Elections: तेलंगाना विधानसभा चुनाव के लिए अपने अभियान में भाजपा ने राज्य में मौजूदा मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा बार-बार उठाया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे “असंवैधानिक” बताया है। साथ में यह भी कहा है कि अगर बीजेपी राज्य में सत्ता में आती है तो मुस्लिम आरक्षण को खत्म कर दिया जाएगा।
अमित शाह ने सोमवार को जनगांव में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कहा, ‘भाजपा तेलंगाना के लोगों की पार्टी है। जब बीजेपी तेलंगाना में सरकार बनाएगी तो हम असंवैधानिक 4% मुस्लिम आरक्षण को खत्म कर देंगे। उन्होंने 30 नवंबर के विधानसभा चुनावों में सत्ता में आने पर पिछड़े वर्ग (BC) के नेता को सीएम नियुक्त करने की भाजपा की प्रतिज्ञा को भी दोहराया।
पिछले शनिवार को गडवाल में एक रैली में अपने भाषण में शाह ने वादा किया था कि कि अगर भाजपा चुनाव जीतती है तो धर्म-वर्ग आरक्षण को खत्म कर दिया जाएगा और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) का कोटा बढ़ाया जाएगा। उन्होंने कांग्रेस और सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) पर “पिछड़ा वर्ग विरोधी” पार्टियां होने का भी आरोप लगाया और दावा किया कि केवल भाजपा ही पिछड़ों को फायदा पहुंचा सकती है।
यह मुद्दा पिछले शनिवार को हैदराबाद में जारी किए गए बीजेपी के घोषणापत्र में भी शामिल था। जिसमें कई मुफ्त सुविधाओं के अलावा समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने का भी वादा किया गया था।
पार्टी के घोषणापत्र, जिसका शीर्षक “सकला जनुला सौभाग्य तेलंगाना (लोगों का कल्याण)” है। बीजेपी के मेनिफेस्टो में कहा गया है कि बीजेपी सरकारी नौकरियों और राज्य शैक्षणिक संस्थानों में सीटों में मुसलमानों के लिए 4% कोटा सहित “असंवैधानिक” धर्म-आधारित आरक्षण को हटा देगा। घोषणापत्र में कहा गया है कि मुस्लिम कोटा ओबीसी, एससी और एसटी को फिर से दिया जाएगा। साथ ही कहा गया है कि पार्टी राज्य के लिए यूसीसी का मसौदा तैयार करने के लिए एक समिति का गठन करेगी।
9 नवंबर को तेलंगाना कांग्रेस ने चुनाव के लिए अपना “अल्पसंख्यक घोषणापत्र” जारी किया, जिसमें राज्य के वार्षिक अल्पसंख्यक कल्याण बजट को 4,000 करोड़ रुपये तक बढ़ाने का वादा किया गया। पार्टी ने राज्य में सत्ता में आने के छह महीने के भीतर जातिगत जनगणना कराने का भी वादा किया। “अल्पसंख्यक घोषणा” में कहा गया कि कांग्रेस नौकरियों, शिक्षा और सरकारी योजनाओं में अल्पसंख्यकों सहित सभी पिछड़े वर्गों के लिए उचित आरक्षण सुनिश्चित करेगी।
इस साल अप्रैल में हैदराबाद के बाहरी इलाके चेवेल्ला में एक रैली में शाह द्वारा पहली बार मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा उठाने के तुरंत बाद, कांग्रेस के साथ-साथ बीआरएस और एआईएमआईएम ने उन पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ को “कमजोर” करने का आरोप लगाया, जिसके समक्ष मामला लंबित है।
तेलंगाना कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री मोहम्मद अली शब्बीर ने कहा है कि बीसी-ई श्रेणी के तहत सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े मुसलमानों के लिए नौकरियों और शिक्षा में 4% मुस्लिम कोटा तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में लागू किया जा रहा है।
उन्होंने कहा है कि 2004 में संयुक्त आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद तत्कालीन वाईएस राजशेखर रेड्डी सरकार द्वारा घोषित 4% मुस्लिम आरक्षण – मुसलमानों के बीच केवल 14 सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समूहों को शामिल करता है, जिनकी पहचान पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा की गई है।
शब्बीर ने आरोप लगाया है कि भाजपा नेता जनता को गुमराह करने और सांप्रदायिक नफरत भड़काने के लिए इस तरह की कोशिश कर रहे हैं।
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने आरोप लगाया है कि शाह की टिप्पणी ने भाजपा के “दोहरे मानदंडों” को उजागर किया है। उन्होंने कहा, “एक तरफ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पसमांदा जैसे पिछड़े मुसलमानों तक पहुंचने की बात करते हैं और दूसरी तरफ, केंद्रीय गृह मंत्री घोषणा करते हैं कि वे मुस्लिम आरक्षण रद्द कर देंगे।”
ओवैसी ने आरोप लगाया कि बीजेपी को तेलंगाना में मुस्लिम विरोधी “घृणास्पद भाषण” देने की क्या ज़रूरत, उन्होंने कहा कि बीजेपी के नेतृत्व वाले केंद्र को कुल 50% कोटा सीमा को हटाने के लिए कानूनों में संशोधन करना चाहिए।
बीआरएस के प्रवक्ता रावुला श्रीधर रेड्डी ने कहा कि शाह का बयान एक और संकेत है कि “भाजपा किसी भी तरह से सत्ता हासिल करने की लालची है”। रेड्डी ने कहा, ‘अमित शाह ने मुस्लिम आरक्षण को एक धार्मिक मुद्दा बना दिया है। वह संवैधानिक और असंवैधानिक कोटा के बीच अंतर नहीं जानते, क्योंकि 4% कोटा संवैधानिक है और 50% की सीमा का उल्लंघन नहीं करता है।’
अप्रैल 2017 में, अपने चुनावी वादे को ध्यान में रखते हुए, मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली बीआरएस सरकार ने एसटी के लिए कोटा 6% से बढ़ाकर 10% और मुसलमानों के लिए 4% से 12% करने के लिए एक विधेयक पारित किया, जो कि 50% सीमा का उल्लंघन। यह केंद्र की मंजूरी नहीं मिलने के कारण यह विधेयक लटका हुआ है।
तेलंगाना में हिंदू 85.10 फीसद, मुस्लिम 12.70 प्रतिशत और ईसाई 1.30 परसेंट है। वहीं इसके अलावा सिख, जैन और पारसी जैसे तमाम समुदायों की आबादी 0.90 फीसदी है। ऐसे में 12.70 फीसद आबादी किसी भी चुनाव के नतीजे पर बड़ा असर डाल सकते हैं।