एक नए अध्ययन में विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में पक्षियों और चमगादड़ों से मनुष्यों और घरेलू जानवरों में रोग फैलाने वाले प्रोटोजोआ, बैक्टीरिया और वायरस की व्यापकता की जांच की गई है। इनमें से कई बीमारी फैलाने वाले रोगजनक सीधे तापमान या वर्षा से जुड़े पाए गए। मतलब,किसी भी संक्रमित बीमारी से ग्रसित लोगों के लिए जलवायु परिवर्तन खतरनाक साबित हो सकता है।
साइंस पत्रिका इकोग्राफी में प्रकाशित अध्ययन में लगभग 400 पक्षियों और 40 चमगादड़ों की प्रजातियों से 75 से अधिक बीमारी फैलाने वाले रोगजनकों की जानकारी एकत्र की गई। जलवायु संबंधी कारणों के साथ बीमारी की घटनाओं के आंकड़े के विश्लेषण से पता चला कि अधिकांश रोगजनकों से फैलने वाली बीमारी का संबंध तापमान या वर्षा से जुड़ी पाई गई।
हेलसिंकी विश्वविद्यालय के फिनिश म्यूजियम आफ नेचुरल हिस्ट्री के प्रमुख अध्ययनकर्ता यान्जी जू के अनुसार, सामान्य तौर पर, गर्म और शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में रोगजनक बैक्टीरिया की घटना बढ़ गई है। वहीं दूसरी ओर, रोगजनक वायरस नम जलवायु पसंद करते हैं। अधिकांश आंकड़ों के साथ 17 रोगजनक टैक्सा पर जलवायु कारकों और रोगजनकों के बीच संबंधों की जांच की जा सकती है, इनमें देखे गए संबंध अलग-अलग थे।
यहां बताते चलें कि, टैक्सा एक प्रजाति के साम्राज्य से उप-प्रजाति तक का वर्गीकरण हैं। कुछ वर्गीकरण समूहों को पौधे, प्रोटिस्ट और पशु वर्गीकरण में समान रूप से वगीर्कृत किया गया है। उन्हें साम्राज्य, फाइलम, वर्ग, क्रम, परिवार, वंश, प्रजाति और उप-प्रजाति के क्रम में रखा गया है। यूनिवर्सिटी ऑफ तुर्कू इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिसिन के शोधकर्ता, आर्टो पुलिएनेन बताते हैं कि तापमान एवियन फ्लू वायरस, मलेरिया-परजीवी और पक्षियों और चमगादड़ों में क्लैमाइडिया, साल्मोनेला, क्यू-बुखार और टाइफस का कारण बनने वाले बैक्टीरिया से जुड़ा हुआ पाया गया।
रोग फैलाने की घटना के साथ बारिश का सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरह के संबंध देखा गया। उदाहरण के लिए, बढ़ती वर्षा से उसुतु, सिंदबिस और एविया फ्लू वायरस के साथ-साथ साल्मोनेला बैक्टीरिया के बीमारी फैलाने की दर बढ़ गई है।
अध्ययनकतार्ओं ने कहा, उसुतु और सिंदबिस वायरस मच्छरों द्वारा फैलते हैं, बारिश मच्छरों द्वारा पसंदीदा नमी वाली जमीन में रहते हैं, जहां से इनसे फैलने वाली बीमारियां बढ़ सकती है। इसी तरह, एवियन फ्लू और साल्मोनेला विशेष रूप से पानी की पक्षी में प्रचलित हैं, जिनके लिए आर्द्रभूमि भी महत्त्वपूर्ण हैं। 700 से अधिक शोध पत्रों और लगभग पांच लाख आकलनों के परिणामों को एकत्र करते हुए, यह अध्ययन इस धारणा को और मजबूत करता है कि जलवायु परिवर्तन संक्रामक रोगों के खतरों को बदलकर और खतरनाक बना सकता है।
जलवायु परिवर्तन रोगजनकों और उनके रहने वालों, जंगली जानवरों दोनों की वितरण सीमा को बदल देता है। पक्षियों की वितरण सीमा पहले से ही प्रति वर्ष एक किलोमीटर से अधिक उत्तर की ओर बढ़ती देखी गई है। जलवायु परिवर्तन पर्यावरण में रोगजनकों की घटना को भी प्रभावित करता है। अध्ययन में बताया गया है कि, ऐसी आशंका है कि उत्तरी यूरोप में जलवायु परिवर्तन के कारण थमोर्फीलिक रोगजनक अधिक आम होते जा रहे हैं।
मालूम हो कि विश्व भर में जलवायु परिवर्तन का विषय सर्वविदित है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वर्तमान में जलवायु परिवर्तन वैश्विक समाज के समक्ष मौजूद सबसे बड़ी चुनौती है एवं इससे निपटना वर्तमान समय की बड़ी आवश्यकता बन गई है। आँकड़े दशार्ते हैं कि 19वीं सदी के अंत से अब तक पृथ्वी की सतह का औसत तापमान लगभग 1.62 डिग्री फॉरनहाइट (लगभग 0.9 डिग्री सेल्सियस) बढ़ गया है।
इसके अतिरिक्त पिछली सदी से अब तक समुद्र के जल स्तर में भी लगभग 8 इंच की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि यह समय जलवायु परिवर्तन की दिशा में गंभीरता से विचार करने का है।