यूरोपीय देश नीदरलैंड में एक अप्रत्याशित घटना हुई है। वहां के चुनाव में एक ऐसे शख्स ने जीत दर्ज कर ली है जिसके विचार एक समुदाय के प्रति नफरत से भरे और बड़ा बवाल खड़ा कर सकते हैं। यहां बात हो रही है गीर्ट वाइल्डर्स की जो नीदरलैंड के अगले प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। दक्षिणपंथी विचारों से पूरी तरह प्रेरित गीर्ट वाइल्डर्स की एक जीत ने नीदरलैंड में कई तरह की आशंकाओं को बढ़ावा दे दिया है। खास तौर पर वहां के मुसलमानों में एक डर का माहौल है। उन्हें लगने लगा है कि अब उनके तमाम अधिकार उनसे छिन जाएंगे, उनका धर्म खतरे में आ जाएगा। अब सवाल ये उठता है कि नीदरलैंड के मुसलमानों का ये डर कितना वाजिब है? नीदरलैंड में मुस्लिम समुदाय की कैसी स्थिति है? क्या यूरोपीय देश में ये समुदाय भेदभाव का शिकार हो रहा है?
अब नीदरलैंड कहने को एक विकसित देश है जहां पर खुले विचार, उदारवादी सोच वाले लोग ज्यादा रहते हैं, लेकिन तमाम रिपोर्ट और आंकड़े बताते हैं कि इस देश में मुसलमानों की हालत ज्यादा अच्छी नहीं है। यही कारण है कि अब जब गीर्ट वाइल्डर्स की सरकार सत्ता में आने जा रही है, वे और ज्यादा खबरा गए हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022 में भेदभाव की वजह से प्रताड़ना झेलने के कुल 6,738 मामले सामने आए, वहां भी ज्यादातर केस वो हैं जहां पर जाति-धर्म के आधार पर किसी के अधिकारों का हनन किया गया हो। बड़ी बात ये है कि पिछले तीन सालों से लगातार नीदरलैंड में ये भेदभाव वाला ग्राफ बढ़ता जा रहा है।
उसी रिपोर्ट में चिंताजनक ट्रेंड ये है कि जितने भी कुल भेदभाव के मामले सामने आते हैं, वहां पर सबसे ज्यादा केस मुस्लिम समुदाय से जुड़े होते हैं। पुलिस आंकड़ों के मुताबिक 2022 में कुल केस 93 फीसदी मामले ऐसे रहे जहां पर किसी मुसलमान को ही प्रोफेशनल या पब्लिक लाइफ में भेदभाव का शिकार होना पड़ा। यहां ये समझना जरूरी है कि नीदरलैंड में मुस्लिम समुदाय सबसे ज्यादा शहरी इलाकों में रहते हैं। बड़ी बात ये भी है कि नीदरलैंड में मुस्लिम आबादी का बड़ा हिस्सा वो है जो अप्रवासी है और शरण लेने के लिए यहां आया है। इरान, ईराक, सोमालिया, सीरिया, अफगानिस्तान से बड़ी तादाद में मुस्लिम नीदरलैंड आए हैं।
अब ऐसे ही मुसलमानों के खिलाफ सिर्फ गीर्ट के विचार कट्टर नहीं है, बल्कि साल 2019 में इस देश ने कुछ ऐसे कानून भी बनाए थे जिसने इस समुदाय के मन में डर पैदा किया। असल में साल 2019 में नीदरलैंड ने बुर्का पर बैन लगा दिया था, साफ कहा गया था कि स्कूल, अस्पताल और सरकारी दफ्तरों में कोई भी अपना चेहरा कवर नहीं करेगा। इसी तरह बस, ट्रेन में भी बुर्के पर रोक लगा दी गई थी। बड़ी बात ये रही कि साल 2005 में गीर्ट वाइल्डर्स ने ही ऐसा प्रस्ताव रखा था कि बुर्के पर बैन लग जाना चाहिए। International Religious Freedom पर साल 2022 की रिपोर्ट साफ बताती है कि उन कानूनों की वजह से नीदरलैंड में मुस्लिमों की स्थिति और ज्यादा खराब हुई है।
सर्वे के दौरान नीदरलैंड की महिलाओं ने खुलकर बताया है कि अब उनके साथ ज्यादा भेदभाव होता है, उन्हें कई जगहों पर बायकॉट भी किया गया है। महिलाओं के मुताबिक कई बार उन्हें बस में एंट्री नहीं मिलती है क्योंकि उन्होंने बर्का पहना होता है। इसी तरह अब वे उन जगहों पर जाने से बचती हैं जहां पर बुर्के को लेकर ज्यादा सख्ती चल रही है। ऐसे में फ्री मूवमेंट वाली उनकी आजादी भी नीदरलैंड में काफी कम हो चुकी है।
हैरानी की बात ये है कि बुर्का पहनने वाली महिलाएं अब नीदरलैंड में सुरक्षित भी नहीं हैं। तमाम रिपोर्ट बता रही हैं कि उन्हें शारीरिक से लेकर मौखिक रूप से काफी प्रताड़ना का सामना करना पड़ा है। इसके अलावा नीदरलैंड में ही मस्जिदों पर हमले, उनको लगातार मिल रहे धमकी वाले मैसेजेस ने साफ कर दिया है कि अल्पसंख्यकों की स्थिति वहां पहले से ही विस्फोटक है और अब जब गीर्ट वाइल्डर्स प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं, स्थिति और ज्यादा बिगड़ने के आसार जता दिए गए हैं।
अब ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि नीदरलैंड में पिछले कुछ सालों में मुस्लिम समुदाय के प्रति लोगों की नफरत काफी ज्यादा बढ़ चुकी है। साल 2021 में मुस्लिमों के प्रति हेट स्पीच के 319 मामले सामने आए थे जो 2020 में सिर्फ 39 दर्ज किए गए थे। एक ट्रेंड ये भी सामने आया कि ईसाई या किसी दूसरे धर्मों के त्योहार के समय मुस्लिमों पर ज्यादा निशाना साधा गया।