Telangana Elections: तेलंगाना पीसीसी प्रमुख अनुमुला रेवंत रेड्डी और बीजेपी के फायरब्रांड नेता बंदी संजय कुमार ने तेलंगाना में अपनी-अपनी पार्टियों को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। जिसको लेकर हाल के सालों में दोनों नेताओं ने काफी सुर्खियां भी बंटोरी। लेकिन कांग्रेस के रेवंत रेड्डी अब तेलंगाना की बागडोर अपने हाथों में संभालने जा रहे हैं।
यह दोनों ऐसे नेता हैं जिन्होंने राज्य में सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के खिलाफ अपने आक्रामक आरोप के कारण चुनाव से पहले साल में सुर्खियों में आए थे। राजनीतिक मानकों के हिसाब से दोनों युवा हैं, जिनकी उम्र क्रमश: 56 और 52 साल है। और दोनों ही प्रखर वक्ता हैं।
बीजेपी के संजय कुमार ने अपनी हिंदुत्व संबंधी बयानबाजी से अपनी छाप छोड़ी और भाजपा को ऐसे राज्य में लड़ने की स्थिति में ला दिया, जहां उसका कोई खास जनाधार नहीं था। वहीं रेवंत रेड्डी काफी हद तक पुराने राजनेताओं की शैली में बोलने वाले वक्ता हैं। दर्शकों से जुड़ने के लिए भावनाओं के साथ वाक्पटुता और सीधे हमले उनकी शैली में शामिल हैं।
जैसा कि कांग्रेस ने मंगलवार को रेवंत को सीएम चेहरे के रूप में चुनने के लिए पार्टी में लंबे अनुभव और समय के साथ नेताओं के दावों को खारिज कर दिया, कई लोगों को उनकी प्रतिज्ञा की याद दिलाई गई। जब वो चेरलापल्ली सेंट्रल जेल में समय बिताने के बाद जमानत पर रिहा हुए थे। उन्होंने कहा था कि एक दिन, वह यह सुनिश्चित करेंगे कि बीआरएस प्रमुख के.चंद्रशेखर राव के पास राज्य में कोई राजनीतिक आधार न बचे।
विडंबना यह है कि यह तर्क दिया जा सकता है कि बीआरएस सरकार द्वारा रेवंत का लगातार पीछा करना उनके तेजी से बढ़ने का एक बड़ा कारण रहा है। एबीवीपी नेता के रूप में शुरुआत करने वाले रेवंत ने 2017 में कांग्रेस में शामिल होने से पहले टीडीपी में लंबा समय बिताया। यानी सिर्फ छह साल पहले। जून 2021 में जब पार्टी ने उन्हें अपना तेलंगाना प्रमुख चुना तो कांग्रेस में बहुत कम लोग उनके बारे में ठीक से जानते थे।
रेवंत के खिलाफ इनमें से पहली कार्रवाई दिसंबर 2018 में हुई, जब केसीआर की कोसी यात्रा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के आह्वान पर उन्हें मूल कोडंगल में उनके घर पर नजरबंद कर दिया गया था। मार्च 2020 में केसीआर के बेटे और बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामाराव के कथित अवैध रूप से निर्मित फार्महाउस पर ड्रोन उड़ाकर एक अनोखा विरोध प्रदर्शन करने के लिए उन्होंने 14 दिन न्यायिक हिरासत में बिताए।
दिसंबर 2020 और मार्च 2023 के बीच भले ही रेवंत की इमेज में इजाफा होता रहा। उन्हें सात बार घर में नजरबंद किया गया। विरोध प्रदर्शन के लिए जाते समय पुलिस ने घर छोड़ने से रोका।
जुलाई 2021 में सरकारी भूमि की ई-नीलामी में 1,000 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार के आरोपों पर एक योजनाबद्ध विरोध से पहले उन्हें हैदराबाद के जुबली हिल्स में उनके आवास तक ही सीमित कर दिया गया था। दिसंबर 2021 में पुलिस ने उन्हें फिर से घर में नजरबंद कर दिया, जब वह धान खरीद को लेकर भूपालपल्ली में एक किसान विरोध प्रदर्शन में शामिल होने जा रहे थे।
