इंडिया गठबंधन में शामिल दलों के बीच सीट शेयरिंग कैसे होगी, इसपर अभी सवाल बना हुआ है। दिल्ली और पंजाब को लेकर जहां AAP और कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं नजर आ रहा तो वहीं यूपी और बंगाल में भी कांग्रेस के पक्ष में स्थितियां नजर नहीं आ रही हैं। ताजा विवाद सामने आ रहा है देश के मुकुट जम्मू-कश्मीर से, जहां इंडिया गठबंधन में शामिल दलों में बेचैनी की स्थिति नजर आ रही है।
दरअसल यह स्थित नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला के उस सुझाव से पीछे हटने से इनकार से पैदा हुई है जिसमें उन्होंने कहा था कि गठबंधन सहयोगियों के बीच सीटों का बंटवारा सिर्फ वहीं होना चाहिए, जहां BJP के जीतने की उम्मीद हो। कहा जा रहा है कि उनका यह सुझाव महबूबा मुफ्ती की पार्टी को रास नहीं आया है।
अब क्योंकि मुस्लिम बाहुल्य कश्मीर में बीजेपी के जीतने की संभावनाएं बेहद कम मानी जाती हैं, ऐसे में उमर के सुझाव के अनुसार, घाटी में वो पीडीपी और कांग्रेस के लिए कोई सीट छोड़ने को राजी हों। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कश्मीर घाटी में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने श्रीनगर, बारामुला और अनंतनाग सीटों पर जीत दर्ज की थी। बीती 13 सितंबर को दिल्ली में हुई इंडिया गठंबधन की मीटिंग में उमर की टिप्पणी दिखाती है कि वो फिर से इन तीनों सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं।
दूसरी तरफ पीडीपी की तरफ से भी यह संकेत दिए गए हैं कि वो बारामुला और श्रीनगर की सीट NC के लिए छोड़ने को तैयार है। अगस्त में मुंबई में हुई मीटिंग में पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती ने वरिष्ठता का हवाला देकर NC अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला पर सीट शेयरिंग का फैसला छोड़ दिया था।
इस महीने की शुरुआत में दिल्ली में हुई मीटिंग उमर अब्दुल्ला ने मीडिया से कहा, “मैंने सिर्फ इतना कहा है कि जब आप सीट शेयरिंग की बात कर रहे हैं तो एक फॉर्मूला होना चाहिए… अगर हमारा लक्ष्य BJP को हराना है तो हमें उन सीटों पर गठबंधन करना चाहिए जहां BJP को जीत की उम्मीद है। मुझे नहीं लगता कि BJP को कश्मीर से कोई सीट मिल रही है। मैंने सिर्फ अपना नजरिया सामने रखा है।”
NC नेता ने अपनी बात पर कायम रहते हुए कहा, “क्या मुझे अपना नजरिया सामने नहीं रखना चाहिए? मैंने अपनी पार्टी का व्यूपॉइंट बता दिया है और यह मेरा अधिकार है। मैंने अपनी राय किसी पर थोपी नहीं है। मैं बैठक से बाहर नहीं गया हूं और न ही बैठक का बहिष्कार किया हूं।”
उमर की इस टिप्पणी पर जहां PDP ने अपनी नाराजगी जाहिर कर दी है, वहीं कांग्रेस भी इसे टाल सकती है क्योंकि वह कश्मीर घाटी के साथ-साथ जम्मू के मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में भी अपनी मौजूदगी का दावा कर सकती है। जम्मू रीजन की दो लोकसभा सीटें – जम्मू और उधमपुर – वर्तमान में भाजपा के पास हैं।
जम्मू-कश्मीर में आखिरी विधानसभा चुनाव साल 2014 में हुए थे। तब पीडीपी को कुल 28 सीटें मिली थीं। इनमें कश्मीर घाटी में 25 और जम्मू रीजन के मुस्लिम बाहुल्य इलाकों से 2 सीटें थीं। नेशनल कॉन्फ्रेंस को 15 सीटें मिली थीं- इनमें कश्मीर घाटी से 12 और जम्मू के हिंदू बाहुल्य इलाके से 2 और मुस्लिम एरिया से एक सीट शामिल हैं। कांग्रेस पार्टी को इस चुनाव में 12 सीटें मिली थीं। यह सभी कश्मीर और जम्मू के मुस्लिम एरिया से हैं।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के एक नेता ने तर्क देते हुए कहा कि इतने सालों से हम एक-दूसरे के खिलाफ लड़ते रहे हैं। भले ही अब हमारे कुछ कॉमन टारगेट हैं, लेकिन अपने वर्कर्स और वोटर्स को उस पार्टी को वोट देने के लिए मनाना आसान नहीं है जिसे आपने उन्हें हमारा दुश्मन बताया है। हम जानते हैं कि अगर हम एक-दूसरे के खिलाफ लड़ते हैं तो भी घाटी में BJP के लिए कोई जगह नहीं है। इसलिए इससे BJP को बाहर रखने के हमारे बड़े लक्ष्य पर कोई असर नहीं पड़ेगा। मुझे नहीं लगता कि यह लोगों के साथ किसी भी तरह का विश्वासघात है।”
वहीं दूसरी तरफ कश्मीर घाटी के उलट जम्मू क्षेत्र में NC और PDP के पास ज्यादा कुछ मालूम नहीं पड़ता। हालांकि ऐसा कहा जा रहा है कि BJP ने मेनलैंड जम्मू में अपनी जमीन खो दी है। इस क्षेत्र में BJP ने 2014 में जीत हासिल की थी। ऐसे में यहां कांग्रेस ही एकमात्र विकल्प मालूम पड़ती है लेकिन एक मजबूत नेतृत्व न होने की वजह से इसमें बाधा आ सकती है।
उमर के फॉर्मूल के अनुसार, NC जम्मू में बीजेपी को हराने के लिए सीट का दावा कर सकती है लेकिन कश्मीर में कोई सीट छोड़ने के लिए राजी नहीं होगी। कई PDP नेता उमर की टिप्पणी को घाटी में “गठबंधन धर्म” के साथ विश्वासघात के रूप में देखते हैं।
PDP के एक अन्य नेता कहते हैं, “मैं यह नहीं कहूंगा कि यह विश्वासघात है लेकिन यह दुखद बात होगी। अगर हम इस पॉइंट पर भी अलग-अलग रास्ते अपनाते हैं तो हम क्या सियासी मैसेज देना चाह रहे हैं? और अकेले जाकर हमें क्या हासिल होने वाला है? अगर चुनाव हुए भी तो हम ऐसी सरकार चलाएंगे जो नगर पालिका से भी बदतर होगी। सारी शक्तियां केंद्र के पास हैं।”