विश्व के सबसे बड़े देव महाकुंभ कुल्लू दशहरा उत्सव में लाखों की संख्या में श्रद्धालु आए। दशहरा के इतिहास में पहली बार कुल्लू के ढालपुर में 14 देश से आए सांस्कृतिक दलों की कल्चरल परेड निकाली गई। इस परेड में विदेशी कलाकारों के साथ-साथ प्रदेश के कई राज्यों के कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति दी।
बता दें कि हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा महोत्सव का उद्घाटन 24 अक्टूबर को हुआ था। ये उत्सव कुल्लू जिले के ऐतिहासिक रथ मैदान में भगवान रघुनाथ की पारंपरिक रथ यात्रा के साथ शुरू हुआ। महाकुंभ में शामिल होने के लिए कई देवी देवता कल्लू के ढालपुर पहुंचे, जहां ढोल नगाड़ों से उनका स्वागत किया गया। मेले में पहुंचे देवी देवताओं ने भगवान रघुनाथ के दरबार में हाजिरी लगाई।
बता दें कि पारंपरिक रथ यात्रा 30 अक्टूबर तक चलेगी और इसके समापन पर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू भी मौजूद रहेंगे। अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में पहली बार कल्चरल परेड का आयोजन किया गया। यह परेड कुल्लू के ढालपुर के माल रोड होते हुए कॉलेज गेट तक आई।
बुधवार शाम करीब 5:45 बजे परेड शुरू हुई 6:40 बजे ढालपुर चौक पर इसका समापन हुआ। परेड में मलेशिया, रूस, साउथ अफ्रीका, कजाकिस्तान, रोमानिया, वियतनाम, केन्या, श्रीलंका, ताइवान, किरगीस्तान, इराक और अमेरिका सहित 14 देशों ने भाग लिया। अमेरिका, रूस, श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका और केन्या के कलाकारों की डांस प्रस्तुति ने खूब वाहवाही लूटी।
साल 2022 में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दशहरा उत्सव में भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा में शामिल हो चुके हैं। इस दौरान वह पांच अक्टूबर को कुल्लू पहुंचे थे और भगवान रघुनाथ जी की रथ यात्रा को करीबी से देखा था। इस दौरान वह प्रोटोकाल तोड़ते हुए भगवान रघुनाथ जी के रथ तक पहुंचें और नतमस्तक होकर उनका आशीर्वाद लिया।
अयोध्या से कुल्लू लाए गए भगवान रघुनाथ जी का देवभूमि कुल्लू से गहरा नाता है। कुल्लू दशहरा का इतिहास लगभग 400 साल से अधिक पुराना है। कुल्लू के राजा को लगे शाप से मुक्ति पाने के लिए अयोध्या से भगवान राम चंद्र की मूर्ति लाई थी। इसके बाद 1653 में रघुनाथ जी की प्रतिमा को मणिकर्ण मंदिर में रखा गया था। वहीं वर्ष 1660 में इसे पूरे विधि-विधान से कुल्लू के रघुनाथ मंदिर में स्थापित किया गया।