Chief Justice of India DY Chandrachud: भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु संसद को तय करनी है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि न्यायाधीशों को सेवानिवृत्त होना ही चाहिए। शनिवार हिंदुस्तान टाइम्स के एक कार्यक्रम में बोलते हुए सीजेआई ने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की तुलना में भारतीय मॉडल में अंतर पर प्रकाश डाला। सीजेआई ने जजों की सेवानिवृत्ति की आयु पर अपना नजरिया साझा किया। उन्होंने कहा, जहां अमेरिकी सिस्टम में न्यायाधीशों के लिए सेवानिवृत्ति की कोई उम्र नहीं है, वहीं भारत में न्यायाधीश सेवानिवृत्त होते हैं।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु तय करना संसद का काम है। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों के लिए सेवानिवृत्ति की कोई आयु निर्धारित नहीं करने का प्रावधान किया है। हम एक अलग मॉडल का पालन करते हैं। उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि न्यायाधीशों को सेवानिवृत्त होना चाहिए। यह मनुष्य के लिए जरूरी है। न्यायाधीश भी इंसान हैं…जैसे-जैसे मुद्दे बदलते हैं, आपको यह जिम्मेदारी आने वाली पीढ़ियों को सौंपनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कानूनी सिद्धांतों के परिवर्तन और रूपांतरण का स्रोत इसी तरह विकसित होता है।
न्यायाधीशों के सामने आने वाली चुनौतियों की ओर इशारा करते हुए सीजेआई ने कहा, “यहां सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एक सप्ताह में 200 मामलों का फैसला करते हैं। एक न्यायाधीश की वास्तविक चुनौती प्रतिस्पर्धी आवश्यकताओं को संतुलित करना है। एक तरफ काम का भारी प्रवाह और मौलिक मुद्दों पर निर्णय लेने के लिए मानसिक स्थान बनाने की आवश्यकता। एक समकालीन न्यायाधीश के सामने यही चुनौती है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि विधायिका किसी फैसले में कमी को दूर करने के लिए नया कानून बना सकती है, लेकिन वह इसे सीधे खारिज नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि न्यायाधीश यह नहीं सोचते कि जब वे मामलों का फैसला करेंगे तो समाज कैसे प्रतिक्रिया देगा और सरकार की निर्वाचित शाखा और न्यायपालिका के बीच यही अंतर है।
सीजेआई ने कहा, ‘अदालत का फैसला आने पर विधायिका क्या कर सकती है और विधायिका क्या नहीं कर सकती, इसके बीच एक विभाजन रेखा होती है। उन्होंने कहा कि यदि कोई निर्णय किसी विशेष मुद्दे को डिसाइड करता है और यह कानून में किसी कमी को इंगित करता है, तो विधायिका के लिए यह हमेशा खुला है कि वह उस कमी को दूर करने के लिए एक नया कानून बनाए।’
सीजेआई ने कहा, “विधायिका यह नहीं कह सकती कि हमें लगता है कि फैसला गलत है और इसलिए हम फैसले को खारिज करते हैं। किसी अदालत के फैसले को विधायिका सीधे तौर पर खारिज नहीं कर सकती है।”
उन्होंने यह भी कहा कि न्यायाधीश मामलों का फैसला करते समय सार्वजनिक नैतिकता से नहीं बल्कि संवैधानिक नैतिकता से निर्देशित होते हैं। चंद्रचूड़ ने कहा, “हमने इस साल कम से कम 72,000 मामलों का निपटारा किया है और अभी भी डेढ़ महीना बाकी है।”