अभिषेक कुमार सिंह
निश्चय ही चीन से उठी बुखार की लहर खतरे की घंटी है, जिसे अनसुना करना घातक हो सकता है। वर्ष 2019 और अब 2023 की इस समानता को ध्यान में रखें तो संक्रमण की नई आहट, नए खतरे का संकेत हो सकती है। यही नहीं, अगर लोग यह मान बैठे हैं कि उन्होंने एक से ज्यादा बार कोविड संबंधी टीके लगवाए हैं, इसलिए उन्हें कोरोना का नया संक्रमण नहीं हो सकता, तो यह लापरवाही घातक हो सकती है।
मानव सभ्यता का इतिहास बताता है कि युद्धों और बाढ़, भूकंप, चक्रवात आदि प्राकृतिक आपदाओं से उतनी जनहानि कभी नहीं हुई, जितनी नहीं दिखने वाले बेहद सूक्ष्म जीवाणुओं या विषाणुओं से हुई है। हालांकि पेनिसिलिन के अविष्कार के बाद सोचा जाने लगा था कि इस अचूक नुस्खे से हर किस्म के विषाणु को पस्त किया जा सकता है। लेकिन कोरोना विषाणु से वर्ष 2019 में पैदा कोविड-19 महामारी ने दिखा दिया कि अचानक उभरने वाले संक्रमण के सामने हमारे अत्याधुनिक चिकित्सा जगत के इंतजाम कितने छोटे हैं।
अब यह संक्रमण कम होने लगा था और दुनिया ने चैन की सांसें लेनी शुरू ही की थी कि खबरें आने लगीं कि कोरोना के नए भाई-बंधु (वैरिएंट) जेएन.1 ने दुनिया के कई हिस्सों में अपनी दस्तक दे दी है। यह नया विषाणु हमारी चिंताओं का सबब बन गया है। हाल में केरल में एक मरीज को इस नए विषाणु से संक्रमित पाया गया है और अमेरिका से लेकर सिंगापुर तक में इसकी जकड़ में आए सैकड़ों-हजारों लोगों का पता चला है।
वैसे तो कोरोना विषाणु के नए बहुरूप जेएन.1 के उभरने के वक्त, स्थान और चीनी सरकार के रवैये- इन सभी मामलों में वर्ष 2019 जैसी समानताएं दिख रही हैं। जैसे चीन की सरकार ने अभी आधिकारिक रूप से नहीं कहा है कि यह नया विषाणु उसके यहां पैदा हुआ है। इसकी पैदावार का वक्त भी तकरीबन वैसा ही है। यह समानता भी हमें चौंका सकती है कि भारत में कोविड-19 के शुरुआती मामले अभी की तरह केरल में पकड़ में आए थे।
इन घटनाओं के मद्देनजर केंद्र सरकार ने नए दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं। इस सजगता और तेजी का आधार सिर्फ यह नहीं है कि हमारा देश कोविड-19 महामारी के लंबे दौर का बेहद खराब अनुभव कर चुका है। बल्कि यह भी है कि दुनिया के कई देशों में कोरोना के नए बहुरूप जेएन.1 का कहर शुरू हो चुका है। सिंगापुर में दो हफ्ते के भीतर कोरोना के 60 हजार मामले आ चुके हैं। साथ ही अमेरिका, चीन और भारत में इस संक्रमण की मौजूदगी का पता चल चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने चेतावनी जारी की है।
कोरोना के जेएन.1 बहुरूप के हमारी जमीन पर पहुंचने की पुष्टि भारतीय सार्स-सीओवी2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम ने 13 दिसंबर, 2023 को ही कर दी थी। इसी वजह से ये आशंकाएं सिर उठाने लगी हैं कि कहीं मामला वर्ष 2019 की तरह गंभीर तो नहीं हो जाएगा। तब चीन ने कोरोना के मामलों को छिपाया था। जब पूरी दुनिया को इसके भयावह संक्रमण का अंदाजा हुआ, तब तक काफी देर हो चुकी थी।
इधर कोरोना के नए विषाणु का पता चलने से पहले चीन के हजारों बच्चों में अज्ञात निमोनिया के मामले दर्ज किए गए हैं। बेजिंग, लियाओनिंग और चीन के अन्य स्थानों में नवंबर 2023 के मध्य से ही नए विषाणु की सूचनाएं मिलने लगी थीं। दस हजार से ज्यादा बच्चों के अज्ञात निमोनिया से संक्रमित होने के बाद इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी वाले लक्षणों के साथ दक्षिण कोरिया में भी दो सौ मरीजों के संक्रमित होने का पता चला था।
