देश की राजनीति में इस समय ओबीसी और पिछड़े समाज की सक्रियता काफी ज्यादा बढ़ चुकी है। जैसे-जैसे 2024 का लोकसभा चुनाव करीब आ रहा है, इन समुदायों को अपने पाले में करने के लिए पार्टियां अलग-अलग हथकंडे अपनाने का काम कर रही है। इस लिस्ट में कांग्रेस को इस समय सबसे टॉप पर रखा जाएगा क्योंकि आगामी लोकसभा चुनाव के लिए उसकी रणनीति क्रिस्टल क्लियर हो चुकी है। उसे ओबीसी का वोट तो चाहिए ही, साथ में दलित समाज को भी अपने पाले में लाना है।
कहने को तीन हिंदी पट्टी राज्यों में कांग्रेस का इस बार सफाया हुआ है, लेकिन उससे ये निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि कांग्रेस का ओबीसी दांव फेल हो गया। असल में कांग्रेस ने कर्नाटक चुनाव के दौरान ही ऐलान कर दिया था कि वो जातिगत जनगणना के मुद्दे को जोर-शोर से उठाएगी। सिर्फ वहीं क्यों, पूरा इंडिया गठबंधन इस मुद्दे के साथ मजबूती से खड़ा रहेगा और इसी के सहारे बीजेपी के विजयी रथ को रोकने का काम होगा। असल में कांग्रेस और विपक्षी दलों को लगता है कि बीजेपी की हिंदुत्व वाली पिच पर खेलना मुश्किल है, ऐसे में ओबीसी और दलित कार्ड के जरिए ही घेरने की तैयारी है।
इसी कड़ी में काग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने जंतर-मंतर से एक बयान में कह दिया कि मेरी जाति के कारण मेरा अपमान किया जा रहा है। यहां ये समझना जरूरी है कि खड़गे मिमिक्री कांड का जिक्र कर रहे थे, उनका मानना था कि जगदीप धनखड़ को अपने अपमान को जाट अपमान के साथ नहीं जोड़ना चाहिए था। उनका तर्क रहा कि वे भी दलित समाज से आते हैं और उन्हें कई बार सदन में बोलने का मौका नहीं मिलता। उस स्थिति में क्या उन्हें भी बोल देना चाहिए एक दलित का अपमान किया गया है।
अब इस बयान को सिर्फ एक तंज के रूप में नहीं देखा जा सकता। ये नहीं भूलना चाहिए कि देश में 18 फीसदी के करीब दलित हैं, उनके लिए 84 सीटें आरक्षित हैं। इसके ऊपर इंडिया गठबधन की चौथी बैठक से एक बड़ा संदेश ये निकला है कि मल्लिकार्जुन खड़गे भी पीएम उम्मीदवार हो सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वे दलित समाज से आते हैं और उनके जरिए हिंदी पट्टी राज्यों में दलित समुदाय को इंडिया गठबंधन के पक्ष में एकमुश्त किया जा सकता है। यानी कि ओबीसी कार्ड प्लस दलित चेहरे के जरिए एक नई तरह की राजनीति को धार देने का प्रयास है।
दूसरी तरफ बीजेपी की बात करें तो उसने भी ओबीसी पॉलिटिक्स पर तो अपनी मजबूत पकड़ बना रखी है। एक तो पीएम मोदी खुद इस वर्ग से आते हैं, इसके साथ विश्वकर्मा योजना और दूसरी लाभार्थी योजनाओं के जरिए भी माहौल बनाने की पूरी कोशिश दिख रही है। इसके साथ-साथ राम मंदिर से हिंदुत्व को धार और पीएम मोदी के चेहरे के दम पर फिर सत्ता वापसी की प्रचंड कवायद भी कर दी गई है।