राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग में अब एक महीने से भी कम का समय बाकी है। राज्य की सत्ता में वापसी के लिए बीजेपी हर समुदाय को साधने की कोशिश कर रही है। राजस्थान में बेहद प्रभावशाली माना जाने वाले राजपूत समुदाय को अपने पाले में करने के लिए बीजेपी ने इस बार खास रणनीति पर काम कर रही है। कहा जाता है कि साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार की सबसे बड़ी राजपूत समुदाय की नाराजगी थी।
बात नवंबर 2017 की है… राजस्थान विधानसभा चुनाव में करीब साल भर का समय था… उन दिनों करणी सेना के सदस्य बॉलीवुड की मूवी पद्मावत को लेकर बेहद नाराज थी। फिल्म का ट्रेलर सामने आने के बाद राजस्थान की सड़कों पर करणी सेना और राजपूत समुदाय का गुस्सा सभी ने देखा था। साल 2018 में चुनाव होने थे… उससे पहले करणी सेना के चीफ लोकेंद्र सिंह कालवी ने ऐलान कर दिया कि वो सत्ताधारी बीजेपी को हराने वाले प्रत्याशियों को मदद करेंगे। कहा जाता है कि करणी सेना को पूरे राजपूत समुदाय का समर्थन हासिल है। चुनाव के परिणाम जब आए तो बीजेपी द्वारा उतारे गए 26 राजपूत प्रत्याशियों में से सिर्फ 10 विधानसभा पहुंच सके।
ऐसा नहीं है कि 2018 में राजपूत समुदाय सिर्फ मूवी पद्मावत को लेकर ही नाराज था। दरअसल यह खेल शुरू हुआ साल 2014 में जब बीजेपी ने वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे यशवंत सिंह को बाड़मेर से टिकट देने से इनकार कर दिया। इसके दो साल बाद हिस्ट्रीशीटर चतुर सिंह (जाति से राजपूत) को एनकाउंटर में मार दिया गया और फिर साल 2017 में एक अन्य गैंगस्टर आनंदपाल सिंह के एनकाउंटर के बाद राजपूत समुदाय का गुस्सा फूट गया। बड़ी संख्या में राजपूतों का मानना है वसुंधरा सरकार के दौरान हुआ यह एनकाउंटर फर्जी था। इस एनकाउंटर के बाद कई दिनों तक सड़कों पर प्रदर्शन हुए। इसके बाद दीपिका पादुकोण की मूवी पद्मावत बीजेपी के लिए ‘ताबूत में आखिरी कील’ जैसी साबित हुई।
राजस्थान के सियासी जानकारों की मानें तो इन सारे घटनाक्रमों को राजपूतों ने “रजपूती गौरव” को ठेस पहुंचने के रूप में देखा। इतना ही नहीं वसुंधरा राजे और अमित शाह के बीजेपी राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष के मामले में भी ऐसी बातें सामने आईं। कहते हैं अमित शाह चाहते थे कि जोधपुर के सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत राजस्थान बीजेपी के चीफ बने जबकि वसुंधरा यह नहीं चाहती थीं। इसी वजह से बहुत सारे राजपूत वसुंधरा के खिलाफ हो गए।
अब सीधे बात करते हैं साल 2023 की… राजस्थान में जारी सियासी सरगर्मी के बीच कुछ ही दिनों पहले बीजेप ने पोलो प्लेयर भवानी सिंह कालवी को बीजेपी में शामिल कर सबको चौंका दिया। भवानी सिंह कालवी के पिता लोकेंद्र सिंह कालवी थे, उन्होंने ही साल 2018 में बीजेपी को हराने के लिए अपील की थी। बीजेपी ने उन्हें जयपुर के बजाय दिल्ली स्थित राष्ट्रीय कार्यालय पर पार्टी में शामिल किया। इस दौरान राजस्थान बीजेपी चीफ सीपी जोशी, कानून मंत्री अर्जुन राम और सांसद दिया कुमारी भी मौजूद थे। बीजेपी सूत्रों का कहना है कि इस प्रयास के जरिए राजपूतों का विश्वास हासिल करना चाहती थी।
इतना ही नहीं बीजेपी ने महाराणा प्रतापा के वंशज विश्वराज सिंह मेवाड़ को भी पार्टी में शामिल किया। बीजेपी ने उन्हें नाथद्वारा विधानसभा सीट से मैदान में उतारा है। इस सीट पर कांग्रेस के सीपी जोशी का कब्जा है। कहा जा रहा है कि विश्वराज सिंह के नाथद्वारा से उतरने से कांग्रेस भी बेचैन हो गई है। सीपी जोशी ने कांग्रेस के कैडर को खास तौर पर कहा है कि वो ऐसा कुछ भी न करें, जिससे बात ‘राजपूत गौरव’ तक पहुंच जाए। विश्वराज सिंह मेवाड़ को खुद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी में शामिल कर दिया यह मैसेज देने का प्रयास किया कि वो राजपूतों का सम्मान करते हैं। अब बीजेपी के इन प्रयासों का कितना असर राजपूत समुदाय पर होता है यह चुनाव के परिणामों के बाद ही पता चलेगा।