लोकसभा और राज्यसभा से तीन नए क्रिमिनल लॉ बिल पास हो गए हैं। कानूनों में कई बदलाव किये गए हैं। आतंकवाद और संगठित अपराध को सामान्य आपराधिक कानून के दायरे में लाने से लेकर बच्चों से संबंधित अपराधों तक के लिए अब कानून और सख्त होंगे।
शादी का वादा: BNS ने खंड 69 पेश किया है जो शादी के ‘धोखे’ वादे को अपराध घोषित करके ‘लव जिहाद’ से निपटने के लिए बनाया गया है। जो कोई भी धोखे से या किसी महिला से शादी करने का वादा करके उसके साथ यौन संबंध बनाता है और फिर शादी नहीं करता है तो ये अपराध की श्रेणी में आएगा। उसे दस साल कारावास तक की सजा मिल सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
मॉब लिंचिंग: BNS प्रावधान मॉब लिंचिंग और हेट क्राइम हत्याओं से जुड़े अपराधों को लेकर भी सख्त है। ऐसे मामलों में आजीवन कारावास से लेकर मौत तक की सज़ा का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में केंद्र से लिंचिंग के लिए एक अलग कानून पर विचार करने को कहा था।
संगठित अपराध: पहली बार संगठित अपराध से निपटने को सामान्य आपराधिक कानून के दायरे में लाया गया है। संगठित अपराध सिंडिकेट्स या गिरोहों द्वारा आपराधिक गतिविधियों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए कई विशेष राज्य विधान हैं, जिनमें से सबसे लोकप्रिय महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 1999 है। दिलचस्प बात यह है कि नए कानून में संगठित अपराध करने के प्रयास और संगठित अपराध करने के लिए सजा एक ही है, लेकिन अपराध के कारण मौत हुई है या नहीं, इसके आधार पर अंतर किया गया है। मृत्यु से जुड़े मामलों के लिए सजा आजीवन कारावास से लेकर फांसी तक है। लेकिन अगर अपराध के कारण मृत्यु नहीं होती है तो न्यूनतम पांच साल की सजा और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा होगी।
आतंकवाद: बीएनएस आतंकवाद को सामान्य आपराधिक कानून के दायरे में लाता है। बैंगलोर के नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी बैंगलोर के एक विश्लेषण के अनुसार आतंकवादी की परिभाषा फिलीपींस के आतंकवाद विरोधी अधिनियम 2020 से ली गई है। महत्वपूर्ण बात यह है कि आतंकवाद के फाइनेंस से जुड़े अपराध यूएपीए की तुलना में बीएनएस में व्यापक हैं। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि यूएपीए और बीएनएस दोनों एक साथ कैसे काम करेंगे।
आत्महत्या का प्रयास: बीएनएस के नए प्रावधान के अनुसार किसी भी लोक सेवक को उसके आधिकारिक कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए मजबूर करने या रोकने के इरादे से आत्महत्या करने का प्रयास करने वाले को अपराधी मानता है। इसमें जेल की सजा का भी प्रावधान है। विरोध प्रदर्शन के दौरान आत्मदाह और भूख हड़ताल को रोकने के लिए इस प्रावधान को लागू किया जा सकता है।
अप्राकृतिक यौन अपराध (Unnatural sexual offences): भारतीय दंड संहिता की धारा 377 अप्राकृतिक यौन गतिविधियों के बीच समलैंगिकता को अपराध मानती थी, इसको बीएनएस के तहत निरस्त कर दिया गया है।
व्यभिचार (Adultery): व्यभिचार का अपराध, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में असंवैधानिक करार दिया था, उसे बीएनएस के तहत हटा दिया गया है।
राजद्रोह: कानून को पहली बार जब अगस्त में लोकसभा में पेश किया गया था, उस दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि राजद्रोह पर कानून निरस्त कर दिया गया है। नए बिल में ‘राजद्रोह’ की जगह ‘देशद्रोह’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है। अब देश आजाद हो चुका है और कानून के अनुसार लोकतांत्रिक देश में सरकार की आलोचना कोई भी कर सकता है। अगर कोई देश की सुरक्षा, संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का काम करेगा तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। उसे जेल जाना ही पड़ेगा।