सुप्रीम कोर्ट ने सैन्य अस्पताल में संक्रमित रक्त चढ़ाने की वजह से एचआइवी संक्रमण का शिकार हुए वायुसेना के पूर्व अधिकारी को डेढ़ करोड़ रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया है। यह अधिकारी 2002 में पाकिस्तान के खिलाफ चल रहे आपरेशन पराक्रम के दौरान ड्यूटी पर बीमार पड़ने के चलते अस्पताल में भर्ती हुए थे।
जम्मू-कश्मीर के एक सैन्य अस्पताल में उनकी जिंदगी बचाने के मकसद से उन्हें एक यूनिट रक्त चढ़ाया गया था। दरअसल, पीड़ित जब 2014 में बीमार हुआ तब उसे अपने एचआइवी संक्रमित होने का पता चला। इसके बाद उसने जुलाई 2002 के दौरान अस्पताल में भर्ती होने की व्यक्तिगत घटना रिपोर्ट (पीओआर) कार्रवाई के बारे में जानकारी मांगी।
उनकी मेडिकल केस शीट उन्हें मिल गई। इसके बाद 2014 और 2015 में मेडिकल बोर्ड आयोजित किए गए। जिसमें जुलाई 2002 में एक यूनिट रक्त के संक्रमण के कारण उन में विकलांगता पाई गई। उसके सेवा विस्तार को अस्वीकार करते हुए 31 मई 2016 को सेवा से मुक्त कर दिया गया।
लेकिन इतने लंबे अंतराल के बाद यह साबित करना मुश्किल था कि वे सैन्य अस्पताल में खून चढ़ाने के वक्त ही संक्रमण के शिकार हुए थे। उन्होंने 2017 में मुआवजे के लिए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) का दरवाजा खटखटाया। लेकिन एनसीडीआरसी ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया।
इसके बाद पीड़ित ने 2022 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने वायुसेना के इस पूर्व अधिकारी के संक्रमण का शिकार होने के लिए मंगलवार को भारतीय वायु सेना और सेना दोनों को सामूहिक रूप से लापरवाही के लिए जिम्मेदार माना।