जी-20 बैठक के सफल आयोजन को भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा है। इस बैठक में भारत ने खुद को ग्लोबल लीडर के तौर पर पेश किया। इसकी दुनियाभर में तारीफ हो रही है। जी-20 में अफ्रीकन यूनियन (African Union) को शामिल कराना पीएम मोदी की सबसे बड़ी कामयाबी मानी जा रही है। पीएम मोदी के इस कदम के बाद जी-20 अब जी-21 बन गया है।
यूरोपियन यूनियन की तरह अफ्रीकन यूनियन को जी-20 का सदस्य बनाना अपने आम में काफी अहम है। इसकी पटकथा पिछले साल बाली में हुई जी-20 की बैठक में ही तय हो गई थी। पिछले साल हुई बैठक के दौरान तत्कालीन अफ्रीकी यूनियन के अध्यक्ष और सेनेगल के राष्ट्रपति मैकी सॉल इंडोनेशिया के राष्ट्रपति और पीएम मोदी के पास आए थे। तब उन्होंने पीएम मोदी के सामने अफ्रीकन यूनियन को जी-20 सदस्य बनाने को लेकर अपनी बात रखी थी। पीएम मोदी ने उसी दौरान उन्होंने भरोसा दिया था अगले साल जब भारत में इस बैठक का आयोजन किया जाएगा तो इस काम को जरूर पूरा किया जाएगा।
यूरोपियन यूनियन में 55 देश शामिल हैं। अगर आबादी की बात करें तो यहां 1.3 अरब जनसंख्या रहती है। अफ्रीकन यूनियन की स्थापना 26 मई 2001 को अदीस अबाबा (इथियोपिया) में हुई थी। इससे पहले ऑर्गेनाइजेशन ऑफ अफ्रीकन यूनिटी था जिसमें 32 देश शामिल थे। इसकी स्थापना 1963 में हुई थी। मौजूदा अफ्रीकन यूनियन की बात करें तो इसकी कुल GDP 2.99 ट्रिलियन डॉलर है। अफ्रीकन यूनियन को जी-20 में शामिल करने की मांग लंबे समय से हो रही थी। 2010 से ही अफ्रीकन यूनियन को G-20 समिट में आमंत्रित किया जाता रहा है।
अफ्रीकन देशों में खनिज संसाधनों का भरपूर भंडार है। यहां दुनिया का 40 फीसदी से अधिक सोना, दुनिया की 8 फीसदी प्राकृतिक गैस, कुल खनिजों का करीब 30 फीसदी और क्रोमियम और प्लेटिनम जैसे खनिज पाए जाते हैं। यहां हीरा, यूरेनियम और कोबाल्ट जैसे बेशकीमती खनिजों का सबसे बड़ा भंडार है। लीथियम आयन बैटरी के लिए जिन खनिजों की जरूरत होती है वह भी यहां भरपूर मात्रा में पाया जाता है। ऐसे में इसकी अहमियत और बढ़ जाती है।
यूरोपियन यूनियन में शामिल 55 देश शामिल हैं। इनमें 43 के साथ भारत के राजनयिक संबंध हैं। आंकड़ों के मुताबिक भारत और अफ्रीका के बीज 90 अरब डॉलर का व्यापार होता है। इन देशों से भारत उर्वरक का आयात करता है। वहीं साझेदारी बढ़ने से भारत कई चीजों का निर्यात करेगा। भारत के साथ संबंध बेहतर होने से इन देशों की चीन पर निर्भरता कम होगी। इससे ना सिर्फ भारत को फायदा होगा बल्कि अफ्रीकन यूनियन में शामिल देशों को भी इससे काफी फायदा होगा।