अखिलेश आर्येंदु
सिक्किम में चुंगचांग बांध हाल ही में ध्वस्त हो गया। इस हादसे में तीस से अधिक लोगों की मौत हो गई। इस तरह देश में बांधों की मजबूती और टिकाऊपन को लेकर फिर सवाल उठने लगे हैं। देश के ऐसे कई बांध जर्जर हाल में हैं, जिनके टूटने की आशंका हरदम बनी रहती है। भारत में बड़े बांधों की हालत छोटे बांधों की अपेक्षा ज्यादा दयनीय है। आधुनिक विकास की धारा में जिन बांधों से सिंचाई, पेयजल, औद्योगिकी उपयोग, बिजली बनाने, बागवानी आदि के लिए पानी की आपूर्ति की जाती है, उनमें से कई बांध जर्जर हो चुके हैं। इसलिए उनकी बेहतर निगरानी की दरकार बताई जा रही है।
भारत के अनेक बांध भूकम्प की दृष्टि से अत्यंत खतरनाक परिक्षेत्र में हैं। जिन क्षेत्रों में छोटे पैमाने के भूकम्प आए दिन आते हैं वहां बांध टूटने या उनमें दरार पड़ने की आशंका अधिक है। बांधों की बेहतर सुरक्षा और संरक्षण को लेकर भूकम्प वैज्ञानिकों की चेतावनियों को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
टिहरी बांध, भाखड़ा, सरदार सरोवर, हीराकुंड, नागार्जुन, बगलीहार, नाथपा झाकरी, कदाना चंडील, अलामट्टी, वालयार, गांधी सागर जैसे बड़े बांधों के अलावा ओड़ीशा, तमिलनाडु और तेलंगाना स्थित बांध बहुत सुरक्षित क्षेत्र में नहीं आते। राजघाट बांध (चंदेरी) अत्यंत जर्जर दशा में है। इसी तरह नवादा स्थित फुलवरिया बांध और राजस्थान के करौली स्थित पांचणा बांध जर्जर हाल में हैं। सोनभद्र जिले के पिपरी बांध का पानी ही जहरीला नहीं है, बल्कि इसकी दशा भी अच्छी नहीं है। इसलिए इनके तुरंत सर्वेक्षण की जरूरत है, ताकि इनकी वास्तविक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सके।
पिछले सालों में बांधों की दयनीय हालत पर सरकार ने गंभीरता दिखाई है, लेकिन जिस तरह इनसे जुड़ी दुर्घटनाएं सामने आई हैं, उससे लगता है कि ज्यादा बेहतर तरीके से इनकी देखभाल करने की जरूरत है। पिछले महीनों में बाढ़ और बरसात ने कई राज्यों में तबाही मचाई। कई बांधों में क्षमता से ज्यादा जल भर जाने की वजह से उनमें दरारें पड़ गईं। उनमें जन-धन के अलावा मृदा अपरदन की विकट स्थिति देखी गई। भूस्खलन, भूकम्प, बाढ़ और अतिवृष्टि का सिलसिला बढ़ा है। भारत में बांधों में छोटी-मोटी दरारों की सामान्य मरम्मत कर दी जाती या उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है। इससे बांध की उम्र घट जाती है। कभी-कभी तो मामूली दिखने वाली दरारें बहुत खतरनाक साबित होती हैं।
भारत में कुल पांच हजार तीन सौ चौंतीस बांध हैं, जिनमें 447 विशेष तरह के बांध हैं। वहीं चीन में चौरानबे हजार बांध हैं, जिनमें से अनेक बांध जर्जर हो चुके हैं। इनमें कुछ ऐसे हैं जिसके टूटने पर भारत, पाकिस्तान पर भी असर पड़ेगा। ‘त्रि गार्जियस’ बांध, जो यांग्सी नदी पर बना है, चार सौ दस मील वायर लंबाई का यह बांध चीन के लिए भले बहुत उपयोगी है, लेकिन अगर यह बांध टूटा, तो भारत के कई इलाके जलमग्न हो जाएंगे। एशिया का सबसे बड़ा बांध हीराकुंड, जो ओड़ीशा में स्थित है, जिसका निर्माण 1957 में हुआ था, यह ऐसे क्षेत्र में है जहां अतिवृष्टि, भूकम्प और बाढ़ की समस्याएं आए दिन देखी जाती हैं। लगभग पांच किमी क्षेत्रफल में बनाया गया, यह बांध कई दृष्टि से उपयोगी रहा है, लेकिन इसकी उम्र ज्यादा होने की वजह से इसकी खास देखरेख की जरूरत है।
दिल्ली के आसपास (हथिनीकुंड बैराज) हरियाणा, गाजियाबाद, एनसीआर में बने बांधों से पैदा समस्याओं से राजधानी वालों को अब हर साल रूबरू होना पड़ता है। पेयजल और सिंचाई के लिए ये बांध जीवनरेखा जैसे हैं, मगर इस साल बरसात में हथिनीकुंड बैराज से पानी छोड़े जाने के बाद दिल्ली के कई इलाकों से लोगों को पलायन को मजबूर होना पड़ा था। अगर यह बैराज कभी टूट गया, तो दिल्ली की हालात क्या होगी, समझा जा सकता है। एनसीआर भूकम्प की दृष्टि से संवेदनशील परिक्षेत्र में आता है। दिल्ली देश का ऐसा राज्य है, जो पानी के लिए पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा पर निर्भर है। इसलिए जब भी इन राज्यों में अतिवृष्टि होती है, तो इसका असर दिल्ली पर भी पड़ता है। ऐसे में दिल्ली सरकार को इस तरफ गंभीरता से विचार करना चाहिए।
