सरकारी जमीन पर कब्जे के एक मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने द्रमुक सांसद डॉ. वी कलानिधि को अपनी ताकत का एहसास कराया। कलानिधि दलील देते रहे कि जमीन को उन्होंने सरकारी नियमों के तहत ही अपने कब्जे में लिया था। लेकिन जस्टिस ने उनकी एक ना सुनी। उन्होंने आदेश पारित करते हुए तमिलनाडु सरकार को आदेश दिया कि वो 1 माह के भीतर जमीन को खाली कराए। ना खाली करें तो उन पर सख्त एक्शन लिया जाए। जस्टिस यहीं पर नहीं रुके। उन्होंने कहा कि कब्जे से अब तक सरकार को जो भी नुकसान हुआ है उसकी भरपाई सांसद से ही की जाए।
जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम के तेवर खासे तीखे थे। उन्होंने सरकार को भी आड़े हाथ लिया। उनका कहना था कि सरकार का काम होता है कि वो सभी को एक नजर से देखे। लेकिन सरकारी जमीनों पर कब्जे के बहुत सारे केसों में देखा गया है कि सरकार खुद ही अपने लोगों को जमीन खैरात में बांट देती है। सरकारी जमीन ऐसे लोगों को दी जाती है जो ताकतवर और प्रभावशाली होते हैं। ये अपने असर का इस्तेमाल कर जमीनों पर कब्जा करते हैं।
हालांकि कलानिधि ने दलील दी कि जिस जमीन को खाली कराने की बात की जा रही है उसका पट्टा ग्राम पंचायत ने 2011 में उनके नाम पर कर दिया था। उनकी दलील थी कि नियमों के मुताबिक ही उन्होंने जमीन पर अस्पताल बनवाया। इसके जरिये वो लोगों की सेवा कर रहे हैं।
जस्टिस ने उनको फटकार लगाते हुए कहा कि वो एक पूर्व मंत्री के बेटे हैं। वो खुद भी सांसद हैं। सांसद भी उस पार्टी के हैं जो सत्ता में है। लिहाजा राजनीति के बेजा इस्तेमाल की संभावना बहुत ज्यादा है। कोर्ट का कहना था कि सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वो सोशल जस्टिस एंड इक्वलिटी की पालना करेगी। पंचायती जमीन पर सरकार का सीधा हक नहीं होता है। लिहाजा उम्मीद की जाती है कि सरकार इसे लेकर गाइडलाइन जारी करेगी। लेकिन यहां कुछ अलग ही चीजें देखने को मिल रही हैं। ताकतवर लोग पंचायती जमीन पर कब्जा कर रहे हैं और सरकार चुप बैठी है। जस्टिस के तेवर इस कदर तल्ख थे कि उन्होंने यहां तक कहा कि सरकार केवल अपने नेताओं और पार्टी के लोगों की नहीं है। उसे सबका हित देखना होता है।