भारत और कनाडा के बीच में रिश्ते सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। हरदीप सिंह निज्जर की हत्या ने दोनों देशों के बीच में अविश्वास की एक ऐसी खाई पैदा कर दी है जो लंबे समय तक नहीं पटने वाली है। इसके ऊपर जिस तरह से प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो लगातार भारत के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं, जिस तरह से मोदी सरकार के ही किसी एजेंट को निज्जर की हत्या का जिम्मेदार बता रहे हैं, बिगड़े रिश्ते और ज्यादा खराब हो चले हैं। बड़ी बात ये है कि ट्रूडो अपने बयानों पर कायम चल रहे हैं, उनकी तरफ किसी तरह की नरमी नहीं दिखाई गई है।
अब इसे जस्टिन ट्रूडो की जिद बोलिए, नासमझी बोलिए, उन्होंने इस समय जिस देश से पंगा ले रखा है, उस पर उनकी अर्थव्यवस्था बहुत हद तक निर्भर रहती है। कनाडा में इस समय जो सिख समुदाय रह रहा है, वो सिर्फ जनसंख्या के लिहाज से ज्यादा नहीं है, बल्कि कनाडा के हर सेक्टर में इसी समुदाय का बोलबाला चल रहा है। पिछले साल जब कनाडा में जनगणना की गई थी, उसकी रिपोर्ट में बताया गया था कि कनाडा की कुल आबादी का 18 फीसदी भारतीय तबका है। वहां भी 2.1 प्रतिशत तो सिख समुदाय है जो भारत के बाद कनाडा में ही सबसे ज्यादा बसा हुआ है। कनाडा के टोरंटो, ओटावा, वॉटरलू और ब्रैम्टन में इस समय सबसे ज्यादा भारतीय बसे हुए हैं, वहां भी टोरंटों में जैसा विकास चल रहा है, उसमें इन्हीं भारतीयों का सबसे ज्यादा योगदान है।
अब ये जो आंकड़े है, ये अपने आप में कनाडा में भारत की सक्रियता को दर्शा देते हैं। लेकिन इस समय कनाडा की एक सबसे बड़ी कमजोरी है, या कह सकते हैं कि उसकी उस चीज पर बहुत ज्यादा निर्भरता है। असल में कनाडा में साल 2018 के बाद से सबसे ज्यादा भारतीय पढ़ने आ रहे हैं। जानकार मानते हैं कि आसान वीजा सिस्टम, सरल एजुकेशन कुछ ऐसे कारण हैं जिस वजह से विदेश में पढ़ाई करने के सपने देख रहे भारतीय सीधे कनाडा का रुख कर लेते हैं, वहां भी पंजाब से ही सबसे ज्यादा बच्चे इस देश में जाने की इच्छा रखते हैं। अब ये जो इच्छा है, इसका कनाडा ने पिछले कई सालों में बहुत अच्छे से इस्तेमाल किया है।
एक आंकड़ा बताता है कि कनाडा में पढ़ने के लिए जो सिख छात्र जाते हैं, सालभर में कुल 68 हजार करोड़ के करीब खर्च हो जाता है। ये सारा पैसा कनाडा की अर्थव्यवस्था को और ज्यादा समृद्ध करने का काम करता है। असल में कनाडा में छात्र पढ़ने जरूर जा रहे हैं, लेकिन वहां पर कॉलेज फीस, ट्यूशन फीस इतनी ज्यादा रहती है कि सरकार को अकेले भारतीय समुदाय से ही अच्छा खासा मुनाफा मिल जाता है। ये जो 68 हजार वाला आंकड़ा है, ये तो बस सिख समुदाय से ही मिल रहा है। अगर यहां दूसरे राज्यों से आने वाले भारतीयों को भी जोड़ दिया जाए तो नंबर 20 बिलियन डॉलर तक जा सकता है। बड़ी बात ये है कि कनाडा में इस समय कई ऐसी यूनिवर्सिटी हैं जहां पर भारतीय ही सबसे ज्यादा पढ़ते हैं, कह सकते हैं कि उन्हीं की वजह से वो इतनी अच्छी तरह संचालित हो पा रही हैं।
अब जस्टिन ट्रूडो ने जब से भारत से पंगा लिया है, उन्होंने इस पहलू को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। ट्रूडो की ये भूल कनाडा की अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ी चोट दे सकती है जिसके घाव शायद कई सालों तक ना भरे। अभी तो भारत सरकार काफी सधे हुए कदम बढ़ा रही है, लेकिन अगर रिश्ते और ज्यादा बिगड़ते हैं तो उस स्थिति में ये फैसला भी लिया जा सकता है कि भारतीय छात्रों का कनाडा जाने पर ब्रेक लग जाए। उस स्थिति में कनाडा की कई यूनिवर्सिटी में ताले लग सकते हैं, सीधे-सीधे वहां की अर्थव्यवस्था को 68000 करोड़ की चपत लग सकती है।
