है कि सोलर पार्क तैयार करने में कम राशि का आबंटन राज्यों के लिए संयंत्र तैयार करने की प्रमुख बाधाओं में से एक रहा है।
सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन की योजनाएं राज्य स्तरीय विनियामक आयोग द्वारा बिजली दरें निर्धारित नहीं होने से लटकी हैं। इसके अतिरिक्त गुजरात में धोलेरा सोलर पार्क (एक हजार मेगावाट) और आंध्र प्रदेश में कडप्पा सोलर पार्क (एक हजार मेगावाट) जैसी योजनाएं मुकदमेबाजी के कारण फंसी हैं। हालांकि मंत्रालय का दावा है कि इन योजनाओं को लागू करने के लिए अधिकारियों के स्तर पर कई स्तर की बैठकें हुई हैं। इसके बाद भी इन योजनाओं को जमीन पर लागू नहीं किया जा सका है।
समिति ने इस बात पर भी चिंता जाहिर की है कि कई सौर परियोजनाओं को अंतिम रूप देने में काफी देरी का सामना करना पड़ता है क्योंकि ये वन क्षेत्र के दायरे में आती हैं। इस स्थिति में पन्ना टाइगर रिजर्व के अंदर स्थिति बरेठी सोलर पार्क (630 मेगवाट) और छतरपुर सोलर पार्क (950 मेगावाट) जैसी योजनाएं शामिल हैं। इन योजनाओं को लागू करने में देरी हुई है।
समिति ने सिफारिश की है कि भविष्य में ऐसी योजनाओं में कोई तकनीकी बाधा सामने नहीं आए, इसके लिए केंद्र सरकार को सभी एजंसियों के तालमेल के लिए एक विशेष समिति बनाना चाहिए। इससे तय समय सीमा के अंदर योजनाओं को पूरी किया जा सकेगा। इसके अतिरिक्त समिति ने यह भी सिफारिश कि है कि सोलर पार्क में सबसे बड़ी चुनौती इसके रखरखाव की है। इस मुद्दे को हल करने के लिए भी सरकार को अत्याधिक स्वचालित समाधानों पर विचार करना चाहिए।