अमित बैजनाथ गर्ग
दुनिया भर के देशों के कोयला और अन्य जीवाश्म ईंधन को पीछे छोड़ कर हरित ऊर्जा की ओर आने और इसे समर्थन देने की कई वजहें हैं। देशी और विदेशी कंपनियों की तरफ से हरित ऊर्जा क्षेत्र में निवेश की अपार संभावनाएं हैं। जिस तरह ऊर्जा संक्रमण की गति बढ़ रही है, उसे देखते हुए आने वाले समय में पूंजी प्रवाह में वृद्धि नजर आएगी।
भारत ने वर्ष 2030 तक ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए नई पंचवर्षीय योजना तैयार की है। इस योजना के बलबूते देश 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली का लक्ष्य हासिल कर पाएगा। इसी क्रम में केंद्र सरकार अगले पांच साल के लिए प्रति वर्ष 50 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता के लिए बोलियां आमंत्रित कर चुकी है। इतना ही नहीं, ‘इंटर-स्टेट ट्रांसमिशन’ (आइएसटीएस) से जुड़ी अक्षय ऊर्जा क्षमता की इन वार्षिक बोलियों में प्रति वर्ष कम से कम 10 गीगावाट पवन ऊर्जा क्षमता की स्थापना भी शामिल होगी।
सरकार की ओर से अल्पकालिक और दीर्घकालिक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वृद्धि के लिहाज से और 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता के 500 गीगावाट के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में यह घोषणा महत्त्वपूर्ण मानी जा रही है। दुनिया में भारत ऊर्जा ‘ट्रांजिशन’ में ‘ग्लोबल लीडर’ के रूप में उभर रहा है। यह उस विकास से स्पष्ट है, जो हमने अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में हासिल किया है।
अक्षय ऊर्जा क्षेत्र रोजगार की दृष्टि से भी उम्मीद भरा नजर आ रहा है। पूरी दुनिया जहां जलवायु परिवर्तन के खतरों को रोकने के लिए इस क्षेत्र को विकसित करने में जुटी है, वहीं भारत ने इस स्रोत के विकास में अच्छी सफलता हासिल की है। पिछले दस सालों में देश ने अक्षय ऊर्जा उत्पादन की अपनी क्षमता में पांच गुना बढ़ोतरी की है। इसके साथ ही 2030 तक के लिए ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में नए लक्ष्य भी तय किए गए हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, नए लक्ष्यों को पूरा करने में अगर सफलता मिलती है तो 2030 तक इस क्षेत्र में करीब 15 लाख नौकरियां पैदा होंगी। अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में रोजगार पैदा करने के लिहाज से चीन, ब्राजील और अमेरिका के बाद भारत दुनिया में चौथे स्थान पर है। पूरे विश्व में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में नियुक्त लोगों का 5.7 फीसद भारत में है। ‘इंटरनेशनल रिन्यूएबल ऊर्जा एजंसी’ (इरेना) की रिपोर्ट के अनुसार, 2014 तक अक्षय ऊर्जा क्षेत्र ने भारत में चार लाख नौकरियां उत्पन्न की थीं।
असल में भारत में ऊर्जा क्षेत्र में विकास की काफी संभावनाएं हैं और इस क्षेत्र में जाने के लिए छात्रों को कुछ खास पढ़ाई करने की जरूरत पड़ेगी। ऊर्जा क्षेत्र में बीटेक पावर, एमबीए आयल एंड गैस, एमए एनर्जी इकोनामिक्स, सौर ऊर्जा आदि से जुड़े कई पाठ्यक्रम होते हैं, लेकिन आने वाले समय में सबसे ज्यादा संभावनाएं सौर ऊर्जा में हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को पांच खरब डालर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए ऊर्जा क्षेत्र को पुनर्नवा करना बहुत जरूरी होगा।
निवेश की बात करें तो भारत के ऊर्जा क्षेत्र में 2000 से 2019 के बीच 14.32 अरब डालर का विदेशी निवेश आया है। सरकार इस क्षेत्र पर खासा ध्यान दे रही है, जिसके कारण आने वाले समय में इसमें निवेश और बढ़ेगा। इससे नौकरियों की संभावनाएं भी बढ़ेंगी। 2022 तक भारत सरकार नवीकरणीय ऊर्जा (सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि) की क्षमता बढ़ाकर 175 गीगावाट कर चुकी है।
इसमें 100 गीगावाट सौर ऊर्जा और 60 गीगावाट पवन ऊर्जा शामिल है। वहीं भारत की कोयला आधारित क्षमता 2040 तक 191 गीगावाट से बढ़कर 400 गीगावाट होने की संभावना है। हालांकि भारत लंबे समय से ऊर्जा उत्पादन के लिए सबसे ज्यादा भरोसा कोयले पर करता आया है, लेकिन पिछले दशक के मध्य से इसमें हरित ऊर्जा की भागीदारी महत्त्वपूर्ण रही है। 2017 के बाद से हरित ऊर्जा बिजली उत्पादन के नए तरीकों में सबसे आगे रही है, जिसमें सौर ऊर्जा का बड़ा हिस्सा है।
