पश्चिम बंगाल में I.N.D.I.A. गठबंधन का स्वरूप कैसा होगा इस सवाल का जवाब अभी सामने आना बाकि है। ऐसी संभावनाएं जताई जा रही हैं कि पश्चिम बंगाल में I.N.D.I.A. गठबंधन में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस शामिल होंगे। ममता बनर्जी की पार्टी के साथ अपनी कड़वी प्रतिद्वंद्विता के चलते सीपीआई (एम) के इससे बाहर रहने की प्रबल संभावना है। टीएमसी और कांग्रेस दोनों बंगाल में गठबंधन के लिए तैयार हैं लेकिन सीट-बंटवारे पर बातचीत कठिन होने की उम्मीद है।
कांग्रेस जाहिर तौर पर पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से कम से कम छह सीटों पर चुनाव लड़ने की उम्मीद कर रही है, पर ऐसी मांग को स्वीकार करना तृणमूल कांग्रेस के लिए मुश्किल होगा। तृणमूल कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि केवल सीटों पर चुनाव लड़ने पर ध्यान केंद्रित नहीं किया जाना चाहिए बल्कि सीटें जीतना चाहिए। टीएमसी का कहना है कि कांग्रेस राज्य में अपनी मौजूदा संगठनात्मक ताकत के साथ यह लक्ष्य हासिल नहीं कर सकती है। कांग्रेस ने 2019 में बंगाल में केवल दो सीटें जीतीं, लेकिन पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व राज्य में अपनी स्ट्राइक रेट में सुधार करने के लिए उत्सुक है।
कांग्रेस का मानना है कि TMC के साथ हाथ मिलाने से उसकी सीटें बढ़ाने में मदद मिलेगी। पार्टी को उम्मीद है कि वह ममता बनर्जी को रायगंज, मालदा और मुर्शिदाबाद जैसी सीटें छोड़ने के लिए मना लेगी। कांग्रेस के कई राष्ट्रीय नेता पश्चिम बंगाल में वाम दलों के साथ गठबंधन को लेकर सतर्क हैं, खासकर 2021 के राज्य चुनाव में इसके खराब प्रदर्शन के बाद। जहां दोनों पार्टियां एक भी सीट जीतने में नाकाम रहीं थीं।
कांग्रेस का मानना है कि सीपीआई (M) भी बंगाल में बीजेपी से मुकाबला करने के लिए गठबंधन को लेकर ज्यादा आगे नहीं आ रही है। इसके अलावा पार्टी बंगाल में सहयोगी दलों के केरल में एक दूसरे से लड़ने के अंतर्विरोध से भी चिंतित है। इस मतभेद ने मतदाताओं को भ्रमित करने के अलावा उनके चुनाव अभियान को भी जटिल बना दिया है। कांग्रेस को लगता है कि बंगाल की तुलना में केरल में उसकी संभावनाएं काफी बेहतर हैं। कांग्रेस नेतृत्व केरल में पार्टी की रणनीति को प्राथमिकता देने का पक्षधर है। उसे लगता है कि वह बंगाल में तृणमूल कांग्रेस से लड़ने की तुलना में केरल में सीपीआई (एम) से कहीं अधिक प्रभावी ढंग से मुकाबला कर सकता है।
पश्चिम बंगाल के कांग्रेस नेताओं का एक वर्ग अपने व्यक्तिगत समीकरणों के कारण वाम दलों के साथ गठबंधन पर जोर दे रहा है। राज्य में वामपंथी वोट बड़ी संख्या में भाजपा की ओर चले गए हैं। बंगाल में इस घटना को ‘बाम थेके राम’ नाम दिया गया है, जिसका मतलब लेफ्ट टू राम (हिंदू समर्थक राजनीति) है।
वहीं, वाम दल भी कांग्रेस के लिए रायगंज जैसी सीटें नहीं छोड़ेंगे। कांग्रेस की एकमात्र चिंता यह है कि वाम दल उसके वोट काट रहे हैं और अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा की मदद कर रहे हैं। सीपीआई (एम) राजनीति के अपने ब्रांड को कमजोर करके भारतीय धर्मनिरपेक्ष मोर्चा (ISF) को भी मुख्यधारा में लाया। हालांकि, इसे एक गलत सलाह और रणनीतिक भूल के रूप में देखा गया था।
ममता बनर्जी सीट-बंटवारे पर मुखर रही हैं और उन्होंने संकेत दिया है कि वह कांग्रेस के साथ बातचीत के लिए तैयार हैं। पर राज्य कांग्रेस के कुछ नेता इस बातचीत को रोक रहे हैं। अधीर चौधरी की ममता बनर्जी के साथ कटुता एक रुकावट है जिसे पार्टी 2024 के चुनावों से पहले हटाना चाहती है।