दुनिया में इतनी अशांति है इन दिनों कि हम अपने देश की अंदरूनी समस्याओं को भूल गए हैं। जबसे हमास के दरिंदों ने इजराइल में घुस कर निहत्थे लोगों को मार डालने के बाद दो सौ से ज्यादा बच्चे, बुजुर्ग और महिलाओं को बंदी बनाकर अगवा किया है भारतवासियों को ऐसा लगा है जैसे कि यह हमला हम पर हुआ है। शायद इसलिए कि हमने इस तरह का जिहादी आतंकवाद दशकों से देखा है या शायद इसलिए कि इंटरनेट ने दुनिया की सीमाएं मिटा दी हैं। मैंने पाया है कि पश्चिमी देशों में जहां आम लोगों की हमदर्दी गाजा के लोगों के साथ ज्यादा है, भारत के लोगों की सहानुभूति इजराइल के साथ है।
इस बीच हम जैसे भूल से गए हैं कि बिलकुल वैसे जैसे गाजा पट्टी के बारे में कहा जाता है कि वह एक खुली जेल है वही बात कही जाती है कश्मीर घाटी के बारे में। इत्तफाक है कि मैं श्रीनगर पहुंची हमास के हमले के कुछ दिन बाद। बहुत दिनों से जाने का इरादा था ये देखने कि धारा 370 के हटने के बाद कश्मीर का क्या हाल हुआ है। पिछली बार जब जाने की कोशिश की थी तो मैं बीमार पड़ गई थी यात्रा के दिन। होटल में तब तक कमरे के पैसे दे चुकी थी और उन्होंने कहा कि पैसे तो वापिस नहीं हो सकते हैं, लेकिन बुकिंग रहेगी मेरे नाम से। इसके बाद पता लगा कि पर्यटक इतने जा रहे हैं कश्मीर कि इस बुकिंग का फायदा लेने का मौका चार महीने बाद ही मिला।
श्रीनगर के मैंने कई रूप देखे हैं। बचपन में उसका उदार हिंदी फिल्मों वाला रूप देखा है। फिर जब अराजकता फैलने लगी 1987 वाले चुनाव के बाद बहुत बार जाना हुआ किसी ना किसी आतंकवादी घटना के बारे में लिखने। उन दिनों हवाई अड्डे से निकलते ही तनाव महसूस होता था सो इस बार अजीब लगा जब तनाव दिखा नहीं। हां, हर सड़क पर हथियारबंद सिपाही जरूर दिखे।
जब मैंने अपने टैक्सी वाले से इनके बारे में पूछा उसका जवाब था, ‘ये लोग हमारी सुरक्षा के लिए हैं’। शहर में दाखिल हुए तो नए, नए माल दिखे, नए होटल, नए रेस्तरां, नए बाजार। पर्यटकों की भीड़ हर जगह।राजनीतिक हाल के बारे में जानने के लिए कुछ पुराने दोस्तों से मिली और कुछ बातें आम लोगों से भी हुईं।
मालूम ये हुआ कि ऊपर से ‘सब चंगा है’ यानी बहुत वर्षों की अशांति के बाद आम कश्मीरियों को मौका मिला है कुछ पैसे कमाने का तो इस बात से वो बहुत खुश हैं। लेकिन जब थोड़ा कुरेदा मैंने तो ये भी पता लगा कि इस शांति की चादर के नीचे अभी भी राजनीतिक अशांति है जो दिखते ही कुचल दी जाती है इतनी बेरहमी से कि पिछले सप्ताह तीन चार आतंकवादी घटनाओं के बाद पूर्व आतंकवादियों के कई सौ परिजनों को हिरासत लिया गया।
समस्या यह है कि इस तरह की गिरफ्तारियों से नुकसान ज्यादा और फायदा कम होता है इसलिए कि मालूम करना मुश्किल हो जाता है कि वास्तव में शांति है कि सिर्फ शांति की नाजÞुक चादर। श्रीनगर में मैंने जब कुछ राजनीतिक दोस्तों और पत्रकारों से बातें की तो पता ये लगा कि धारा 370 के हटाए जाने से लोगों को इतना दुख नहीं है जितना राजनीतिक अधिकारों को छीने जाने से है।
कश्मीर की राजनीति को मैंने करीब से देखा है वर्षों से। इसलिए यकीन मानिए जब कहती हूं कि जितनी जल्दी कश्मीर को पूर्ण राज्य फिर से बनाया जाए उतना अच्छा होगा। जितनी जल्दी चुनाव होते हैं उतना अच्छा होगा। इतिहास गवाह है कि राज्यपाल अक्सर कश्मीर घाटी में असली शांति लाना में विफल रहे हैं। जितने भी काबिल हों गवर्नर साहिब कभी नहीं जान पाते हैं कि आम लोगों की तकलीफें क्या हैं। जितनी देर तक कश्मीर घाटी का शासन केंद्र सरकार के हाथों में रहेगा उतना ही तय है कि जब चुनाव आएंगे लोग अपना वोट अलगाववादियों को देंगे।
मेरा अनुभव रहा है कि दिल्ली में जो गलतियां होती रही हैं कश्मीर घाटी को लेकर उसका सबसे बड़ा कारण यही रहा है कि इस राज्य की हकीकत उनसे छिपा के रखी गई है। मैंने जब कश्मीर की राजनीति पर लिखना शुरू किया था 1981 में जब शेख अब्दुल्ला ने फारूक के सर पे ‘कांटों का ताज’ रखा था एक आम सभा में। उस समय मुट्ठी भर मुसलिम पत्रकार थे। दिल्ली से आए हिंदू पत्रकार अपने आपको भारत के ‘वायसराय’ समझते थे। अक्सर ये ‘वायसराय’ घाटी की असलियत दिल्ली के शासकों से छिपाने का काम करते थे। आज भी तकरीबन वही हाल है। उन्हीं मीडिया वालों को लिखने-बोलने की आजादी है जो नरेंद्र मोदी और भारत सरकार की तारीफ करते हैं।
ऐसा कहने के बाद लेकिन ये भी कहना चाहूंगी कि अंधेरा होने के बाद मैं पुराने श्रीनगर के उन इलाकों में घूम सकी थी इस बार जहां कभी मिलते थे सिर्फ आतंकवादी और पाकिस्तान के हमदर्द। आज उन्हीं रिहायशी इलाकों में देर रात तक खुले रहते हैं रोशनियों से चमकते बाजार और शादियों के लिए सजे हुए क्लब। इन चीजों को देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा लेकिन ये भी कहना जरूरी समझती हूं कि समय आ गया है कश्मीर को अपने खोये हुए राजनीतिक अधिकार वापस देने का।
ऐसा नहीं होता है अगर तो शांति की चादर के नीचे जो उबाल मैंने महसूस किया वो उबल कर कभी भी बाहर आ सकता है। अब जब सारी दुनिया में मुसलमानों की हमदर्दी फिलिस्तीनियों के लिए जाहिर की जा रही है कश्मीर घाटी में इसका असर आने में देर नहीं लगेगी। भारत सरकार से अर्जी है विनम्रता से कि कश्मीर घाटी में लोकतंत्र वापिस लाने का समय आ गया है।