तकनीकों में सुधार और सौर पैनलों की कीमतों में लगातार गिरावट के कारण लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिल रही है। देश में जहां 2010 में सौर ऊर्जा की निविदा 12 रुपए प्रति किलोवाट थी, वह 2020 में गिरकर दो रुपए प्रति किलोवाट पर आ गई। मौजूदा समय में यह बिजली उत्पादन का सबसे सस्ता तरीका है। यही वजह है कि नई ऊर्जा क्षमता प्राप्त करने में सौर ऊर्जा को सबसे ज्यादा पसंद किया जा रहा है।
2022 में भारत में जोड़ी गई 92 फीसद नई ऊर्जा अकेले सौर और पवन आधारित थी। हरित ऊर्जा इस प्रकार देश में ऊर्जा का लगभग एकमात्र स्रोत बनता जा रहा है। भारत में बिजली की खपत बढ़ रही है और हरित ऊर्जा सबसे आकर्षक विकल्प है। निवेशक भी पैसा लगाने और लाभ पाने के लिए इस क्षेत्र की ओर देखने लगे हैं। केंद्र सरकार का अनुमान है कि पिछले सात सालों में नवीकरणीय ऊर्जा में 70 अरब डालर (लगभग 5.6 लाख करोड़ रुपए) से अधिक का निवेश किया गया है, हालांकि यह क्षेत्र अभी विस्तार की ओर बढ़ रहा है।
भारतीय हरित ऊर्जा से जुड़े कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां अभी निवेश की बेहद जरूरत है। हरित ऊर्जा का उत्पादन इसका एक पहलू है। सौर पैनलों और पवन टर्बाइनों के निर्माण के लिए आपूर्ति शृंंखला स्थापित करने से लेकर इन्हें वितरित ऊर्जा परियोजनाओं में स्थापित करने और जरूरी आधुनिक ग्रिड स्थापित करने तक निवेश के लिए कई क्षेत्र हैं। इसमें साफ्टवेयर पर भी निर्भरता बढ़ी है। यहां भी निवेश की काफी संभावनाएं हैं। दरअसल, हरित ऊर्जा को यह सुनिश्चित करने के लिए साफ्टवेयर की जरूरत होती है कि पावर ग्रिड सुचारु रूप से कार्य कर रहा है या नहीं। यह इस क्षेत्र के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है।
दुनिया भर के देशों के कोयला और अन्य जीवाश्म ईंधन को पीछे छोड़ कर हरित ऊर्जा की ओर आने और इसे समर्थन देने की कई वजहें हैं। देशी और विदेशी कंपनियों की तरफ से हरित ऊर्जा क्षेत्र में निवेश की अपार संभावनाएं हैं। जिस तरह ऊर्जा संक्रमण की गति बढ़ रही है, उसे देखते हुए आने वाले समय में पूंजी प्रवाह में वृद्धि नजर आएगी।
भारतीय हरित ऊर्जा क्षेत्र में विदेशी निवेश 2014 से लगातार 4,100 करोड़ रुपए से ऊपर रहा, लेकिन 2017 के बाद हर साल एक अरब डालर (8,200 करोड़ रुपए) के आंकड़े को पार कर रहा है। दुनिया भर के पूंजी बाजार विनियामक कारणों के साथ-साथ लंबी अवधि के लाभ के चलते ज्यादा से ज्यादा हरित तकनीक में निवेश की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। इसका अर्थ है कि उपलब्ध पूंजी को हरित ऊर्जा में निवेश करने के जोखिमों में कमी आई है।
एक पहलू यह भी है कि मौजूदा समय में भारत की ऊर्जा पर निर्भरता दूसरे देशों पर काफी ज्यादा है। देश को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई पहलें की जा रही हैं। इसी क्रम में नवीकरणीय ऊर्जा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, जिसके लिए सौर ऊर्जा के क्षेत्र में सरकार की ओर से काफी काम किया जा रहा है।
भारत ने वर्ष 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने का लक्ष्य रखा है, जिसके लिए लगभग 50 फीसद ऊर्जा नवीकरणीय स्रोतों से उत्पादित करना बड़ा लक्ष्य है। 2040 तक भारत की ओर से 15,820 टेरावाट-आवर बिजली का उत्पादन नवीकरणीय स्रोत से करने का भी लक्ष्य रखा गया है। ऐसे में सौर ऊर्जा इस लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विभिन्न कंपनियां सौर ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से काम कर रही हैं। इस वजह से इस क्षेत्र की कंपनियों में अब भी अच्छा विकास देखने को मिल रहा है। आने वाले समय में इन कंपनियों का विकास और तेज होने के साथ भारत ऊर्जा क्षेत्र के सभी लक्ष्यों को सफलतापूर्वक हासिल कर लेगा।