अभी हालात ये हैं कि अमेरिका, सिंगापुर के बाद भारत के राज्य केरल में कोरोना के नए चेहरे की झलक दिख गई है। भले ही पक्के तौर पर कोई नहीं बता रहा है कि चीन में फैले निमोनिया और कोरोना के नए बहुरूप जेएन.1 के बीच कोई सीधा रिश्ता है, लेकिन अतीत में जिस तरह चीन संक्रमणों के फैल जाने की सूचनाएं छिपाता रहा है, इससे इस आशंका को बल मिलता है कि कहीं इस बार भी चीन से निकलकर कोरोना का नया विषाणु दुनिया के दूसरे देशों में तो फैल नहीं गया है।
हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने चीनी स्वास्थ्य अधिकारियों का हवाला देकर यह दिलासा देने की कोशिश की है कि इस बार चीन में जो बीमारी फैली है, उसके पीछे कोविड-19 के सख्त प्रतिबंधों को हटाना और इन्फ्लूएंजा, माइकोप्लाज्मा निमोनिया (एक सामान्य जीवाणु संक्रमण जो आमतौर पर छोटे बच्चों को प्रभावित करता है) से जुड़ा विषाणु है। इसकी वजह सर्दी की आमद और चीनी नागरिकों में रोग प्रतिरोधक क्षमता के अभाव बताई जा रही है।
असल में यह आशंका काफी पहले से जताई जा रही थी कि लंबे समय तक चली कोविड पूर्णबंदी के कारण, चीन के निवासियों में विषाणु के खिलाफ प्राकृतिक प्रतिरक्षा विकसित नहीं हुई होगी। इस संबंध में एक टिप्पणी यूनिवर्सिटी कालेज लंदन के फ्रेंकोइस बैलौक्स की है। उन्होंने कहा है कि चूंकि चीन ने दुनिया के किसी भी अन्य देश की तुलना में कहीं अधिक कठोर पूर्णबंदी की थी, ऐसे में उनमें रोग प्रतिरोधक तंत्र (इम्युनिटी) का पर्याप्त विकास नहीं हुआ होगा।
उनके बयान का समर्थन आस्ट्रेलिया के डीकिन विश्वविद्यालय में कैथरीन बेनेट ने भी किया। उनका कहना है कि चीन के स्कूली बच्चों ने अब तक की अपनी जिंदगी का आधा हिस्सा रोगाणुओं के सामान्य संपर्कों के बिना बिताया है, इसलिए उन पर किसी विषाणु का तेज संक्रमण हो सकता है। चूंकि कोविड-19 की रोकथाम के लिए की गई सख्त पूर्णबंदी के बाद यह चीन की पहली सर्दी है, तो इसका एक अर्थ यह निकलता है कि वहां ऐसे बच्चों की संख्या सामान्य से कहीं अधिक होगी, जो पहले किसी विषाणु और जीवाणु के संपर्क में नहीं आए, और इसलिए उनमें कोई प्रतिरक्षा नहीं है। इसके अलावा जो लोग पहले संक्रमित हो चुके हैं, उनकी प्रतिरोधक क्षमता काफी हद तक कमजोर हो गई होगी।
जिस तरह से डब्लूएचओ ने इधर कहा है कि बच्चों में सांस की बीमारी के इन मामलों के जोखिम का सही आकलन करने के लिए फिलहाल बहुत कम जानकारी है, उससे दुनिया के कान खड़े हो गए हैं। इसके अलावा विषाणुओं के उद्भव, उनके प्रसार और दुनिया से संबंधित जानकारियों को छिपाने के इतिहास को देखते हुए चीन के आश्वासनों पर कम ही यकीन किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि चीनी स्वास्थ्य अधिकारियों और डब्लूएचओ, दोनों पर कोविड-19 महामारी के संबंध में अपनी प्रारंभिक रपटों में पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाया गया था। सार्स और कोविड-19, दोनों को सबसे पहले असामान्य प्रकार के निमोनिया के रूप में ही बताया गया था। ऐसे में कोरोना के नए बहुरूप जेएन.1 की दस्तक को देखते हुए जरूरी हो गया कि है कि दुनिया चीन से उभरते नए संक्रमण को लेकर अत्यधिक सतर्क रहे।
निश्चय ही चीन से उठी बुखार की लहर खतरे की घंटी है, जिसे अनसुना करना घातक हो सकता है। वर्ष 2019 और अब 2023 की इस समानता को ध्यान में रखें तो संक्रमण की नई आहट, नए खतरे का संकेत हो सकती है। यही नहीं, अगर लोग यह मान बैठे हैं कि उन्होंने एक से ज्यादा बार कोविड संबंधी टीके लगवाए हैं, इसलिए उन्हें कोरोना का नया संक्रमण नहीं हो सकता, तो यह लापरवाही घातक हो सकती है।
समझना होगा कि कोरोना विषाणु अपना चेहरा बदल-बदलकर नई ताकत के साथ इंसानों पर हमला बोल रहा है। इसलिए जरूरी है कि संक्रमण की हर लहर को लेकर चौकन्ना रहा जाए और मास्क लगाने व सामाजिक दूरी बरतने के सिद्धांतों पर अमल करते रहने की समझदारी दिखाई जाए।