जिसे कोई नहीं पूछता उसे गरीब का ये बेटा पूछता है।’ विश्कर्मा दिवस पर मोदी के शब्द। फिर, सर्वदलीय भाषणों के बाद पुराने ससंदीय भवन को भावभीनी विदाई, गणेश चतुर्थी के दिन सभी सांसदों को नए संसद भवन तक लाना, विशेष सत्र की शुरूआत और इसी के साथ विपक्ष पर कटाक्ष : ‘रोने धोने को बहुत समय होता है करते रहिए…।’ फिर यह खबर कि सांसदों के लिए भी बायोमेट्रिक उपस्थिति जरूरी! बंक मारने वालों पर भी ताला! ये कैसा लोकतंत्र है मेरे आका! इसके बाद ज्यों ही सत्र शुरू त्यों ही विपक्ष ने कहा : ये विशेष सत्र है कि सामान्य? पता ही नहीं…। सत्ता पक्ष : आगे आगे देखिए होता है क्या?
फिर सत्र की पहली शाम कैबिनेट बैठक और विपक्ष आकुल- व्याकुल कि पता नहीं क्या नया ला रहे हैं मोदी? फिर एक चैनल ने खबर ब्रेक की : महिला आरक्षण विधेयक आ रहा है। कल तक विपक्ष कहे जा रहा था कि सरकार महिला आरक्षण विधेयक क्यों नहीं ला रही? लेकिन जैसे ही इसे लाने की खबर आई वैसे ही विपक्ष का ‘विलाप’ शुरू हो गया।
बीस सितंबर को नए संसद भवन में जैसे ही ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ कानून मंत्री ने पेश किया, वैस ही एक ओर ‘नारी तू नारायणी’ होने लगा तो दूसरी ओर विपक्षी नेता ‘किंतु परंतु’ करने लगे। कुछ इस विधेयक को भी एक झुनझुना, एक जुमला बताने लगे…। एक कहिन कि न जनगणना होगी, न सीटों का परिसीमन होगा और न ये कभी लागू होगा…इसका जवाब रहा कि आप इतने बरस इस पर सोते रहे…। राज्यसभा में तो पास कराए, लेकिन सरकार गिरने के डर से लोकसभा में पास न करा सके उसके बाद अप्रभावी हो गया…। अब हम ला रहे हैं तो ये ‘किंतु परंतु’ क्यों?
‘श्रेय’ लेने की लड़ाई शुरू हुई और दो दिन जारी रही। विपक्ष का एक बड़ा दल कहने लगा कि ये तो हमारा था हमारा है…हमीं लाए थे…। सत्ता पक्ष का जबाव रहा कि तब लोकसभा में पास क्यों न कराए। अब हम लाए हैं और आज पास भी कराएंगे। इस पर हाय-हाय क्यों। महिलाओं के हित में हैं तो सभी दल बिना किसी ‘किंतु परंतु’ के इसका समर्थन करें…।
‘नारी शक्ति वंदन विधेयक’ पर हुई पिछले दिनों की बहस के मुकाबले यह पूरे दिन सात आठ घंटे लंबी बहस रही। उत्तम कोटि की इस संसदीय बहस में पक्ष-विपक्ष से कोई 60 वक्ता बोले। जैसे जैसे बहस आगे बढ़ती गई, वैसे-वैसे साफ होता गया कि आज की राजनीतिक स्थिति की नजाकत को देखते हुए विपक्ष अब इस बिल का विरोध नहीं करने वाला, हां अपनी झेंप मिटाने के लिए कुछ ‘किंतु परंतु’ जरूर कर सकता है…।
और यही होता दिखा। विपक्ष एक सुर से कहता रहा कि कमियों के बावजूद हम इसका समर्थन करते हैं…। अपने भैया जी ने भी संसद में जमकर और अच्छा बोला लेकिन वे देर तक ‘सरकार में 90 सचिवों में से सिर्फ तीन ओबीसी सचिव हैं’ पर ही अटके रहे, ओबीसी आरक्षण पर जोर देते रहे। फिर कहे कि यह बिल अभी लागू किया जा सकता है…सच! ‘जाके मन में अटक है सोई अटक रहा’!
बहस में गृहमंत्री ने स्पष्ट किया कि जनगणना व परिसीमिन संवैधानिक अनिवार्यताएं हैं। एससी – एसटी का आरक्षण तो संविधान में है, ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था नहीं है…फिर उन्होंने सबसे विनती की कि महिलाओं के हित में इसे सर्वसम्मति से पास कराएं!
और, इस तरह संसद में एक ‘इतिहास’ बना : कुल 456 सांसदों में से 454 ने बिल के पक्ष में वोट दिया! विरोध में सिर्फ दो वोट पड़े! और राज्यसभा में एक भी विरोधी नहीं! कैसी दुर्लभ सर्वसम्मति? यह रहा सबका ‘नारी शक्ति वंदनम्’!
चैनलों में कोई इसे ‘इतिहास बनाने वाला’ कहता। कोई ‘युगांतकारी’ कहता, कोई ‘मील का पत्थर’ कहता तो कोई इसे ‘2024 के लिए ‘मास्टर स्ट्रोक’ बताता। भाजपा भक्त नाचते गाते जश्न मनाते दिखे। प्रधानमंत्री भी अपने कायकर्ताओं की खुशियों में शामिल होते दिखे! बहरहाल, राज्यसभा की बहस में अघ्यक्ष जेपी नड्डा का वह जवाब कि ‘इनको न अता न पता न सता…’ एक मजेदार जबाव रहा!
इसी बीच, शायद जीत के नशे में एक सत्तादलीय सांसद द्वारा विपक्षी दल के एक अल्पसंख्यक सांसद के प्रति कुछ ऐसे ‘घृणामूलक शब्दों’ का इस्तेमाल किया गया कि संसद में मौजूद एक वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री ने सांसद की घृणा भाषा के लिए तुरंत माफी मांगी। स्पीकर महोदय ने भी सांसद को सख्त चेतावनी दे डाली। लेकिन विपक्ष संतुष्ट न दिखा! उसकी मांग रही कि ‘घृणा भाषा’ बोलने वाले सांसद को बर्खास्त किया जाए। उनकी संसद सदस्यता रद्द हो… और, सत्तादल ने भी सांसद को ‘असंसदीय भाषा’ के लिए ‘कारण बताओ’ नोटिस दिया…।
इसी बीच जैसे ही कनाडा स्थित खालिस्तानी आतंकवाद के सरगना निज्जर की हत्या को लेकर कनाडा के प्रधानमंत्री द्वारा भारत पर निशाना साधने की कोशिश की गई, वैसे ही भारत ने तुरंत प्रमाण मांगे जो अब तक नहीं दिए गए।
फिर कनाडा के साथ ‘जैसे को तैसा’ किया गया। कनाडा ने भारतीय दूत निकाला तो भारत ने भी कनाडाई दूत निकाला, फिर कनाडा से आने वाले भारतीयों के लिए ‘वीजा’ बंद कर दिया गया! पंजाब का एक दल कहिन कि इस ‘वीजा बंदी’ से पंजाब के लोगों को दिक्कत होगी। और लीजिए! इधर चीन ने एशियाई खेलों में अरुणाचल के खिलाड़ियों को वीसा नहीं दिया तो भारत के खेलमंत्री ने चीन का अपना दौरा रद्द करके चीन की धौंसपट्टी को ठेंगा दिखाया!