कृष्ण कुमार रत्तू
यह नई तकनीक और सूचना प्रौद्योगिकी का समय है। यह चकाचौंध से भरी तेज रफ्तार जिंदगी और त्वरित संप्रेषण वाले माध्यमों यानी हाथ में पड़े मोबाइल की भूल-भुलैया में खोई हुई जिंदगी का समय है। इसे सबसे भयावह, सन्नाटे से भरा और भीड़, शोर और तकनीक से चलता हुआ समय कहें तो गलत न होगा।
इस नए युग की समय धारा में आदमी, नया समाज और नई पीढ़ी कहां है? जरा इधर-उधर अपने आसपास देखें तो लगता है कि यह समय किस तरह पिछले एक दशक में बदल गया है, पता ही नहीं चला। हमारा मन, सोच, दृष्टिकोण और भाषा कैसे बदल गई है, इसके बारे में हम अंदाजा नहीं लगा सके कि क्या और कैसे बदल गया।
इन दिनों तकनीक का एक दूसरा संस्करण सामने है, जिसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम मेधा कहा जा रहा है। यह तकनीक का एक आधुनिकतम रूप है, मगर अभी शुरुआती दौर में ही इसके जरिए जो कुछ होने की खबरें आ रही हैं, इससे यही लग रहा है कि यह एक नई चुनौती बनकर आया है। दरअसल, इसका इस्तेमाल करके तैयार किए गए आपत्तिजनक ‘डीपफेक वीडियो’ चर्चा में रहे हैं।
यह भी सच है कि समाज नई तकनीकों और आविष्कारों के साथ-साथ अपने आप को बदलता है। मगर इस बदलाव की सीमा क्या होगी और कहां होगी? अब तो लगता है कि सब कुछ बदलने का समय है और जीवनयापन का तरीका भी बदल गया है। यही समय का सच है और इसी सच के साथ हम जी रहे हैं।
इस सच के अगले सच के इंतजार में चलते जा रहे हैं। इन दिनों आभासी दुनिया का एक नया संसार भी विकसित हो गया है। हमारे गांव खाली हो रहे हैं और शहरों में भीड़ बढ़ रही है। यह एक नया परिदृश्य है, जो आज दिखता है कि आदमी के विकास के साथ-साथ आदमी का चेहरा और उसकी पहचान किस तरह बदल रही है।
जैसे-जैसे इस नए मीडिया की नई दृष्टि इस समाज पर पड़ी, उसने छोटे से मोबाइल में आपकी सारी दुनिया को केंद्रित कर दिया। पर अब नई पीढ़ी जिस तरह आभासी दुनिया और कृत्रिम मेधा के आगे नतमस्तक हो रहे हैं, वह और भी विचित्र है। लगता है कि अब आदमी के दिमाग और दिल की कोई जरूरत नहीं रह गई। सारा का सारा काम कृत्रिम मेधा कर देगी।
सरकारी कार्यालय में अब बाबू का काम इसी के हवाले होने वाला है। पर एक खतरा उससे भी बड़ा है- ‘डीपफेक’ का। ‘डीपफेक’ से एक चेहरे से कई चेहरे और अन्य के चेहरे पर आपका चेहरा लगाकर उसे सच बनाया जा सकता है। इससे सुविधा क्या होगी, अभी यह साफ नहीं है, मगर इसके खतरे अभी ही समझ में आने लगे हैं।
हमारा समाज, हमारा युवा वर्ग और बहुत से लोग, जिनमें कई चर्चित हस्तियां भी शामिल हैं, इसका शिकार हो रहे हैं। इसके खतरनाक रुझान इस जिंदगी की नई त्रासदी को जन्म दे रहे हैं। हमारा समाज जिस तेजी से बदल रहा है, हमारे गांव और शहरों का चेहरा भी बदल गया है और इस बदलते हुए चेहरों में आपका अपना चेहरा किस तरह से लग जाएगा और किस तरह से दिखेगा इसके लिए आपको तैयार हो जाना चाहिए। यह चेहरा आपका नहीं है। आपका चेहरा भारतीयता का चेहरा है, जिसमें भारत जीता और जागता है। आजादी के इतने लंबे सफर के बाद क्या हम आने वाली पीढ़ी को इस कृत्रिम मेधा और ‘डीपफेक’ का शिकार होने देंगे।
यह सिद्ध है कि अब मनोवैज्ञानिक तौर पर उदासीनता तथा आदमी को इस तरह से आत्मचिंतन के लिए अकेला कर रहा है कि उसका उदाहरण जापान जैसे देश से लेकर दुनिया के कई अन्य विकसित देशों में देखी जा रही है, जहां आदमी का आदमी से संवाद टूट गया है। इन दिनों परिवार का संवाद समाज के साथ नहीं है, लोगों के संस्कार और जीवन मूल्य टूट रहे हैं।
यानी जीवन टूटने लगा है, पर सच यह है कि अगर हम अपनी भारतीय संस्कृति तथा अपनी सौगात और भाईचारे की सामाजिक संवेदनाओं, गंगा-जमुनी तहजीब का भारत देखना चाहते हैं, तो भारतीय संस्कृति में इसकी ओर केंद्रित करने के लिए नई पीढ़ी और दूसरे लोगों को आगे आना होगा। आज के सिविल समाज, तकनीकी माध्यमों के माहिर लोगों को नई भारतीयता संस्कृति के साथ आगे आने की जरूरत है।
कृत्रिम मेधा के चेहरे बदलने वाले बहुत दूर आएंगे और आते रहेंगे, पर आपका संवेदनात्मक चेहरा आपका अपना रहेगा, क्योंकि उसमें संस्कारों का एक वह नया चेहरा होगा, जिसमें परिवार होगा, देश होगा, आपका घर-परिवार होगा, दोस्त होंगे तथा प्रकृति का बिखरा हुआ सौंदर्य होगा और उसका हिस्सा आप बनेंगे। वह चेहरा आपका अपना चेहरा होगा।
इसीलिए कह सकते हैं कि इन दिनों हर चेहरा बे-चेहरा है। इस दौड़-भाग की दुनिया में, इस नई तकनीक की दुनिया में अपने-अपने चेहरे को संभाल कर रखने की जरूरत है, क्योंकि आने वाले चेहरे में सच रहेगा, तो वही जिंदा रहेगा। यही जिंदगी समाज को आगे नई दिशा देने के लिए एक नया समाज पैदा करती है।