हिंदी को बढ़ावा देने के लिए एक ओर जहां जमकर प्रचार प्रसार किया जा रहा है वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के कानपुर के सर्वोदय नगर स्थित कस्टम एंड एक्साइज आफिस में आयुक्त पद पर कार्यरत रहे आईआरएस अधिकारी का आरोप है कि हिंदी का प्रचार प्रसार करने पर उन्हें परेशान किया जा रहा है।
वरिष्ठ आईआरएस अधिकारी का आरोप है कि हिंदी में कार्य करने से नाराज विभाग के शीर्ष अधिकरियों ने उनका तबादला आंध्र प्रदेश कर दिया गया। गुंटूर में तबादला होने के बाद उन्होंने वहां पर ज्वाइन भी कर लिया। मगर नियुक्ति लेने के बाद भी उन्होंने हिंदी में कार्य करना बंद नहीं किया। हिंदी में काम करने के लिए अधिकारी ने जब एक हिंदी स्टेनों की मांग की तो उनको वह भी नहीं दिया गया।
इसके साथ ही नियमों को दरकिनार करते हुए हजारों किलोमीटर दूर गुंटूर में किए गए ट्रांसफर के विरोध में आईआरएस (केंद्रीय जीएसट कमिश्नर) सोमेश तिवारी ने हाई कोर्ट में अपनी अपील दायर की है। वहीं, पीएमओ ने भी पूरे मामले में सात दिन के अंदर रिपोर्ट मांगी लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला।
दरअसल, कानपुर में जीएसटी आयुक्त ऑडिट पद पर कार्यरत सोमेश तिवारी राजभाषा का कार्य भी करते हैं। वह भी राजभाषा में पत्राचार की पैरवी करते हैं। वह विभाग में 90 प्रतिशत से अधिक कामकाज अंग्रेजी में होने का लगातार विरोध कर रहे थे। इस संबंध में सबसे पहले उन्होंने सतर्कता आयोग को पत्र लिखकर केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर बोर्ड पर सीधा आरोप लगाया और कहा कि उनके अंग्रेजी प्रेम के कारण हिंदी पनप नहीं पा रही है। हिंदी दिवस पर ली जाने वाली शपथ पर भी लिखित में कहा कि सभी झूठ बोलते हैं, शपथ लेते समय से उनका लाई डिटेक्टर टेस्ट कराया जाए तो यथार्थ सामने आ जाएगा।
हिंदी में काम काज न करने के कारण ट्रासफर पर सोमेश तिवारी ने पूरे मामले की शिकायत केंद्री वित्तमंत्री निर्माला सीतारमण, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यालय को पत्र लिखकर दी है। सोमेश तिवारी ने बताया कि पीएमओ की ओर से जवाब मांगा गया है पर विभाग के अधिकारियों ने उसको दवा दिया है।
इस पर सोमेश तिवारी ने लिखा कि जिसके खिलाफ शिकायत की है उसी को जांच सौंपी जा रही है। इसलिए इंसाफ की उम्मीद नहीं कर सकते। गुंटूर तबादला होने के बाद होईकोर्ट में उन्होंने तर्क दिया है कि ट्रांसफर की सूची में उनका नाम तक नहीं था। इसके अतिरिक्त तबादला से पहले पसंद मांगी जाती है। लखनऊ, कानपुर, रायपुर और भोपाल में पद खाली थे। इसके बावजूद उन्हें गैर हिंदी प्रांत जानबूझकर भेजा गया। बहरहाल बोर्ड द्वारा किए गए तबादले के बाद वह अवकाश पर हैं।