हाल के कुछ महीनों में भारत और कनाडा के बीच राजनयिक संबंध बेहद तनावपूर्ण हो गए हैं। कुछ ऐसी घटनाएं हुईं, जिनसे दोनों देशों के रिश्तों पर बुरा असर हुआ है। फिलहाल जो कड़वाहट घुली है, उसे दोनों देशों के रिश्तों का सबसे निचला स्तर बताया जा रहा है। कई सवाल उठ रहे हैं। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय एजंटों का हाथ होने का आरोप लगाया है और भारत सरकार इससे इनकार कर चुकी है। सवाल यह है, क्या ट्रूडो का बयान पूरी तरह घरेलू वोटबैंक की राजनीति से प्रेरित है। कूटनीति के अखाड़े में यह मुद्दा अब सिर्फ भारत बना कनाडा का नहीं रहा। अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों के साथ भारत के संबंधों पर असर पड़ने के आसार दिख रहे हैं। जाहिर है, कूटनीतिक पेचीदगियों से भरा यह मामला इतना सीधा नहीं है, जितना लगता है।
इस स्थिति की जड़ पुरानी है। लेकिन इसी साल की एक घटना ने आग में घी डाला। मार्च 2023 की बात है। भारत से लेकर कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका तक हलचल मची थी। खालिस्तान की मांग करने वाले अलगाववादी संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ का मुखिया अमृतपाल सिंह फरार चल रहा था। 18 मार्च 2023 को पुलिस उसे गिरफ्तार करने वाली थी, लेकिन वह भाग निकला। कई दिनों तक अलग-अलग राज्यों में पुलिस ने उसका पीछा किया। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने पुलिस को फटकार भी लगाई कि 80 हजार पुलिसवाले एक भगोड़े को नहीं पकड़ सके।
उसके अगले दिन 19 मार्च को खालिस्तान की मांग कर रहे लोगों का एक जत्था लंदन में भारतीय उच्चायोग पहुंचा। उन्होंने भारतीय उच्चायोग की बालकनी से तिरंगा झंडा हटा दिया। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस घटना पर नाराजगी जताई और ब्रिटिश उच्चायुक्त को तलब किया। अगले दिन अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में खालिस्तान समर्थकों ने भारतीय वाणिज्य दूतावास को नुकसान पहुंचाया और आगजनी की कोशिश की गई। भारत सरकार ने इस पर भी आपत्ति दर्ज कराई थी।
21 मार्च को कनाडा में भारतीय उच्चायुक्त संजय कुमार वर्मा भारतीय लोगों से मिलने सरे शहर जा रहे थे। भारतीय मूल के पत्रकार समीर कौशल उनका दौरा कवर करने जा रहे थे। लेकिन, कार्यक्रम स्थल तक जाने का रास्ता खालिस्तान समर्थकों ने रोक रखा था। उन्होंने समीर के साथ धक्का-मुक्की की, उन्हें आगे नहीं जाने दिया। फिर पुलिस ने भी समीर को वहां से चले जाने को कहा।
भारत द्वारा नाराजगी जताने के बाद अमेरिका और ब्रिटेन में खालिस्तान समर्थकों पर नकेल कसी गई, लेकिन कनाडा में ऐसा नहीं हुआ। वहां खालिस्तान समर्थकों की रैलियां होती रहीं। कनाडा सरकार ने तर्क दिया कि उन्होंने बड़ी मेहनत से ऐसा समाज बनाया है, जहां सभी को अभिव्यक्ति की आजादी है और जब तक कोई हिंसक नहीं होता, तब तक सरकार के पास उस पर कार्रवाई करने की कोई वजह नहीं है।
कनाडा में भारतीय मूल के करीब 15 लाख लोग रहते हैं, जिनमें से करीब 8 लाख सिख हैं। भारत से बाहर सिखों की सबसे बड़ी आबादी कनाडा में ही रहती है। ऐसे में जानकार यह सवाल भी उठाते हैं कि क्या कनाडा में रहने वाले सारे सिख खालिस्तान का समर्थन करते हैं। सिख 20वीं सदी की शुरुआत से ही विदेश जाते और बसते रहे हैं। पर 80 के दशक में सिखों की जिस बड़ी आबादी का पलायन हुआ, उसमें खालिस्तान की मांग करने वाले खूब थे। ये लोग कनाडा से लेकर अमेरिका, ब्रिटेन, इटली और ऑस्ट्रेलिया तक में बसे। सोवियत संघ के विघटन और भारत में उदारीकरण के बाद खालिस्तान की मांग के साथ नत्थी रहा हिंसक संघर्ष भले दब गया हो, लेकिन सिखों के लिए अलग देश की मांग भारत की चिंता बढ़ाती रहती है।
जून 2023 में निज्जर की हत्या के पहले के घटनाक्रम गौरतलब हैं। आठ जून को ब्रैंपटन में खालिस्तान समर्थकों ने एक रैली निकाली, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की झांकी निकाली गई। नाराज भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर ने साफ कहा कि ऐसी घटनाएं भारत-कनाडा के संबंधों के लिए ठीक नहीं हैं। फिर भारत में कनाडा के उच्चायुक्त कैमरन मकाय का बयान आया कि वह इसकी निंदा करते हैं। दूसरी तरफ, कनाडा में खालिस्तान के मुद्दे पर जनमत संग्रह कराने की तैयारियां जोरों पर थीं। निज्जर समेत केटीएफ सदस्य इसका खूब प्रचार कर रहे थे। फिर 18 जून की रात करीब साढ़े आठ बजे निज्जर की गुरुनानक सिख गुरुद्वारे की पार्किंग में गोली मारकर हत्या कर दी गई।
सितंबर माह में ही जब जस्टिन ट्रूडो भारत में हो रहे जी20 के मेहमान थे, तब कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में खालिस्तान पर जनमत संग्रह हो रहा था। फिर ट्रूडो के कनाडा लौटते ही पहली खबर यह आई कि भारत और कनाडा के बीच हो रही व्यापार-वार्ता स्थगित कर दी गई है। जानकारों की राय में यह अस्थायी है। कारोबारी रिश्ते अपनी जगह हैं और कूटनीतिक संबंध अपनी जगह।