राजस्थान चुनाव से पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और राज्य के पूर्व डिप्टी सीएम एकजुट नजर आ रहे हैं। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व द्वारा चुनाव से पहले दोनों नेताओं को एक साथ लाना पार्टी की बड़ी कामयाबी माना जा रहा है। हालांकि दोनों नेता अब भले ही सबकुछ भुलाकर एकजुटता के दावे कर रहे हों लेकिन जमीन पर नजारे कुछ अलग नजर आ रहे हैं। चुनाव के दौरान पूर्वी राजस्थान कैसे वोट करता है, यह कांग्रेस के लिए काफी महत्वपूर्ण रहने वाला है।
पिछले हफ्ते सवाई माधोपुर से कांग्रेस विधायक और सीएम अशोक गहलोत के एडवाइजर दानिश अबरार को अपनी ही विधानसभा में विरोध का सामना करना पड़ा। देवनारायण भगवान के सम्मान में आयोजित किए गए एक कार्यक्रम में उनके विरोध में ‘पायलट के गद्दारों को, गोली मारो…’ जैसे नारे लगाए गए। देवनारायण भगवान के प्रति गुर्जर समुदाय में विशेष आस्था है। सचिन पायलट गुर्जर समुदाय से आते हैं। घटना से जुड़े एक वीडियो में दानिश अबरार मंच पर नजर आ रहे हैं जबकि कार्यक्रम में आए कुछ लोग लगातार नारे लगा रहे हैं जबकि आयोजकों की तरफ से उन्हें समझाने की कोशिश की जा रही है।
सवाई माधोपुर में हुई यह घटना दिखाती है कि कांग्रेस हाई कमान द्वारा पायलट और गहलोत के मसले को सुलझाने के दावे के बावजूद जमीन पर स्थितियां कुछ और है। सचिन पायलट ने भले ही गहलोत सरकार की आलोचना बंद कर दी हो लेकिन दोनों ही नेताओं के समर्थकों के बीच मतभेद अभी भी कायम हैं और कांग्रेस के लिए चिंता की बड़ी वजह है।
दानिश अबरार से सचिन पायलट के समर्थक जुलाई 2020 से ही नाराज बताए जा रहे हैं। उस समय पायलट ने गहलोत सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। पायलट राजस्थान कांग्रेस के 18 विधायकों के साथ हरियाणा के मानेसर पहुंच गए थे। तब दानिश अबरार, चेतन दुदी और रोहित बोहरा- तीनों पहली बार के विधायक- की गिनती पायलट के नजदीकियों में होती थी लेकीन ये उन 18 विधायकों में शामिल नहीं थे।
उस समय पार्टी सूत्रों ने कहा था कि ज्यादा विधायक पायलट के साथ थे लेकिन पार्टी और उनके परिवारों द्वारा समझाए जाने के बाद वो दिल्ली से लौट आए। माना जाता है कि दानिश अबरार, चेतन दुदी और रोहित बोहरा उन्हीं विधायकों में से एक हैं। उस समय कांग्रेस में उपजे संकट के बीच, इन्होंने गहलोत के आवास पर मीडिया को संबोधित किया था। तब उन्होंने इशारा किया था कि महीने भर के संकट में बड़ी भूमिका निभाई थी।
तब विधायकों ने कहा था कि वो अपने पर्सनल कारणों से दिल्ली गए थे और वो कांग्रेस के वफादार सिपाही बने रहेंगे। उन्होंने मीडिया पर यह अफवाह फैलाने का आरोप लगाया कि शुरुआत में पायलट का साथ देने के बाद उन्होंने आखिरी समय में पलटी मार दी। हालांकि तीनों ही विधायकों ने घटना के बारे में ज्यादा बात नहीं की लेकिन गहलोत कई बार जनता के सामने उन्हें धन्यवाद कर चुके हैं।
साल 2021 में दानिश अबरार को अशोक गहलोत का एडवाइजर बनाया गया। मई में गहलोत ने उनकी फिर से प्रशंसा की और कहा कि पार्टी उनकी वफादारी कभी नहीं भूल सकती है। मुख्यमंत्री ने तब कहा था, “अगर इन तीन विधायकों ने मुझे समय पर सपोर्ट नहीं किया होता, मैं इस समय आपके सामने सीएम के तौर पर खड़ा नहीं होता।”
अबरार का विरोध कांग्रेस के लिए चिंता बढ़ाने वाला इसलिए है क्योंकि पूर्वी राजस्थान को सचिन पायलट के प्रभाव वाला इलाका माना जाता है। 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने इस क्षेत्र में दमदार प्रदर्शन किया था। अगर चुनाव के दौरान जमीन पर पायलट और गहलोत समर्थकों के बीच मतभेद दिखाई देंगे तो यह कांग्रेस के लिए नुकसानदायक होगा।
राजस्थान का दौसा जिला पायलट परिवार का गढ़ माना जाता है। क्षेत्र में अन्य जिलों में भी गुर्जर और मीणा समुदाय की अच्छी संख्या है। इन दोनों ही समुदायों के बीच एक-दूसरे का राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी माना जाता है, बावजूद इसके पायलट का मीणा समुदाय में भी सपोर्ट बेस है। उन्हें गुर्जर समुदाय का समर्थन तो हासिल ही है। इन्हें राजस्थान में बीजेपी का समर्थक माना जाता है।
फिलहाल सवाई माधोपुर में बीजेपी के पास एक भी सीट नहीं है। इस जिले में चार विधानसभा सीटें हैं। साल 2018 में पूर्वी राजस्थान में बीजेपी भरतपुर, दौसा, दौलपुर, करौली और सवाई माधोपुर जिलों में सिर्फ एक सीट जीत पायी थी। इन जिलों में विधानसभा सीटों की संख्या 24 है।