विपक्ष ने संसद की सुरक्षा में सेंध लगाने वालों को ‘कवर फायर’ दिया कि ये तो बेचारे बेरोजगार हैं। विपक्ष इसके लिए गृहमंत्री से जवाब मांगता रहा।सत्तापक्ष कहता रहा कि मामला लोकसभा अध्यक्ष के हाथ में है। जांच रपट आए तो सारी बात बताएं, पहले कोई कैसे बताए? फिर भी विपक्ष शिकायत करता रहा कि अगर लड़कों के पास सचमुच का बम होता तो क्या होता? इतनी सुरक्षित इमारत का ये हाल- कौन जिम्मेदार? एक नेताजी ने तो इसे धार्मिक रंग तक देने की कोशिश की कि अगर अमुक या तमुक धर्म के सांसद ने पास दिए होते तो क्या होता?
मोइत्रा को निलंबित किया तो इस पास देने वाले सांसद को क्यों नहीं किया? सत्ता प्रवक्ता कहते रहे कि दोनों मामले अलग हैं। ऐसी हर बहस में विपक्ष बार-बार यही तर्क देता रहा कि संसद चलाना सरकार की जिम्मेदारी है। विपक्ष का काम विरोध करना है। जेटली और सुषमा भी यही कहते थे, हम भी वही कर रहे हैं।
बहरहाल, इस विपक्षी हठ को लेकर पहली बार किसी सत्ता प्रवक्ता ने नया तर्क दिया कि यह कहां लिखा है कि संसद की कार्रवाई चलाना सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी है, यह विपक्ष की भी जिम्मेदारी है।विपक्ष और सत्ता पक्ष के ऐसी ही ‘अड़ा-अड़ी’ के चक्कर में विपक्ष के कुल 146 सांसद निलंबित हो गए। सत्ता प्रवक्ता कहिन कि विपक्ष के सांसदों में निलंबित होने की होड़ लगी है।
एक दिन एक समूह के सांसदों ने संसदीय नियमों को तोड़कर निलंबन का तमगा लिया तो अगले दिन दूसरे ग्रुप के सांसदों ने निलंबन को आमंत्रित किया! इसके बाद, संसद सचमुच ही विपक्ष मुक्त-सी दिखी। इसे देख कुछ एंकर बड़े परेशान कि हाय! जब विपक्ष ही नहीं तो संसद क्या? उधर, उचित अवसर देख सरकार ने तीन- तीन कानून निष्कंटक पारित किए। निलंबन पर सत्ता प्रवक्ता कहते रहे कि विपक्ष ने स्वयं माना था कि संसद में तख्तियां दिखाना, नारे लगाना और सदन के अध्यक्ष की मेज तक जाना नियम विरोधी है। जाहिर है, हंगामा करोगे तो निलिंबित होगे!
निलंबित सांसद संसद परिसर में गांधी जी की मूर्ति के नीचे धरने पर दिखे। सत्रावसान के एक दिन पहले सब के सब संसद भवन की सीढ़ियों पर ही धरना देने लगे।वहीं, एक विपक्षी सांसद ने अपनी ‘मिमिक्री कला’ का प्रदर्शन किया। वे उपराष्ट्रपति व राज्यसभा के अध्यक्ष जगदीप धनखड़ का उपहास उड़ाते रहे। सबसे बड़े विपक्षी दल के एक बड़े नेता अपने मोबाइल से इसका वीडियो बनाते रहे।
कहने की जरूरत नहीं कि विरोध के नाम पर विपक्ष की यह कारगुजारी उनपर भारी पड़ी। एक चर्चक ने यहां तक कह दिया कि यह बेवकूफी है। एक ने याद दिलाया कि जिन सांसद ने ऐसा किया है उन्हीं की नेता पर जब एक ने कार्टून बना दिया था, तो उसे बरसों जेल काटनी पड़ी थी। इस प्रकरण को तुरंत एक जाति विशेष से जोड़ा गया।
‘जाट समाज’ का अपमान बताया जाने लगा और कई चैनलों पर जाट समाज उक्त सांसद के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करता दिखने लगा। विपक्ष का ‘धरना’ तो समझ में आता था लेकिन उपराष्ट्रपति के पद पर बैठे व्यक्ति का फूहड़ तरीके से मजाक उड़ाना समझ के बाहर था। कच्ची कला कलह ही पैदा कर सकती है। यों भी ऐसे कलहकारी मौसम में जो भी हंसतम् वही फंसतम् डंसतम्!
फिर, यही वे दिन रहे जब एक दिन विपक्षी इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक ने निहाल किया। मंच पर अठाईस दलों के नेता।अचानक एक चैनल पर खबर टूटी कि दो विपक्षी नेताओं ने इंडिया गठबंधन के सबसे बड़े दल केअध्यक्ष को भावी प्रधानमंत्री का चेहरा प्रस्तावित कर दिया है। गनीमत रही कि प्रस्तावित प्रधानमंत्री के चेहरे ने तुरंत साफ कर दिया कि पहले सांसदों को जिताओ फिर देखेंगे। लेकिन जैसे ही यह हुआ वैसे ही ‘विकल्प जी’ उदास दिखे, फिर खबर आई कि बैठक संपन्न होते ही ‘विकल्पी जुगलजोड़ी’ सबसे पहले खिसक गई।
फिर एक खबर ने डंक मारा : जब ‘विकल्प जी’ हिंदी में बोल रहे थे तो इंडिया गठबंधन में विपक्ष के एक दाक्षिणात्य नेता ने उनको टोक दिया कि अंग्रेजी में बोलो, तिस पर विकल्प जी ने तुरंत जवाब दिया कि हिंदी देश की भाषा है। हाय री विपक्षी एकता! पहले तुझे ‘चेहरे’ ने मारा, फिर ‘भाषा’ ने मारा, तो भी ‘यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी’ वाला गाना बजता रहा!
इस बीच, सरकार ने एक के बाद एक तीन जरूरी बिल संसद में पास किए, जिनके जरिए अंग्रेजों के जमाने के कई कानूनों को बदल दिया गया। ‘राजद्रोह’ को ‘देशद्रोह’ किया गया। तभी इलाहाबाद हाइकोर्ट के द्वारा ज्ञानवापी परिसर की सर्वे रपट को ‘ओके’ करने की खबर ने चैनलों को ‘हिंदू- हिंदू’ करने का अवसर दिया। मथुरा की ईदगाह मस्जिद व श्री कृष्ण जन्मभूमि के परिसर के पुरातात्विक सर्वे की मंजूरी की खबरों ने आगे की राजनीति का एजंडा साफ कर दिया!