रामानुज पाठक
इस वर्ष जनवरी में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दी थी। हरित हाइड्रोजन में प्राकृतिक गैस सहित जीवाश्म ईंधन को ऊर्जा स्रोत के रूप में प्रतिस्थापित करने की क्षमता है। हरित हाइड्रोजन मिशन में उर्वरक उत्पादन, पेट्रोलियम शोधन, स्टील, परिवहन आदि जैसे उद्योगों में हरित हाइड्रोजन के साथ भूरे हाइड्रोजन के प्रतिस्थापन की परिकल्पना की गई है, जिससे कार्बन उत्सर्जन और आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होगी। इससे 2030 तक जीवाश्म ईंधन के आयात में एक लाख करोड़ रुपए तक की बचत होने का अनुमान है।
विद्युत अपघटन के माध्यम से एक किलोग्राम हरित हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए लगभग दस लीटर अलवणीकृत पानी की आवश्यकता होती है। इस हिसाब से प्रतिवर्ष पांच एमएमटी हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिए लगभग पांच सौ लाख घनमीटर डिमिनरलाइज्ड (अलवणीकृत) पानी की आवश्यकता होगी।
अधिकांश हरित हाइड्रोजन उत्पादन संयंत्र बंदरगाहों के पास स्थापित होने की उम्मीद है। हाइड्रोजन स्वच्छ, नवीकरणीय, कम उत्सर्जन वाला और उपयोग में सुरक्षित है। पानी को विद्युत अपघटित करके पानी से हाइड्रोजन निकाल सकते हैं। इसे ‘हरित’ बनाने के लिए बिजली नवीकरणीय स्रोतों से होनी चाहिए। ज्यादातर मामलों में, इस प्रक्रिया के लिए, सौर ऊर्जा का उपयोग किया जाता है।
हरित हाइड्रोजन मिशन में चार पद शामिल हैं। प्रथम पद हरित हाइड्रोजन संक्रमण के लिए रणनीतिक कौशल योजना हेतु 17,490 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं, वहीं शुरुआती चरण के लिए 1486 करोड़ के बजट का प्रावधान किया गया है। शोध और विकास के लिए 400 करोड़ रुपए। मिशन के अन्य घटकों के लिए 388 करोड़ आबंटित किए गए हैं।
हाइड्रोजन संक्रमण के लिए रणनीतिक कौशल योजना के तहत हरित हाइड्रोजन और इलेक्ट्रोलाइजर (वैद्युत अपघट्य, जो जल से हाइड्रोजन और आक्सीजन मुक्त करता है) विनिर्माण परियोजनाओं के लिए बोलियां दिसंबर 2023 तक जमा की गई हैं। रणनीतिक हस्तक्षेप योजना के तहत भारत में हरित हाइड्रोजन के लिए साढ़े चार लाख टन की उत्पादन सुविधाएं स्थापित करने के लिए हरित हाइड्रोजन उत्पादकों के चयन के लिए अनुरोध भी बीते जुलाई माह में जारी किया गया था।
कुछ स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियां अब तक ऊर्जा परिवर्तन पर हावी रही हैं, जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और लिथियम आयन बैटरी। इन प्रौद्योगिकियों के बड़े पैमाने पर निर्माण और तैनाती से उनकी लागत में गिरावट देखी गई है, 2010 और 2018 के बीच बैटरी की लागत में 84 फीसद सौर ऊर्जा के लिए 87 फीसद, तटवर्ती पवन ऊर्जा के लिए 47 फीसद और अपतटीय पवन ऊर्जा के लिए 32 फीसद की गिरावट आई है।
इन प्रौद्योगिकियों का विकास और निर्माण बड़े पैमाने पर भारत के बाहर हुआ है। कंपनियों का झुकाव अमेरिका, यूरोप और चीन पर है। प्रौद्योगिकी नेतृत्वकर्ता बनने के लिए, इन देशों ने नवाचार शृंखला में पर्याप्त और उचित वित्तपोषण सुनिश्चित करके, सार्वजनिक और निजी दोनों वित्तीय व्यवस्था के साथ, प्राथमिकता वाली प्रौद्योगिकियों के लिए मजबूत आपूर्ति-उपयोग नीतियों को लागू किया है।
दुनिया अभूतपूर्व गति और पैमाने पर ऊर्जा के स्वच्छ, कम कार्बन स्रोतों की ओर संक्रमण के दौर से गुजर रही है। प्रौद्योगिकी वक्र में आगे रहना सभी देशों के लिए रणनीतिक महत्त्व का विषय है, लेकिन विशेष रूप से भारत के लिए, जो आने वाले दशकों में इन प्रौद्योगिकियों के लिए दुनिया के सबसे बड़े बाजारों में से एक होगा। भारत को ऊर्जा परिवर्तन के लाभों को अधिकतम करने के लिए खुद को प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर स्थापित करने की जरूरत है।
प्रौद्योगिकी निर्माता बनने की जरूरत है, न कि प्रौद्योगिकी क्रय करने वाला बनने की। हाइड्रोजन की शुरुआती मांग बाजारों में स्थापित होने के लिए ईंधन सेल, बिजली क्षेत्र में आपूर्ति और मांग को संतुलित करना और उद्योग में जीवाश्म ईंधन की जगह लेना शामिल है। भारत में हाइड्रोजन के उपयोग का संभावित पैमाना बहुत बड़ा है, जिसके 2050 तक तीन से दस गुना तक वृद्धि के अनुमान हैं।
