सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला अधिकारियों को कर्नल के रूप में लिस्टेड करने से इनकार करने का सेना का दृष्टिकोण मनमाना था। कोर्ट ने शुक्रवार को अधिकारियों को उनकी पदोन्नति के लिए 15 दिनों के अंदर विशेष चयन बोर्ड को फिर से बैठाने का निर्देश दिया। CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने महिला अधिकारियों के उचित अधिकारों को समाप्त करने के रवैये की निंदा की।
पीठ ने कहा, “इस तरह का दृष्टिकोण उन महिला अधिकारियों को न्याय प्रदान करने की जरूरत पर उल्टा असर डालता है जिन्होंने अपने उचित अधिकार प्राप्त करने के लिए लंबी और कठिन लड़ाई लड़ी है।” बेंच ने आगे कहा, “कर्नल के रूप में पैनल में शामिल होने के लिए महिला अधिकारियों के CR की गणना के लिए जिस तरह से कट-ऑफ लागू किया गया है वह मनमाना है। यह सेना के नीति परिपत्र और इस अदालत के फैसले के विपरीत है।” सीजेआई चंद्रचूड़ के अलावा इस पीठ में जस्टिस जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा भी शामिल थे।
शीर्ष अदालत ने कहा कि निर्धारित नीतिगत ढांचा यह स्पष्ट करता है कि नौ साल की सेवा के बाद सभी गोपनीय रिपोर्ट (CR) पर विचार किया जाना जरूरी है। इसमें कहा गया है कि वर्तमान मामले में महिला अधिकारियों को उनके पुरुष समकक्षों के बराबर करने के लिए मनमाने ढंग से कट-ऑफ लागू किया गया था। अदालत ने इस दलील को भी खारिज कर दिया कि अधिकारियों को समायोजित करने के लिए रिक्तियों की संख्या अपर्याप्त है।
पीठ ने कहा, “इस संबंध में यह ध्यान रखना जरूरी है कि अदालत ने अपने 21 नवंबर, 2022 के आदेश में सेना अधिकारियों के बयान को दर्ज किया था। साथ ही हमारे फैसले के अनुसार 150 रिक्तियां उपलब्ध कराई जानी थीं। 108 रिक्तियां भरी जा चुकी हैं।”
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “हम आदेश और निर्देश देते हैं कि विशेष चयन बोर्ड 3बी (कर्नल के रूप में प्रमोशन के लिए) को इस फैसले को 15 दिनों के भीतर फिर से गठित करने की प्रक्रिया शुरू की जाए। पिछले दो सीआर को छोड़कर सभी गोपनीय रिपोर्ट ध्यान में रखा जाएगा।” विवाद को कम करने के लिए अटॉर्नी जनरल ने कहा कि जून 2021 की कट ऑफ पर विचार किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट भारतीय सेना की उन महिला अधिकारियों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिन्हें स्थायी कमीशन दिया गया है। यह विवाद चयन द्वारा कर्नल के पद पर पदोन्नति के लिए उनके पैनल में शामिल न होने से संबंधित है।
शीर्ष अदालत ने 2021 में कहा था कि महिला शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) अधिकारियों को स्थायी कमीशन (PC) देने के लिए सेना द्वारा निर्धारित मूल्यांकन मानदंड प्रणालीगत भेदभाव करते हैं, जिससे आर्थिक और मनोवैज्ञानिक नुकसान हुआ है और उनकी गरिमा का अपमान हुआ है। कोर्ट ने कहा था कि पीसी के लिए महिला एसएससी अधिकारियों के मामले पर विचार करते समय सेना अधिकारियों द्वारा उन्हें संबंधित पुरुष बैच में योग्यता में सबसे कम अधिकारियों के साथ बेंचमार्क करने की प्रशासनिक आवश्यकता मनमानी और तर्कहीन है।
17 फरवरी, 2020 को एक ऐतिहासिक फैसले में, शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया था कि सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन दिया जाए। उनकी शारीरिक सीमाओं पर केंद्र के रुख को खारिज करते हुए कि यह सेक्स रूढ़िवादिता और महिलाओं के खिलाफ लैंगिक भेदभाव पर आधारित है। शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया था कि तीन महीने के भीतर सभी सेवारत एसएससी महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन के लिए विचार करना होगा, भले ही उन्होंने 14 साल या, जैसा भी मामला हो, 20 साल की सेवा पूरी कर ली हो।
बाद में, 17 मार्च, 2020 को एक और बड़े फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय नौसेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने का मार्ग प्रशस्त करते हुए कहा था कि एक समान अवसर सुनिश्चित करता है कि महिलाओं को भेदभाव से उबरने का अवसर मिले।