कोणार्क के विराट पहिए के आगे व नालंदा के भग्नावशेषों की पृष्ठभूमि में खड़े प्रधानमंत्री विश्व के बीस देशों के महामहिमों का पंरपरागत तरीके से स्वागत करते, सबको कोणार्क व नालंदा का इतिहास बताते और फिर ‘भारतमंडपम’ में पहुंचने के लिए विदा करते दिखते! ‘जी 20’ के भव्य समारोह और इंतजामों की पल-पल की खबर देते हुए रिपोर्टर एंकर गदगद होते दिखते! एक निंदक ने चिढ़ते हुए एक चैनल पर कहा भी कि हमारे चैनल परदे के पीछे का सच नहीं दिखा रहे जिसे विदेशी चैनल दिखा रहे हैं…।
एक चैनल ने शाम तक त्वरित सर्वे दिखाकर बता दिया कि 62 फीसद मानते हैं कि ‘जी 20’ के सफल आयोजन से विश्व में भारत का सम्मान बढ़ा है…।फिर, विश्व नेताओं के ‘संयुक्त वक्तव्य’ में भारतीय संस्कृति के मूल वाक्य ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का दर्ज होना, रूस को ‘कंडम’ किए बिना ‘यूक्रेन के मामले का यूएन के आधार पर हल हो’ की लाइन का लिखा जाना और चीन की ‘बीआरआइ’ के जबाव में ‘भारत- दक्षिण पूर्व एशिया यूरोप कारिडोर’ निर्माण का एलान और अफ्रीकी देशों के संघ का ‘जी 20’ में सदस्य होना…सब ऐतिहासिक फैसले रहे।
इसी अवसर पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक का अक्षरधाम मंदिर में साष्टांग करना और कहना कि मुझे हिंदू होने पर गर्व है…सब ‘जी 20’ समारोह के यादगार पल रहे। ‘जी 20’ के अवसर पर यह विश्वस्तरीय आयोजन करने के लिए सबने भारत की ‘जै जै’ बोली। विपक्ष के एक बड़े नेता ने भी इसे ‘सफल’ बताया! फिर एक दिन सऊदी अरब से भी कई समझौते जैसे भारत-सऊदी गाते हों : ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे…।
फिर, राष्ट्रपति का ‘प्रीति भोज’! ‘प्रीति वाले’ आए। कई ‘प्रीतम’ न भी आए। एक विपक्षी ने दूसरे के ‘जाने’ पर ‘हाय हाय’ तक की! कोई चैनल भारत को विश्वविजेता कहता, कोई कहता कि भारत का वक्त आ गया है, कोई भारत को ‘वर्ल्ड पावर’। कहता है तो कोई कहता कि सुरक्षा परिषद में भारत की सीट पक्की!
तीन दिन की खुशी के बाद फिर नफरतिया धांय धांय शुरू कि गोधरा फिर से हो सकता है…। फिर देश-बाहर से आया एक बयान कि मैंने गीता उपनिषद पढ़े हैं…। फिर एक क्षुब्ध दहाड़ कि जो सनातन के विरोध में बोलेगा उसकी जुबान बाहर निकाल लेंगे…।फिर ‘मन मन भावै मूंड़ हिलावै’ वाला बयान कि देश का नेतृत्व करने के लिए नेता जी तैयार हैं…।
फिर एक खबर कि संसदीय कर्मियों की पोशाक बदलेगी। पोशाक पर कमल – सा चिह्न और फिर विपक्ष की हाय हाय कि कमल जैसा डिजाइन क्यों? जबाव आया भइए! आपके नेहरू जी ने स्वयं कमल को राष्ट्रीय फूल माना था…। एक सनातनी प्रवक्ता कहिन कि सनातन का विरोध…इनका हिडेन एजंडा है वोट बैंक बनाना…। क्या ये किसी अन्य धर्म को ऐसा कह सकते हैं? फिर एक सनातन विरोधी बोला, हिंदू धर्म दुनिया के लिए खतरा है…।
हाय! गुस्से में ये क्या कह गए सर जी! भूल गए कि जो जितना खतरनाक होता है वो उतना ही पुजता है! हिंदू को ऐसे ही रोज पीटते रहिए सर जी! जो जितना ‘कुटेगा’ उतना ही ‘उठेगा’! एक जगद्गुरु ने तो एक चैनल पर कह ही दिया कि अब सनातन चुप नहीं बैठेगा। वो एक होगा…। और फिर, एक जनसभा में सनातन के दुश्मनों को लेकर प्रधानमंत्री का जवाब आया कि ये सनातन विरोधी भारत को मिटाना चाहते हैं…। ये हजार साल पुरानी गुलामी में धकेलना चाहते हैं…।
अधिकांश चैनलों ने इसे बहसों में ला पटका। हर बहस में सनातन वाले एक ही सवाल करते कि क्या ‘आइएनडीआइए’ के घटक सनातन को ‘बीमारी’कहने और उसे नष्ट करने के आवाहन से सहमत हैं? क्या ऐसे बयान की वे आलोचना करेंगे? ऐसे सवाल सुन घटक प्रवक्ता इधर-उधर करने लगते…।शुक्रवार को बिहार के विपक्षी नेता ने ‘रामचरितमानस’ को ‘साइनाइड’ बताकर अपने ‘हिंदू नफरत’ का परिचय दिया।
लगता है आजकल विपक्ष में इस बात की प्रतियोगिता चल रही है कि सनातन या हिंदू को कौन कितना कूट सकता है? और ऐसी हर कुटाई हिंदुओं को हिंदुत्ववादियों के हवाले करती जाती है-हिंदू निंदक यह भूल जाते हैं! गुरुवार की शाम एक चैनल ने बताया कि ‘आइएनडीआइए’ ने तय किया है कि उसके प्रवक्ता कुछ चैनलों के ‘नफरत के बाजार’ को गरिमा नहीं देने वाले। इसलिए चौदह समाचार प्रस्तोताओं का बहिष्कार करेंगे। कई चैनलों ने इसे ‘आपातकाल की मानसिकता’ बताया।
इनमें से एक एंकर कहता रहा कि यह मीडिया का गला घोंटना है…। वे समझते हैं कि हमारे बायकाट से ये चैनल खत्म हो जाएंगे…। इनके लिए हम मरे नहीं जा रहे…। राष्ट्र हमारे साथ खड़ा है…। यों विपक्ष जो चाहे मीडिया नीति अपनाए लेकिन बहिष्कार की यह नीति उन्हीं के खिलाफ जा सकती है, क्योंकि आज के वक्त में जो जितना दिखता है उतना बिकता है। आंख ओझल तो पहाड़ ओझल! कहावत भी है : ‘रानी रूठेगी तो अपना सुहाग लेगी!’