विधानसभा चुनाव के बाद शिवराज सिंह चौहान ने सियासी परिपक्वता का परिचय दिया। मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार होने के बावजूद न किसी दौड़ में शामिल हुए और न ही कोई लाबिंग की। दिल्ली जाकर आलाकमान से मुलाकात की भी जरूरत नहीं समझी। पत्रकारों ने पूछा तो बेबाकी से जवाब दिया कि दिल्ली जाकर पद मांगने के बजाए वे मर जाना अच्छा समझेंगे।
बंपर जीत के बाद छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में पहुंच गए। पिछले लोकसभा चुनाव में सूबे की 29 में से इकलौती यही सीट भाजपा को नहीं मिली थी। कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ हैं इस सीट से सांसद। शिवराज सिंह सूबे के मुख्यमंत्री थे और जीत का श्रेय भी उन्हें मिला। उनकी व्यथा किसी से छिपी नहीं। फिर उन्होंने प्रतिक्रिया दी कि ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया।
शिवराज ने सोशल मीडिया पर अपने नाम के साथ मामा और भाई तो जरूर लिखा पर सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री या भाजपा नेता के नाते अपना परिचय नहीं दिया। पर भाजपा के लिए 2024 का लोकसभा चुनाव सबसे अहम है। तभी तो पार्टी अध्यक्ष का बुलावा आया। दोनों के बीच क्या बातचीत हुई, किसी ने खुलासा नहीं किया। शिवराज ने बस इतना ही कहा कि पार्टी जो दायित्व सौंपेगी उसे पूरा करेंगे। कयास तमाम तरह के लगाए जा रहे हैं। कुछ मानते हैं कि उन्हें पुनर्वास का भरोसा दिया गया तो कुछ का मानना है कि अध्यक्ष ने समझा दिया कि बगावत का सिर्फ नुकसान होना है।
शीतकालीन सत्र के स्थगित होने से पहले संसद में तीन अहम कानूनों पर चर्चा हो रही थी। चर्चा से पहले ही विपक्ष बाहर हो चुका था। चर्चा के वक्त सभी सांसद इतने गंभीर हो गए कि किसी को ‘अच्छे कानूनी प्रावधान’ पर मेजें थपथपाना याद नहीं रहा। पार्टी के शीर्ष नेता व वरिष्ठ मंत्री जी को यह सन्नाटा पसंद नहीं आया। उन्हें माहौल बनाने के लिए आगे आना पड़ा। उन्होंने पार्टी के एक वरिष्ठ नेता को मेजें थपथपाने का इशारा किया।
पहले उन नेता जी ने एक पर्ची दूसरे सांसद को भेजी। तब भी माहौल नहीं बना तो नेता जी सांसदों को मेजें थपथपाने के लिए कहते नजर आए। इसके बाद सांसद सक्रिय हुए और सरकार के पेश हर प्रावधान पर उच्च सदन में जमकर मेजें थपथपाई गई। बाद में सत्तापक्ष के सांसदों की लंबी चर्चा के बाद इस विधेयक को गर्मजोशी के साथ ध्वनि मत से पारित कर दिया गया।
मायावती ने दावा किया था कि लोकसभा चुनाव वे अकेले लड़ेंगी। सयानापन तो इसी में है कि वे अकेले लड़ने के बजाए गठबंधन करें। राजग में जाएं या इंडिया गठबंधन में, यह उनकी अपनी मर्जी। गुरुवार को उनकी प्रतिक्रिया ने उनके चुनाव से ठीक पहले इंडिया गठबंधन में शामिल होने की संभावना को उभारा है।
मायावती ने कहा कि उनके बारे में बेवजह की बयानबाजी ठीक नहीं, पता नहीं कब किसको किसकी जरूरत पड़ जाए। दरअसल कांग्रेस चाहती है कि बसपा भी उत्तर प्रदेश में विपक्षी गठबंधन का हिस्सा बने। पर अखिलेश यादव इंडिया गठबंधन में बसपा को शामिल करने के खिलाफ हैं। मायावती ने उसी संदर्भ में आगाह किया कि उन्हें नजरअंदाज करना महंगा पड़ सकता है।