बीआरएस सरकार उस समय अपनी नीतियों के तहत किसानों को फसल बोने के लिए प्रोत्साहित करने के बाद अपर्याप्त धान खरीद पर व्यापक गुस्से का सामना कर रही थी।
रेवंत आखिरकार इस साल सबके चहेते चेहरे बन गए, जब उन्होंने तेलंगाना राज्य लोक सेवा आयोग (टीएसपीएससी) द्वारा आयोजित परीक्षाओं में पेपर लीक होने का मामला उठाया। 22 मार्च को पुलिस ने उनके घर पर छापा मारा और रेवंत को प्रदर्शनकारी छात्रों में शामिल होने के लिए उस्मानिया विश्वविद्यालय जाने से रोक दिया। इसके बाद हिंसक विरोध प्रदर्शन हुआ, जिसमें रेवंत सबसे आगे थे।
उन्हें ग्राम पंचायतों के लिए 15वें वित्त आयोग द्वारा जारी धनराशि नहीं देने के कारण बीआरएस सरकार से नाराज सरपंचों के समर्थन में कांग्रेस के एक बड़े विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने के लिए भी गिरफ्तार किया गया था।
यहां तक कि जब बीआरएस सरकार ने उन पर निशाना साधा, तब भी रेवंत के पास घरेलू मोर्चे पर भी काफी संघर्ष था, जबकि राज्य कांग्रेस बुरी तरह बंटी थी। स्थानीय नेताओं ने कथित तौर पर उच्च अधिकारियों से शिकायत की कि वह “निरंकुश” थे और “अपने समर्थकों को बढ़ावा दिया”। कोमाटिरेड्डी राज गोपाल रेड्डी जैसे कुछ नेताओं ने इस पर कांग्रेस छोड़ दी, हालांकि मौजूदा चुनाव से ठीक पहले वह फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए।
वास्तव में, कोमाटिरेड्डी बंधुओं और रेवंत के बीच इतनी कड़वी प्रतिद्वंद्विता थी कि दोनों ने उसे मुनुगोडे या नलगोंडा में पैर रखने के खिलाफ चेतावनी दी थी। एआईसीसी नेताओं की फटकार के बाद रेवंत ने कथित तौर पर अपने तरीके सुधारने का वादा किया और पार्टी सहयोगियों के साथ अपने संबंधों में नरमी लायी, जबकि केसीआर और बीआरएस पर अपने हमलों को तेज कर दिया। खासकर विभिन्न परियोजनाओं में भ्रष्टाचार को लेकर।
एक नेता ने कहा, ‘हमले सही समय पर और तीखे थे, और उन्होंने जिस मजबूत भाषा का इस्तेमाल किया, उसने प्रभाव डाला। मुझे नहीं पता कि क्या बीआरएस मंत्री और नेता अति आत्मविश्वास में थे, या यह सोचते थे कि हम नहीं हारेंगे। उन्होंने प्रभावी ढंग से उनका मुकाबला नहीं किया। वह एक ठोस धारणा बनाने में कामयाब रहे कि वह केसीआर सरकार को उखाड़ फेंकने जा रहे हैं।’
कांग्रेस के कमजोर पदों के लिए रेवंत जैसा आक्रामक नेता ताजी हवा के झोंके की तरह था, जो पार्टी के विरोध प्रदर्शनों और कार्यक्रमों में जोश भर रहा था। अचानक, ऐसा लगा कि कांग्रेस हर जगह है। पड़ोसी राज्य कर्नाटक में कांग्रेस की बड़ी जीत के साथ दूसरा उत्साह आया कि रेवंत के संदेश के साथ कि पार्टी का समय आ गया है, अब यह केवल एक सोच जैसा नहीं है।
राज्य की राजनीति में तीसरा विस्फोट तब हुआ जब जुलाई में भाजपा ने संजय कुमार की जगह जी किशन रेड्डी को नियुक्त किया, जो बीआरएस के प्रति नरम रुख रखने वाले नेता थे। ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा ने 2024 के किसी भी लोकसभा चुनाव सौदे के लिए बीआरएस के साथ रास्ते खुले रखने के लिए ऐसा किया था। हालांकि, कांग्रेस ने इसका इस्तेमाल अपने सिद्धांत को मजबूत करने के लिए किया कि बीआरएस, बीजेपी और एआईएमआईएम एक गुप्त सांठगांठ में थे, जिससे लगता है कि न केवल खरीदार मिल गए, बल्कि मुस्लिम वोट भी बीआरएस से दूर हो गए।
