कोयंबटूर के वेल्लियांगिरी पर्वत की तलहटी में स्थित एक अनोखा मंदिर है जहां सभी पुजारी महिलाएं हैं। ‘मां लिंगा भैरवी’ नाम के इस मंदिर को जो बात सबसे अलग करती है वह है इसकी विशिष्ट परंपरा। यहां केवल महिला पुजारियों, जिन्हें ‘भैरागिनी मां’ के नाम से जाना जाता है को ही आंतरिक गर्भगृह में प्रवेश करने और देवी की पूजा करने की अनुमति है। चमकदार लाल साड़ियों में लिपटी ये श्रद्धेय महिला पुजारी विभिन्न जातियों, धर्मों और दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आती हैं।
एक तरफ जहां भारत के अधिकांश मंदिरों में मासिक धर्म के दौरान लड़कियों और महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने, प्रार्थना करने और पवित्र पुस्तकों को छूने पर प्रतिबंध है। इसके विपरीत यह मंदिर, मासिक धर्म के आसपास प्रचलित वर्जनाओं को खारिज कर एक नयी परंपरा स्थापित कर रहा है। यहां महिला भक्तों को उनके मासिक धर्म चक्र के दौरान भी पूजा करने की अनुमति है।
यह मंदिर तमिलनाडु के कोयंबटूर शहर से चालीस किलोमीटर दूर सद्गुरु जग्गी वासुदेव आश्रम में स्थित है। देवी के निवास की दीवारें एक उल्टे त्रिकोण का निर्माण करती हैं, जो सृष्टि के स्त्री गर्भ का प्रतीक है, जबकि आंतरिक भाग में एक छोटा त्रिकोण गर्भ के भीतर अजन्मे पुरुषत्व का प्रतिनिधित्व करता है। मंदिर का डिज़ाइन स्त्री के शरीर का प्रतिनिधित्व करता है।
मूल रूप से लेबनान की रहने वाली एक महिला पुजारी, भैरगिनी मां हनीन ने टाइम्स नाउ से बातचीत के दौरान बताया कि महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने और प्रार्थना करने की अनुमति देने के पीछे क्या विचार है और इस वर्जना को दूर करने का समय क्यों आ गया है?
महिला पुजारी ने बताया, “मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को रसोई या मंदिरों में प्रवेश करने से रोकने की प्रथा का मूल उद्देश्य उन्हें कठिन दैनिक कार्यों से राहत प्रदान करना था। यह परंपरा उस युग में शुरू हुई जब परिवार बड़े थे और महिलाओं को बड़ी संख्या में लोगों के लिए भोजन तैयार करने का काम सौंपा गया था। इसके अतिरिक्त, घरों में प्रार्थना कक्ष विशेष रूप से विशाल थे। इस अवधि के दौरान खाना पकाना अपने आप में एक कठिन काम था। इसलिए महिलाओं को उनके मासिक चक्र के दौरान होने वाले शारीरिक और भावनात्मक परिवर्तनों को पहचानते हुए छुट्टी दी गई।” उन्होंने कहा कि समय के साथ ये चीजें विकृत हो गईं, जिससे मासिक धर्म को वर्जित मानने की गलत धारणा पैदा हो गई।
भैरगिनी मां हनीन ने कहा कि यह जैविक प्रक्रिया ही हमारे अस्तित्व का आधार है। इसे अपवित्र कैसे माना जा सकता है? अगर हम मासिक धर्म को वर्जित करार देते हैं, तो हम अनिवार्य रूप से संपूर्ण मानव अस्तित्व को अशुद्ध घोषित कर रहे हैं।