वैसे भारतीय छात्रों की अहमियत को सिर्फ इस 68 हजार के आंकड़े से नहीं समझा जा सकता है। एक रिपोर्ट बताती है कि जितना पैसा Ontario की सरकार द्वारा कनाडा की अर्थव्यवस्था में इनवेस्ट किया जा सकता है, उससे भी दोगुना ज्यादा तो भारतीय समुदाय ही कॉलेज फीस जमा कर देता है। असल में कनाडा में साल 2000 के बाद से दूसरे देशों से आने वाले छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ी है। जो आंकड़ा किसी जमाने में 40 हजार माना जाता था, वो अब 4 लाख 20 हजार को भी पार कर चुका है। जानकार बताते हैं कि दुनिया में अच्छे कॉलेज का पैरामीटर कई बार इस बात से भी डिसाइड होता है कि वहां कितने इंटरनेशनल स्टूडेंट पढ़ते हैं, ऐसे में कनाडा भी इस वजह से भारतीयों को बुलाने में सबसे आगे रहता है। इसी तरह ये बात भी सच है कि एक कॉलेज को जितना पैसा एक स्थानीय छात्र से मिलेगा, उससे कहीं ज्यादा तो एक भारतीय छात्र फीस के रूप में जमा करवाता है।
अब वर्तमान तनाव की वजह से ट्रूडो इस फायदो पूरी तरह भूल चुके हैं, उन्हें इस बात का अहसास नहीं हो रहा कि उनकी पहले ही खस्ता चल रही अर्थव्यवस्था पर कितना बड़ा प्रहार हो सकता है। वैसे इस समय अकड़ दिखा रहा कनाडा ये भी भूल गया है कि भारत की कई बड़ी कंपनियां इस समय कनाडा में अपना व्यापार कर रही हैं, वहां पर टैक्स भरती हैं, हजारों लोगों को बेरोजगार देने का काम करती हैं। बड़ी बात ये है कि TCS, इन्फ़ोसिस, विप्रो जैसी 30 इंडियन कंपनियों ने कनाडा में इस समय अरबों-खरबों का निवेश कर रखा है। इसके ऊपर भारतीय मूल के ही कई बड़े उद्योगपति इस समय कनाडा की अर्थव्यवस्था की लाइफलाइन माने जाते हैं।
ये सारे आंकड़े बताने के लिए काफी हैं कि कनाडा सरकार इस समय भारतीयों के तमाम योगदान के बावजूद भी एहसान फरामोश वाली स्थिति में बनी हुई है। उसे इस बात की भी चिंता नहीं है कि वर्तमान में भारत ही कनाडा को कपड़े, दवाइयां, आर्गनिक रसायन, डायमंड, लोहा, स्टील, विमान उपकरण आदी बेचता है। जब भारत से ये सारी चीजें निर्यात होती हैं, तब जाकर कनाडा के कई व्यापार चल पाते हैं। कनाडा तो ये भी नहीं कह सकता कि वो भारत को ज्यादा सामान निर्यात करता है क्योंकि इस समय दोनों ही देशों द्वारा एक समान कारोबार किया जा रहा है। एक रिपोर्ट बताती है कि वित्त वर्ष 2023 में भारत ने कनाडा में 34 हजार करोड़ का सामान निर्यात किया, वहीं भारत ने कनाडा से 35000 करोड़ का सामान आयात किया, यानी कि बराबर की स्थिति चल रही है।
वैसे जस्टिन ट्रूडो इस समय जो इतने आक्रमक दिख रहे हैं, उसके भी अपने कई कारण माने जा रहे हैं। ये बात अब जगजाहिर हो चुकी है कि ट्रूडो के कार्यकाल में देश की विदेश नीति पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। वहां के जानकार ही ये बात बोलते नहीं थक रहे कि जस्टिन ट्रूडो ने कई देशों के साथ रिश्ते खराब करवा दिए हैं। वो तो यहां तक कह रहे हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी ने जी20 समिट के दौरान ट्रूडो को ज्यादा तवज्जो भी इसलिए नहीं दी क्योंकि उनकी तरफ खालिस्तान को लेकर विवादित स्टैंड लिया गया। इसके ऊपर कनाडा के नागरिक ही महंगाई से त्रस्त चल रहे हैं, जानकार मानते हैं कि आने वाले समय में कनाडा की अर्थव्यवस्था मंदी के दौर में जा सकती है। इसी वजह से जस्टिन ट्रूडो की लोकप्रियता सबसे निचले स्तर पर जा पहुची है, उनकी लिबरल पार्टी वाली सरकार भी भयंकर एंटी इनकमबैंसी से गुजर रही है। ऐसे में ध्यान भटकाने के लिए भारत को इस सब में घसीटा जा रहा है, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता।