महात्मा गांधी और विनोबा भावे के अहिंसक विचारों के समर्थक आस्ट्रेलियाई मूल के एक दार्शनिक हुए हैं, इवान इलिच। उनका विचार था कि वाहनों ने मनुष्य के पैरों की ताकत छीन ली है। मशीनी तकनीक ने मनुष्य के हाथों के हुनर छीन लिए हैं और मनुष्य के विरुद्ध एक प्रति मनुष्य ‘रोबोट’ के रूप में विकसित कर व्यक्ति को सीमेंट, कंक्रीट और यंत्रों के जंगल में अकेला छोड़ देने के उपक्रम हो रहे हैं। परिवार और समाज है, तब भी वे यंत्रों की पराधीनता के चंगुल में हैं, अपनी स्वतंत्रता खोकर।
रोबोट में बुद्धि डाल कर उसे हम मनुष्य का शासक बनाने में लगे हुए हैं। अभी तक रोबोट को नए-नए रूपों में विकसित करने का काम वैज्ञानिक रूपी मनुष्य करता था, लेकिन प्रौद्योगिकी के आकाश में कृत्रिम बुद्धि ने ऐसे पंख दे दिए हैं कि रोबोट अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता की मदद से स्वयं अद्यतन होने लगे हैं। रोबोट के स्वयमेव परिवर्तन और नए रोबोट पैदा करने की इस ताकत के परिणाम फलदायी होंगे या घातक, यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन विचारणीय बिंदु अवश्य है।
भविष्य का रोबोट यांत्रिक मानव भर नहीं रह जाएगा, उसे यंत्र और कृत्रिम बुद्धि के बूते एक जीवित मानव में बदलने की कोशिश हो रही है। इस दिशा में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने जीवित रोबोट का एक माडल आविष्कृत भी कर दिया है। वैज्ञानिकों के एक समूह ने मेढक भ्रूण की जीवित कोशिकाओं को अन्य नूतन जीवन रूपों में अवतरित करने में सफलता प्राप्त कर ली है। इसमें न्यूनतम वजन की युक्ति (डिवाइस) के जरिए इंद्रिय बोध कराया जा सकता है। इसमें चौबीस संवेदी यंत्र संलग्न हैं।
यह मांसपेशियों की गतिविधियों और दिमागी अनुभव करके काम को अंजाम देता है। इसे ‘एस्पर बायोनिक्स प्रोस्थेटिक हैंड’ नाम दिया गया है। इसे क्रियाशील बनाए रखने में एआइ और क्लाउड प्रौद्योगिकी से किया जाता है। इस तकनीक के जरिए इंटरनेट पर उपलब्ध डेटा और प्रोग्राम ग्रहण कर लिए जाते हैं। रोबोट आरंभिक अवस्था में हार्डवेयर और साफ्टवेयर के समन्वय से निर्मित उपकरण था। शुरू में इसकी उपयोगिता मनुष्य की पहुंच पर कठिन और खतरनाक कामों से जुड़ी थी। इसके प्रभावी उत्पादकता के मद्देनजर इसमें बदलाव होते रहे और इस तकनीक को नाम दिया गया रोबोटिक्स। कालांतर में डिजिटल, एआइ और इंटरनेट तकनीक के समन्वय की युक्तियों से जीवित रोबोट की एक प्रजाति चलन में आई, जिसे ‘बायोनिक्स’ और ‘एक्सनोबोट्स’ नाम दिए गए।
दुनिया के वैज्ञानिक बीसवीं सदी की शुरुआत से ही दो तरह के कृत्रिम मानव विकसित करने के प्रयासों में लगे हैं। एक ‘एंड्राइड’ यानी कृत्रिम मानव और दूसरा ‘सायबोर्ग’ यानी मशीनी मानव। वैज्ञानिकों को ऐसे मानव बनाने की कल्पना गल्प साहित्य से मिली। साहित्य और विज्ञान दो ऐसे विषय हैं, जो वर्तमान को भूतकाल और भविष्य को वर्तमान बना देने की सामर्थ्य रखते हैं। उद्योगों में मानवीय श्रम करने वाले ये मशीनी मानव अब कृत्रिम मेधा से स्वयमेव संचालित होते हुए सहस्र बुद्धि मशीनी मानव बनते जा रहे हैं।
इस कृत्रिम बुद्धि का कमाल है कि अब इन्हें किसी विशेषज्ञ मनुष्य को निर्देशित करने की जरूरत नहीं रह जाएगी, बल्कि इसकी तंत्रिकाओं में कृत्रिम रूप से विकसित किए गए बुद्धि-तंत्र से ये स्वयमेव क्रियाशील रहेंगे। चैट-जीपीटी और चैट बोट्स साफ्टवेयर इनके वे औजार होंगे, जो इन्हें शब्द गढ़ने की उन्नत सामर्थ्य से बहुभाषी बनाएंगे और समस्याओं के समाधान की दिशा में स्वत: सक्रिय हो जाएंगे।
दुनिया के वैज्ञानिक ‘एंड्राइड’ और ‘साइबोर्ग’ रूपों में कृत्रिम मानव बनाने के प्रयास में लगे हैं। एंड्राइड का अर्थ ऐसे मानवों से है, जो सिर्फ कार्बनिक यौगिकों से प्रयोगशाला में बने हों और पूरी तरह बनावटी हों। इनकी संरचना इंसानों से मिलती-जुलती होती है, इसलिए इन रोबोट को ‘ह्यूमन रोबोट’ भी कहा जाता है। वैसे एंड्राइड शब्द को हम एंड्राइड मोबाइल के रूप में खूब जानते हैं। बैटरीयुक्त चलते-फिरते गुड्डे-गुड़ियाएं इसी श्रेणी में आते हैं।
