उत्तराखंड के जोशीमठ समेत कुछ शहरों में पिछले साल जमीनों के धंसने और मकानों के गिरने की कई घटनाएं हुई थीं। कई जगह सड़कें टूट गई थीं। इसको लेकर लोगों में दहशत और डर पैदा हो गया। सरकार ने इस मामले की जांच के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, एनडीआरएफ, सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च संस्थान, भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण समेत कई एजेंसियों को जिम्मेदारी सौंपी थी।
एनडीआरएफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उत्तराखंड का जोशीमठ शहर एक ऐसा शहर है जहां कम जगह में ज्यादा लोग बसे हुए हैं। वहां की मिट्टी भी ढीली है। इससे वहां धंसाव ज्यादा है। इसमें सिफारिश की गई है कि जोशीमठ को नो न्यू कंस्ट्रक्शन जोन यानी नया निर्माण प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित कर दिया जाए।
दरअसल पिछली जनगणना के समय 2011 में जोशीमठ की कुल आबादी 16,700 के करीब थी और इसका घनत्व 1,454 प्रतिवर्ग किमी था। यह बढ़कर अब 25 हजार हो गई है। यानी आबादी बढ़ी, लेकिन जगह नहीं बढ़ी, इससे प्रतिवर्ग किमी में रह रहे लोगों की संख्या काफी अधिक हो गई है। वहां की जमीन इनको संभाल नहीं पा रही है।
कुछ ऐसी ही परेशानी भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण ने भी अपनी रिपोर्ट में दी है। इसमें कहा गया है कि जिन स्थानों पर ज्यादा घनी आबादी है और बड़ी इमारते हैं, वहां इस तरह के खतरे ज्यादा हैं।
उधर, सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च संस्थान ने भी एक रिपोर्ट सौंपी है। 180 पेज की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तराखंड में सभी तरह के निर्माण कार्यों की जांच कराई जानी चाहिए। इसमें कहा गया है कि पहाड़ के शहरों में यह स्थितियां कई शहरों में होने की आशंका है। रिपोर्ट ने कुल 2364 मकानों की जांच के बाद कहा कि जोशीमठ में 20 फीसदी मकान अनुपयोगी हैं। केवल 37 फीसदी मकान ही रहने योग्य हैं। एक फीसदी मकानों को गिराए जाने की सिफारिश की है। इसके अलावा 42 फीसदी मकानों में आगे भी जांच कराए जाने की जरूरत बताई है।