अंतरराष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजंसी द्वारा जारी ‘वर्ल्ड एजंसी ट्रांजिशन आउटलुक’ रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2050 तक कुल ऊर्जा मिश्रण में हाइड्रोजन की हिस्सेदारी 12 फीसद तक हो जाएगी। एजंसी ने यह भी सुझाव दिया था कि उपयोग किए जाने वाले इस हाइड्रोजन का लगभग 66 फीसद हिस्सा प्राकृतिक गैस के बजाय जल से प्राप्त किया जाना चाहिए। स्वच्छ वैकल्पिक ईंधन विकल्प के लिए हाइड्रोजन पृथ्वी पर सबसे प्रचुर तत्त्वों में से एक है। यह ऊर्जा की अधिक मात्रा का वितरिण या संग्रहण कर सकता है।
वर्तमान में पेट्रोलियम शोधन और उर्वरक उत्पादन में हाइड्रोजन का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है, जबकि परिवहन एवं अन्य उपयोगिताएं इसके लिए उभरते बाजार हैं। हाइड्रोजन और ईंधन सेल वितरित या संयुक्त ताप तथा शक्ति सहित विविध अनुप्रयोगों में उपयोग के लिए ऊर्जा प्रदान कर सकते हैं। अतिरिक्त ऊर्जा, अक्षय ऊर्जा भंडारण और इसे सक्षम करने के लिए, तंत्र चालित बिजली आदि के लिए इनका उपयोग किया जा सकता है। इनकी उच्च दक्षता और शून्य या लगभग शून्य उत्सर्जन संचालन के कारण हाइड्रोजन और ईंधन सेलों जैसे कई अनुप्रयोगों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की कम करने की क्षमता है।
इस समय दुनिया भर में कुल उत्पादित हाइड्रोजन का एक से डेढ़ फीसद हिस्सा ही हरित हाइड्रोजन का होता है। हरित हाइड्रोजन के अधिक उत्पादन के लिए इलेक्ट्रोलाइजर के निर्माण और संस्थापन को 0.3 गीगा वाट की वर्तमान क्षमता से वर्ष 2050 तक अभूतपूर्व दर से लगभग 5000 गीगावाट तक बढ़ाना आवश्यक है।
भारत उर्वरक और रिफाइनरियों सहित औद्योगिक क्षेत्र में अमोनिया और मेथेनाल के उत्पादन हेतु प्रतिवर्ष लगभग 60 से 70 लाख टन हाइड्रोजन की खपत करता है। उद्योग की बढ़ती मांग और परिवहन और बिजली क्षेत्र के विस्तार के कारण यह हाइड्रोजन की खपत 2050 तक बढ़कर 280 से 300 लाख टन हो सकती है।
अभी हरित हाइड्रोजन उत्पादन लागत अधिक है, वर्ष 2030 तक हरित हाइड्रोजन की लागत हाइड्रोकार्बन ईंधन जैसे कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस आदि के समान ही हो जाएगी। उत्पादन और बिक्री बढ़ने पर कीमतों में और कमी आएगी। यह भी अनुमान लगाया गया है कि भारत की हाइड्रोजन की मांग वर्ष 2050 तक पांच से छह गुना बढ़ जाएगी।
इसमें 80 फीसद भागीदारी हरित हाइड्रोजन की होगी। भारत अपने सस्ते नवीकरणीय ऊर्जा शुल्कों के कारण वर्ष 2030 तक हरित हाइड्रोजन का शुद्ध निर्यातक बन सकता है। वैसे भी पेरिस जलवायु समझौते के तहत भारत ने वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक अपनी उत्सर्जन तीव्रता को 33 से 35 फीसद तक कम करने की प्रतिबद्धता जाहिर की है। इससे भारत जीवाश्म ईंधन पर अपनी आयात निर्भरता को कम करेगा।
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने देश में हाइड्रोजन पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने के लिए एक मसौदा नीति भी जारी की है। इस उद्योग का प्रारंभिक चरण क्षेत्रीय ‘हब’ के निर्माण पर आधारित है, जो उच्च मूल्य वाले हरित उत्पादों और इंजीनियरिंग खरीद और निर्माण सेवाओं के निर्यात पर केंद्रित है। हरित हाइड्रोजन के प्रयोग से उत्पन्न होने वाली आर्थिक स्थिरता व्यावसायिक रूप से हाइड्रोजन का उपयोग करने पर उद्योग द्वारा सामना की जाने वाली सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।
ईंधन सेल तकनीक, जिसका उपयोग कारों में प्रयोग होने वाले हाइड्रोजन ईंधन को ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए किया जाता है, अब भी महंगे हैं। कारों में हाइड्रोजन ईंधन के लिए आवश्यक हाइड्रोजन स्टेशन का बुनियादी ढांचा अब भी व्यापक रूप से विकसित नहीं है। विकेंद्रीकृत हाइड्रोजन उत्पादन को एक इलेक्ट्रोलाइजर के लिए अक्षय ऊर्जा की खुली पहुंच के माध्यम से बढ़ावा दिया जाना चाहिए।