वर्तमान दुनिया में अनेक प्रकार के कृत्रिम मानवीय आकार के रोबोट आविष्तृत किए जाकर चर्चा में आ चुके हैं। ये मानव समुदायों के बीच विभिन्न प्रकार की भूमिकाओं का निर्वहन कर रहे हैं। इनमें ‘एडा’ ऐसी स्त्रीलिंगी रोबोट है, जिसे दुनिया की पहली ‘रोबोट आर्टिस्ट’ माना गया है। इसकी आंखों में कैमरा और चीजों को ग्रहण करने के लिए कृत्रिम-मेधा का प्रयोग होता है। आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अपने प्रदर्शन के माध्यम से इसने यह साबित करके दिखाया कि कैसे भिन्न लोग कला को पृथक-पृथक कोणों से प्रस्तुत करते हैं।
इसी तरह हांगकांग की कंपनी ने ‘सोफिया’ नाम के रोबोट को आकार दिया है। यह कृत्रिम मानव और बुद्धि के क्षेत्र में भविष्य की प्रतीक बन गई है। इसकी अद्भुत विलक्षणता है कि यह व्यक्ति की कल्पनाशीलता को ग्रहण करने में सक्षम है। इसने अनेक टीवी शो और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में अपनी कृत्रिम बुद्धि का लोहा मनवाया है। इसने अति आधुनिक प्रज्ञा के जरिए नवीनतम अनुसंधानों में अहम योगदान दिया है। सऊदी अरब ने इसे नागरिकता देकर इसके मनुष्य अवतार को स्वीकार्यता दे दी है। इसे शिक्षा, अनुसंधान और मनोरंजन के क्षेत्रों में काम करने की दृष्टि से ही विकसित किया गया है।
अब दुनिया स्त्री-पुरुष जैसे दिखने वाले रोबोटों के निर्माण से आगे निकल चुकी है। इस दौड़ में चीन सबसे आगे है। अब एंड्राइड तकनीक आधारित कुत्ते, बिल्ली, तितली और अन्य जानवरों जैसे रोबोट अस्तित्व में आ चुके हैं। चीन ने अनूठे किस्म के सात सौ चालीस प्रकार के रोबोट तैयार किए हैं। ये रोबोट हमारे दैनिक कार्यों में मदद करके उन्हें सरलता से पूरा कर देते हैं। इसीलिए इन्हें साथी मानवीकृत (कंपैनियन ह्यूमनाइड) रोबोट नाम दिया गया है। इनमें चाय, काफी, भोजन बनाकर परोसने वाले रोबोट तो हैं ही, सफाई करने और बिखरे सामान को यथा-स्थान रखने वाले रोबोट भी हैं। इसलिए इन्हें पेशेवर सेवक की श्रेणी में रखा गया है। ये मनुष्य जैसी बातचीत करने में भी सक्षम हैं।
भारत अब रोबोट निर्माण का बड़ा खिलाड़ी बनने की दिशा में पहल कर रहा है। रोबोट तकनीक में भारत अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी और दक्षिण कोरिया से बहुत पीछे है। नतीजतन सरकार रोबोटिक्स कारोबार में गति देने के नजरिए से राष्ट्रीय रणनीति लेकर आ रही है। इसके अंतर्गत रोबोट बनाने से लेकर रोबोटिक्स को अपनाने तक के लिए सरकार आर्थिक मदद देगी। रोबोट में लगने वाले आवश्यक कच्चे माल से लेकर इस क्षेत्र में अनुसंधान और विकास का एक पूरा तंत्र विकसित किया जाएगा।
इस काम के लिए ‘रोबोटिक्स इन्नोवेशन यूनिट’ (आरआइयू) की स्थापना की जाएगी। यह इकाई भारत सरकार के इलेक्ट्रानिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन एक एजंसी के रूप में काम करेगी। भारत में फिलहाल रोगियों की शल्य चिकित्सा से लेकर आटोमोबाइल्स रोबोट का उपयोग होता है। इसका वैश्विक कारोबार 6.7 अरब डालर तक पहुंच गया है। भारत अभी इस क्षेत्र में बहुत पीछे है। सभी क्षेत्रों में मिलाकर लगभग 33 हजार रोबोट क्रियाशील हैं।
इंसानी बुद्धि से आविष्कृत मानव रोबोट भस्मासुर भी साबित हो रहे हैं। रोबोट द्वारा किसी इंसान की जान लेने की पहली घटना जर्मनी की राजधानी बर्लिन में कार बनाने वाली कंपनी ‘फाक्स वैगन’ संयंत्र में घट चुकी है। यहां एक रोबोट ने एक कर्मचारी को अपने पंजों में जकड़ लिया और वहीं पटक कर मार डाला। यह रोबोट कार के कल-पुर्जों की असेंबलिंग का काम कर रहा था। इस मामले में चूंकि हत्यारा यांत्रिक मानव है, इसलिए पुलिस कार्रवाई भी संभव नहीं हो पाई। आखिर किसी यंत्र को तो आरोपी बनाया नहीं जा सकता?