तेलंगाना के साथ हुए अन्य राज्यों में कांग्रेस के पास पार्टी अभियान चलाने वाले ऊर्जावान नेताओं की कमी नहीं थी, लेकिन तेलंगाना में ऐसा प्रतीत होता है कि रेवंत ने धैर्य न खोने, राजनीतिक क्षमता और परिपक्वता दिखाने और घर की फूट को रोकने के लिए इसको एक युद्ध की मशीन में तब्दील करने में सफलता हासिल की। इससे उनको काफी मदद मिली। इससे बीआरएस और बीजेपी को झटका के रूप में देखा गया। वहीं राहुल गांधी ने हमेशा रेवंत रेड्डी का उत्साहवर्धन किया।
चुनाव प्रचार के दौरान भी रेवंत रेड्डी ने काफी मेहनत की। उन्होंने हर दिन कम से कम चार रैलियों को संबोधित किया। कांग्रेस के संदेश को घर-घर पहुंचाया। मौजूदा बीआरएस विधायकों पर हमला किया। भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के आरोप उठाए और कांग्रेस की छह गारंटियों के बारे में प्रभावी ढंग से लोगों को समझाया।
30 नवंबर के चुनाव से एक पखवाड़ा से पहले लोग शहरों के साथ-साथ गांवों में लोग रेवंत रेड्डी के बारे में बात करने और पूछने के लिए रुकते थे।
बीआरएस नेता और पूर्व मंत्री तलसानी श्रीनिवास यादव उनकी हार्दिक प्रशंसा करते हैं। वे कहते हैं कि हम टीडीपी में एक साथ थे। रेवंत उस समय भी संघर्ष कर रहे थे, लेकिन तब से वह काफी परिपक्व हो गए हैं।
टीडीपी (आंध्र प्रदेश) नेता के पट्टाभि राम के पास भी अपने पूर्व सहयोगी के बारे में कहने के लिए केवल अच्छे शब्द हैं, उनका कहना है कि वह बहुत ही विनम्र पृष्ठभूमि से आए थे। वो कहते हैं कि रेवंत एक बहुत ही सभ्य राजनीतिज्ञ हैं। वह किसी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पर हमला करने के लिए कठोर भाषा का प्रयोग कर सकते हैं, लेकिन यह अपेक्षित है क्योंकि वह बहुत मुखर हैं, बहुत आक्रामक हैं। उनकी मुख्य ताकत उनकी वफादारी है… वह टीडीपी और चंद्रबाबू नायडू के प्रति भी बहुत वफादार थे। भले ही वह दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में चले गए, लेकिन उन्होंने कभी भी टीडीपी के बारे में बुरा नहीं कहा… अब भी वह उन नेताओं के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखते हैं, जिनके साथ उन्होंने टीडीपी में काम किया था।’
पट्टाभि राम यह भी कहते हैं कि रेवंत हमेशा एक अच्छे वक्ता थे, दिवंगत कांग्रेस सीएम वाईएस राजशेखर रेड्डी को टक्कर देने में वह नायडू के बाद दूसरे स्थान पर थे। वो कहते हैं कि वो हर जगह काम बड़ी सावधानीपूर्वक कर सकता है। चाहे विधानसभा सत्र हो या राजनीतिक बैठकें या सभाएं, वह कड़ी तैयारी करते हैं।
रेवंत के दोस्तों का कहना है कि ऐसा प्रतीत होता है कि वह इस साल चौबीसों घंटे राजनीति में जी रहे हैं, लेकिन वह एक “पारिवारिक व्यक्ति” हैं। उनकी पत्नी गीता रेड्डी दिवंगत जनता पार्टी नेता और केंद्रीय मंत्री जयपाल रेड्डी की भतीजी हैं। कथित तौर पर दोनों तब एक साथ आए जब रेवंत ने एक छात्र के रूप में युवा कांग्रेस में समय बिताया, और जयपाल रेड्डी के माध्यम से गीता से मुलाकात की। एक मित्र ने कहा, “शुरुआत में, उनकी शादी का कुछ विरोध हुआ, लेकिन वे सभी मान गए।” दोनों की एक बेटी है, जो शादीशुदा है और आंध्र प्रदेश में बस रहती हैं।