मध्य प्रदेश में पार्टी के अध्यक्ष और विधायक दल के नेता के पद पर चौंकाने वाले चेहरों की कांग्रेस ने तैनाती कर दी है। कमलनाथ लोकसभा चुनाव तक पार्टी के सूबेदार बने रहना चाहते थे। आलाकमान ने उनकी यह इच्छा पूरी नहीं की। अलबत्ता युवा चेहरे जीतू पटवारी को पार्टी की कमान सौंपी है। विधायक दल का नेता उमंग सिंघार और उपनेता हेमंत कटारे को बनाकर बदले सामाजिक समीकरणों का संकेत दिया है।
पटवारी हालांकि इस बार विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाए। वे ओबीसी वर्ग के हैं। जबकि नेता प्रतिपक्ष बनाए गए उमंग सिंघार आदिवासी हैं। कटारे ब्राह्मण हैं। इसी तरह छत्तीसगढ़ में ओबीसी चरण दास महंत को विधायक दल का नेता बनाकर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को झटका दिया गया है। बघेल के नेतृत्व में पार्टी को सत्ता में वापसी का भरोसा था।
इसलिए सिंहदेव को वादे के मुताबिक ढाई साल बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी देने के बजाए पार्टी ने बघेल को पूरी छूट दी थी। महंत पिछली सरकार में विधानसभा अध्यक्ष थे। दीपक बैज बस्तर से सांसद हैं। पार्टी ने उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ाया था पर वे हार गए। वे आदिवासी हैं और उन्हें पार्टी की कमान जुलाई में ही सौंपी गई थी लिहाजा उन्हें नहीं छेड़ा गया है। राजस्थान में आलाकमान के लिए नए प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेता का चयन टेढ़ी खीर होगा। एक तो अशोक गहलोत और सचिन पायलट के लिए नई भूमिका तय करना और उससे भी जटिल होगा दोनों के बीच समन्वय बनाना।
बिन मांगे मुख्यमंत्री बने, मांगे मिले न वोट…। शक्ति ऐसी चीज है जिसके प्रदर्शन के बाद उसके संतुलन की घड़ी भी आ ही जाती है। लेकिन, मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री मोहन यादव के लिए यह घड़ी जल्दी आ गई और आंकड़ा भी थोड़ा शर्मसार करने वाला यानी महज पांच वोटों का रहा। मध्यप्रदेश में अंतिम पंक्ति के कार्यकर्ता को मुख्यमंत्री बना कर चौंका दिया गया।
लेकिन, कुश्ती संघ के चुनाव में उन्हें उपाध्यक्ष बनाने के लिए वोट नहीं जुटाए जा सके। भारतीय कुश्ती संघ का यह चुनाव शक्ति प्रदर्शन का अखाड़ा बन भी गया था। लेकिन, महज पांच वोट हासिल करने के बाद मुख्यमंत्री मोहन यादव चर्चा का सबब बन चुके हैं। हालांकि, उन्होंने इस पद के लिए नामांकन जुलाई महीने में ही किया था, जब राजनीति में वे अंतिम पंक्ति के थे।
लेकिन, नतीजा आने के बाद पहली पंक्ति वाले चेहरे को दबदबे में भी वोट नहीं मिला। हालांकि बृजभूषण सिंह फिर से जोश में आ गए। तभी तो वे पोस्टर लेकर बता रहे-दबदबा तो है, दबदबा तो रहेगा, यह तो भगवान ने दे रखा है…। पूरे जोश से कह रहे कि पूरा पैनल हमारा है, जो भी जीता हमारे वोटों से जीता।
संकलन : मृणाल वल्लरी