बांधों के निर्माण से अनेक सहूलियतें और विकास को गति मिलती है, लेकिन इससे आसपास वनों की कटाई की वजह से जैव विविधता में कमी आती है, पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ जाता है। बड़े पैमाने पर पलायन होता और उपजाऊ कृषि योग्य भूमि बांध में जाने की वजह से उस क्षेत्र का कृषि विकास प्रभावित होता है। बिहार, असम, पंजाब, ओड़ीशा, झारखंड, मध्यप्रदेश सहित तमाम राज्यों में बांधों से हर साल आने वाली बाढ़ से अरबों रुपए का नुकसान होता है। जहां बांधों में दरारें आती हैं, वहां जन-धन और मवेशियों का भारी नुकसान होता है। इस तरफ भी राज्य सरकारों को गौर करना चाहिए। गौरतलब है कि बांधों से शहरी लोग कभी-कभार ही प्रभावित होते हैं, लेकिन गांवों के लोग साल भर इनसे प्रभावित रहते हैं। किसान, आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को बांधों से जुड़ी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिनमें आर्थिक नुकसान, सांस्कृतिक अपघटन और मनोवैज्ञानिक रूप से बांधों के टूटने का खतरा प्रमुख हैं।
बड़े बांधों से जुड़ी तबाही का आलम यह है कि पहाड़ों में कभी-कभी गांव के गांव बांधों की विनाशलीला की भेंट चढ़ जाते हैं। भारत में बने बांध जलवायु परिवर्तन के चलते बारिश के बदलते स्वरूप को ध्यान में रखकर नहीं बनाए गए हैं। ये पानी के बहाव में अचानक उछाल को झेलने में सक्षम नहीं हैं। सवाल यह भी उठता है कि मेगा जलविद्युत परियोजनाएं कितनी सुरक्षित हैं? बांधों के टूटने की एक वजह यह भी है। बाढ़ और बादल फटने से बांधों को नुकसान होने का खतरा ज्यादा होता है। हालांकि, यह बांध की उम्र, उनके निर्माण की गुणवत्ता और बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की जलवायु अनुकूलता पर निर्भर भी करता है। चुगचांग बांध के टूटने का प्रमुख कारण ग्लेश्यिर झील में बादल का फटना था। यह लगभग बीस साल पुराना था। इसका मतलब है कि अगर बांध की गुणवत्ता से समझौता किया जाता है, तो नया बांध भी कभी भरभरा कर टूट सकता है।
कई राज्यों के बांधों पर संकट है- जिनमें महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, बिहार और उत्तराखंड शामिल हैं। अतिसंवेदनशील उत्तराखंड स्थित टिहरी बांध इतना बड़ा है कि भूकम्प और अतिवृष्टि को शायद ही झेल पाए। आंकड़े के मुताबिक सौ साल पुराने बांधों में मध्यप्रदेश में 63, महाराष्ट्र में 44, गुजरात में 30, राजस्थान में 25 और तेलंगाना में 21 बांध हैं। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने जलविद्युत परियोजनाओं के संभावित खतरों के मद्देनजर बांध की गुणवत्ता और उनकी वर्तमान दशा को समझने के मामले का अध्ययन करने के लिए तकनीकी समिति का गठन किया है। इसके जरिए बांधों से जुड़े तमाम सवालों और समस्याओं के निराकरण के लिए यह समिति सुझाव देगी। संसद ने बांध सुरक्षा अधिनियम, 2021 पारित किया था। पिछले साल राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण की स्थापना की गई।
उनतीस राज्य बांध सुरक्षा संगठन में शामिल भी हैं, जो केंद्र के अनुसार अपनी बांध सुरक्षा इकाइयों से संबंधित अधिकार क्षेत्र में आने वाले बांधों का मानसून पूर्व और बाद में निरीक्षण करते और महत्त्वपूर्ण निर्देश तथा सुझाव भी देते हैं। राज्यों को उनके सुझावों पर अमल करते हुए बांध सुरक्षा को और मजबूत करना चाहिए। इससे बांधों को लेकर समय-समय पर जो संकट उभरते हैं, उनसे कुछ हद तक निजात मिल सकती है।