Electoral Bonds Scheme Hearing: इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम मामले में आज यानी 31 अक्टूबर को सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान बेंच ये तय करेगी कि राजनीतिक दलों की फंडिंग के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड वैध है कि नहीं। पार्टियों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत चुनावी बॉन्ड योजना (Electoral Bonds Scheme) को 2 जनवरी 2018 को सरकार की ओर से अधिसूचित किया गया था। इसे नकद चंदे के विकल्प के रूप में पेश किया गया था। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच मामले की सुनवाई करेगी।
अटॉर्नी जनरल ने शीर्ष न्यायालय से कहा कि जिस योजना की बात की जा रही है वह अंशदान करने वाले को गोपनीयता का लाभ देती है। यह इस बात को सुनिश्चित और प्रोत्साहित करता है कि जो भी अंशदान हो, वह काला धन नहीं हो। यह कर दायित्वों का अनुपालन सुनिश्चित करता है। इस तरह यह किसी मौजूदा अधिकार से टकराव की स्थिति उत्पन्न नहीं करता।
2 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने चुनावी बॉन्ड योजना की शुरुआत की थी। इसके बाद से राजनीतिक दलों को उनकी आय का एक बड़ा हिस्सा चुनावी बॉन्ड से आता है। इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये मिलने वाला चंदा अज्ञात स्रोत में गिना जाता है। ऐसे चंदे की डिटेल यानी दानदाता का नाम सार्वजनिक करने की जरूरत नहीं पड़ती है। सुप्रीम कोर्ट में कुछ याचिकाओं के जरिये चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती दी गई है। मामले में चार याचिकाएं दायर की गई हैं। इनमें कांग्रेस नेता जया ठाकुर और सीपीएम की पिटीशंस भी हैं। मार्च में एक जनहित याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि चुनावी बॉन्ड के जरिये राजनीतिक दलों को अब तक कुल 12,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है। इसमें यह भी दावा किया गया कि इस दान का दो तिहाई सिर्फ एक प्रमुख दल को ही किया गया है।
2017 के बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को पेश किया था। 29 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। यह एक तरह का बैंक नोट होता है। कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी इसे खरीद सकती है। ये स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनी हुई ब्रांच में मिलता है। इसे खरीदने वाला इस बॉन्ड को अपनी पसंद की पार्टी को डोनेट कर सकता है। बॉन्ड खरीदने वाला 1 हजार से लेकर 1 करोड़ रुपए तक का बॉन्ड खरीद सकता है।