कलकत्ता हाई कोर्ट ने रेप मामले को लेकर एक बड़ी टिप्पणी की है। हाई कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि रेप केस में महिला के बयान को उत्कृष्ट या सबसे अच्छा सबूत नहीं माना जा सकता। यह टिप्पणी मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस अनन्या बंदोपाध्याय ने की है।
सुनवाई के दौरान जस्टिस ने कहा, “बलात्कार की पीड़िता के घायल होने को ही ‘स्टर्लिंग विटनेस’ बताया गया है। एक रूढ़िवादी समाज में महिला धोखे से खराब नैतिक व्यवहार नहीं करेगी और खुद को परिवार या समाज में अपमानित नहीं करती है। लेकिन इसे सार्वभौमिक नहीं माना जा सकता।”
हाई कोर्ट में एक 2006 में हुए रेप केस की सुनवाई चल रही थी। इसमें आरोप लगाया गया है कि महिला का पड़ोसी उसके घर तब पहुंचा जब वह अकेली थी और उसके बाद उसने उसके मुंह में कपड़ा ठूंस दिया और उसका रेप किया। हालांकि बाद में क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान महिला ने यह भी कहा कि जब आरोपी उसके कमरे में पहुंचा तब वह अपने बच्चे को स्तनपान कर रही थी।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि बच्चे को जमीन पर फेंक दिया गया और महिला ने तब आवाज नहीं उठाई। पुरुलिया कोर्ट ने इस मामले में आरोपी को दोषी करार दिया था। लेकिन हाई कोर्ट में बचाव पक्ष संदेह के अलावा इस मामले में कुछ भी पेश नहीं कर सका। हाई कोर्ट ने पुरुलिया कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में माना है कि महिला रेप जैसी वारदात नहीं कर सकती। लेकिन इस काम में उसने दूसरे लोगों की मदद की है तो उसके खिलाफ 376 D के तहत गैंगरेप का केस चलाया जा सकता है। जस्टिस शेखऱ कुमार ने उस दलील को खारिज कर दिया जिसमें ये कहा गया था कि न तो महिला के खिलाफ रेप का केस दर्ज किया जा सकता है और न ही उसके खिलाफ ऐसा मामला चलाया जा सकता है।
हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 375 की व्याख्या करते हुए कहा कि इसके तहत महिला को रेप के मामले में आरोपी नहीं माना जा सकता लेकिन 376 D के तहत उसे आरोपी बनाया जा सकता है। जस्टिस शेखर यादव ने आईपीसी के सेक्शन 11 के साथ आक्सफोर्ड डिक्शनरी का हवाला देते हुए कहा कि इसमें PERSON को दो तरह से बताया गया है। एक में इसका मतलब आदमी, औरत और बच्चे से होता है जबकि दूसरे में लिविंग बॉडी और ह्यूमन बींग से होता है।