कविता जोशी
जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक के सुदूर सीमावर्ती इलाकों में महत्त्वपूर्ण सामरिक सड़कों, सुरंगों और पुलों के निर्माण कार्य में दिन रात में जुटे सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) की चिकित्सा यूनिटों में डाक्टरों की भारी कमी है। इससे संगठन कर्मियों को जरूरत के वक्त समुचित इलाज की सुविधा नहीं मिल पा रही है। इस कमी को दूर करने के लिए बीआरओ सेना की चिकित्सा कोर (एएमसी) की तरफ मदद की आस लगाए बैठा है।
सीमा सड़क संगठन के उप महानिदेशक (चिकित्सा) ब्रिगेडियर नरेश धवन ने बताया कि सीमा से जुड़े इलाकों में हमारी परियोजनाएं नौ से लेकर उन्नीस हजार फीट से अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में चल रही हैं। वहां बेहद विषम परिस्थितियों के बीच काम कर रहे कर्मियों को इलाज की सुविधा मुहैया कराने के लिए मौजूद 129 चिकित्सा यूनिटों में डाक्टरों की भारी कमी है। हमारी आवश्यकता चिकित्सा यूनिटों की संख्या के बराबर डाक्टरों की है। लेकिन, फिलहाल बीआरओ में डाक्टरों के 116 पद रिक्त हैं। केवल 13 डाक्टरों की ही फील्ड में तैनाती बनी हुई है।
सेना की चिकित्सा कोर से जुड़ी डाक्टरों की भर्ती की प्रक्रिया जारी है। जबकि दूसरी तरफ यूपीएससी के जरिए होने वाली डाक्टरों की योजना में बीते करीब पांच वर्षों से भर्ती न हो पाने के कारण सरकार ने ये योजना फिलहाल बंद कर दी है। लेकिन बीआरओ ने डाक्टरों की कमी को दूर करने के लिए अब इस योजना को पुनर्जीवित करने के लिए वित्त मंत्रालय में एक प्रस्ताव दिया है।
ब्रिगेडियर धवन ने बताया कि चीन और पाकिस्तान सीमा से लगे इलाकों में बीआरओ के साथ तैनाती करने के लिए कोई डाक्टर आसानी से तैयार नहीं होता है। इसके पीछे जटिल भौगोलिक परिस्थितियां और परिवार से लंबे वक्त के लिए अलगाव एक बहुत बड़ा कारण बनकर उभरा है। लेकिन संगठन डाक्टरों की इस कमी को दूर करने के प्रयासों में जुटा हुआ है।