तेरह दिसंबर का दिन और ऐसा ‘एंटी क्लाइमेक्स’! सुबह 22 बरस पहले तेरह दिसंबर के दिन संसद पर हुए आतंकी हमले के शहीदों को श्रद्धांजलियां और उसके कुछ देर बाद ही संसद पर ‘नया हमला’!एकदम शैतानी साजिश! गजब की योजना और गजब का समय कि संसद भवन की तीन स्तरीय सुरक्षा की आंखों में धूल झोंक कर ‘अपने एजंडे’ को आगे बढ़ाया गया। सर्वत्र एक सवाल- इसके पीछे कौन?
संसद का शून्यकाल और हंगामे के बाद की खामोशी। उसके बाद एक सांसद महोदय के वक्तव्य के बीच दो युवाओं का दर्शक दीर्घा से हाल में किसी खिलाड़ी की तरह कूद पड़ना और नारे लगाते आगे बढ़ना। इनमें से एक युवा का सांसदों की खाली सीटों-मेजों को कूदते फांदते आगे बढ़ना! उपस्थित सांसदों का पहले चौंकना, फिर सजग होकर उसे घेरना। इसी बीच, उस युवा का अपने जूते से धुएं का एक ‘कैन’ निकाल कर फेंकना। धुआं फैलने के बाद सांसदों का उसको धर दबोचना और पीटना और फिर सुरक्षाकर्मियों के हवाले कर देना। कुछ मिनट के ये दृश्य चैनलों पर बार-बार दोहराए जाते रहे।
सीधे प्रसारण में एंकर व रिपोर्टर हमलावरों के नाम ले- लेकर बताते रहे कि दो अंदर कूदे, दो बाहर नारे लगाते दिखे। संसद के बाहर एक युवती महिला पुलिस की गिरफ्त में ‘तानाशाही बंद करो’ के नारे लगाती दिखी। संसद के कैमरों ने कमाल किया। कैमरों ने युवाओं के कूदने-फांदने को कैद किया, जो चैनलों पर बार-बार दिखा।विपक्ष ने संसद की सुरक्षा में चूक में पर सवाल उठाए कि इनको संसद के अंदर आने के ‘पास’ किसने दिए? वे जूते में बम भी ला सकते थे। गृहमंत्री जवाब दें!
सुरक्षा की असफलता साफ थी। सरकार की किरकिरी होनी ही थी। विपक्षी प्रवक्ता ताना देने लगे कि देश की रक्षा के लिए गाल बजाने वाले संसद को सुरक्षित नहीं रख सकते, गृहमंत्री संसद में आकर बयान दें।विपक्ष के कई प्रवक्ता आरोप लगाते रहे कि हमलावरों को ‘इंट्री पास’ देने वाले कर्नाटक से भाजपा सांसद ही इसके लिए जिम्मेदार है। उनको तुरंत निलंबित किया जाए। एक दक्षिणी प्रवक्ता ने इस हमले की तुलना हिटलर द्वारा जर्मन संसद को जलाने की योजना से कर दी, जिसे सुनकर एक अंग्रेजी एंकर सिर धुनता रहा।
विपक्षी प्रवक्ताओं के आक्षेप एक जैसे रहे। वे कहते कि भाजपा के सांसद ने पास दिया है। इससे साफ है कि ये सत्ता से मिले हुए हैं और इस हमले के जरिए सरकार मूल मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाना चाहती है। कुछ बहसों में इन हमलावरों के कुछ ‘हमदर्द’ और ‘पैरोकार’ भी निकल आए। एक कहिन कि ये भटके हुए बेरोजगार हैं। दूसरे कहिन कि बेरोजगारों की आवाज संसद तक पहुंच ही गई। तीसरा कहता रहा और कह कह कर हंसता रहा कि ‘आइपीसी’ में केस करते, पुलिस केस करते, इन पर ‘यूएपीए’ जैसे आतंकवाद विरोधी कानून के अंतर्गत केस क्यों किया गया? क्या ये आतंकवादी हैं? ये तो सिर्फ सरकार का ध्यान खींचने के लिए ऐसा कर रहे थे।
कुछ ‘हमदर्द’ पहले यह कहकर ‘चिंता’ जताते कि कल को ये इसी तरह जूते में छिपाकर कोई बम भी ला सकते थे और सांसदों की जान भी जा सकती थी। फिर कहने लगते कि ये तो मजाक सा कर रहे थे। धुआं छोड़कर और नारे लगाकर ये सत्ता का ध्यान ही तो खींच रहे थे। इनको आतंकवादी क्यों कहा जा रहा है? एक कहता रहा कि ऐसा करके आप इनको ‘हिंदू आतंकवादी’ की श्रेणी में डाल रहे हो, जबकि कहते हो कि हिंदू आतंकवादी नहीं होते। अर्थात इन पर आतंकवादी धारा न लगाओ।
फिर एक विपक्षी ने सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की कि अगर ये मुसलमान होते तो देखते ये क्या करते हैं। बहरहाल देर शाम की बहसों में सभी के बारे में नई सूचनाएं आ चुकी थीं, जिनको कुछ चैनलों ने बताया। एक एंकर ने बताया कि इनका मास्टर माइंड विपक्ष के इन- इन नेताओं के साथ दिखता रहा है। वह सोशल मीडिया पर लिखता रहा है कि कुछ न कुछ बड़ा करना है।
सत्ता को हिलाना है। और वह युवती तो ‘आंदोलनजीवी’ है- किसान आंदोलन में सक्रिय रही है। फिर एक के बारे में बताया कि उसके यहां भगतसिंह और चे ग्वेवारा के चित्र मिले हैं। डायरी में क्रांतिकारी कविताएं हैं।एक अंग्रेजी एंकर ने इनको सीधे ‘आंदोलनजीवी’, ‘आतंकवादी’, ‘अर्बन नक्सल’ कहा और सख्त से सख्त सजा देने की मांग की। साथ ही, सरकार से सुरक्षा व्यवस्था को चाक – चौबंद करने की मांग की!
इसी बीच, यूपी हाइकोर्ट ने मथुरा के ईदगाह परिसर का सर्वें कराने की प्रार्थना को मंजूरी दे दी। इसके आगे की बहस में एक और मोरचा खुलता दिखा! बहरहाल, जैसे ही पुलिस हमले के ‘मास्टर मांइड’ को दिल्ली में पेशी के लिए ले जाने लगी, चैनलों के कैमरे उसके पीछे लग लिए। सवाल अटका है कि इस रंजिश और साजिश के पीछे कौन?