जब राजनीति की बात आती है तो रेवंत की औपचारिक एंट्री एबीवीपी के ज़रिए हुई। टीडीपी के पूर्व सहयोगियों के अनुसार, आरएसएस की छात्र शाखा में उनका कार्यकाल संक्षिप्त और एक घटनाभर थी। हालांकि वह अपने गृह जिले महबूबनगर में गांव और मंडल स्तर की राजनीति में हाथ आजमाते रहे। 2007 में, अंततः वह स्थानीय नगर पालिकाओं के सदस्यों के समर्थन से एक निर्दलीय के रूप में विधान परिषद के लिए चुने गए।
2007 से 2009 तक एमएलसी रहने के दौरान उनकी मुलाकात तत्कालीन विपक्ष के नेता नायडू से हुई थी। टीडीपी नेता ने उन्हें अपने संरक्षण में ले लिया और उन्हें कोडंगल में रेड्डी समुदाय के प्रभावशाली किसानों के बीच एक राजनीतिक नेता का विकास करने के लिए प्रोत्साहित किया। 2009 में टीडीपी ने उन्हें कोडंगल विधानसभा सीट से मैदान में उतारा और रेवंत ने जीत हासिल की। विधानसभा में रेवंत ने अपने हस्तक्षेप और बोलने की क्षमता से नायडू को प्रभावित किया।
2014 में, रेवंत ने फिर से गुरुनाथ को 14,600 से अधिक वोटों हराया, जो टीआरएस (जैसा कि तब बीआरएस कहा जाता था) में शामिल हो गए थे, जबकि तेलंगाना गठन ने टीआरएस को अपने राजनीतिक क्षेत्र में प्रमुख पार्टी बना दिया, रेवंत नायडू के प्रति वफादार रहे, और उन्हें तेलंगाना टीडीपी का प्रमुख नियुक्त किया गया।
3 जून 2015 को तेलंगाना सीआईडी ने रेवंत को कथित तौर पर विधान परिषद में टीडीपी उम्मीदवार के लिए वोट करने के लिए एक नामांकित विधायक को रिश्वत देने की कोशिश करते हुए रंगे हाथों पकड़ा। रेवंत के करीबी लोगों का कहना है कि वह शायद “नायडू को खुश करने” की कोशिश में बहुत आगे बढ़ गए और एक स्टिंग ऑपरेशन में फंस गए।
इस घटना के बाद रेवंत ने जेल में समय बिताया। कुछ घंटों की जमानत मिलने के बाद वह अपनी बेटी की शादी में शामिल होने में कामयाब रहे। इस जेल प्रवास के अंत में उन्होंने केसीआर को सत्ता से बेदखल करने के बारे में अपना भाषण दिया।
इसके तुरंत बाद, अक्टूबर 2017 में रेवंत ने टीडीपी से इस्तीफा दे दिया और कुछ दिनों बाद कांग्रेस में शामिल हो गए। दिसंबर 2018 के चुनावों में टीआरएस ने केसीआर पर अपने हमलों से आहत होकर कोडंगल से रेवंत को हराने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी। एक नेता ने कहा कि इसके लिए कांग्रेस खुद जिम्मेदार है। नेता ने कहा कि उस समय वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के साथ रेवंत का तालमेल बहुत अच्छा नहीं था, क्योंकि उन्हें रिश्वतखोरी के दाग वाले एक बाहरी व्यक्ति के रूप में देखा जाता था। हालांकि, उन्होंने केंद्रीय कांग्रेस नेताओं के साथ अच्छे संबंध स्थापित किए। जिन्होंने जोशीले, भावनात्मक भाषण देने की उनकी क्षमता को देखा।
जून 2021 में जब उन्हें कांग्रेस का राज्य प्रमुख बनाया गया। उस तेलंगाना कांग्रेस के कुछ नेताओं को यह रास नहीं आया। उनमें से कुछ नेता जैसे- एन उत्तम कुमार रेड्डी, मल्लू भट्टी विक्रमराका, टी जयप्रकाश रेड्डी, वी हनुमंत राव, मधु यक्षी गौड़ अपने लिए मांग कर सकते हैं, क्योंकि अब रेवंत सीएम बनेंगे तो जाहिर सी बात है कि उनको राज्य कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ना होगा।