पूनम पांडे
इस जगत में सांस लेने के लिए स्वच्छ वायु के बाद हर किसी को पीने के लिए पानी ही चाहिए। मगर कुछ लालची लोगों को पीने के बाद भी चाहिए खूब सारा पानी। इधर-उधर, यहां-वहां यों ही उड़ेलने के लिए भी। पानी बहाने वालों को देखकर काफी कुछ सोचने पर मजबूर होना पड़ता है। पानी के उपयोग का यह बिगड़ा हुआ तारतम्य हमारे देश में एक विडंबना है कि कोई अपनी कार धोने के लिए सैकड़ों लीटर पानी बहाता है और किसी को उपयोग के लिए एक बाल्टी पानी भी मयस्सर नहीं।
सच्चाई यह है कि पानी की उपलब्धता सुनिश्चित तो हो! जो खरीद सकता है उसके लिए पानी विदेश से भी आ रहा है, पर जो गरीब है, वह एक गिलास साफ पानी के लिए तरस रहा है। आज भारत के लगभग दो हजार कस्बों में नदियां हैं, मगर इतनी गंदी कि उन कस्बों में पीने का पानी नहीं है। हर दो दिन बाद टैंकर से पानी आता है।
पानी कुदरत की देन है। मगर बारिश का यह कीमती, चमकदार पानी अपने लिए कोई सही ठौर-ठिकाना न पाकर स्मार्ट सिटी की तंग गलियों में बदबू मारता सड़ता है। हम कभी नहीं समझते, मगर पानी हमको समझाता है। हजारों साल से एक शाश्वत सत्य दोहराया जाता रहा है कि जल संकट से उबरने का सबसे सरल उपाय है कि बारिश का पानी संचित किया जाए।
यह अनेक बार सिद्ध हो चुका है कि बारिश का पानी बेहद शुद्ध तथा लाभदायक होता है। लेकिन इस तरफ जागरूकता अभी तक काफी कम है। हम साल भर अपने घरेलू उपयोग में पानी की जरूरत महसूस करते हैं। आमतौर पर व्यक्ति रोजाना अपने लिए लगभग चालीस-पचास लीटर पानी उपयोग में लेता ही है। मगर हमारा यह उपयोग किया गया पानी जमीन में नहीं जाता। वह नाली में, नाले में फंस कर सड़ता है।
मानव सभ्यता का विकास नदियों के किनारे हुआ है। भारतीय संस्कृति में तो नदी को माता कहा ही इसलिए गया कि नदी पीने योग्य जल देती है। खेत सींचती है। मगर लालची मानव सभ्यता ने जल्दी विकास के चक्कर में फंसकर सारी नदियां विषैली कर दीं। हमारे देश की चार सौ नदियां भयंकर प्रदूषण का शिकार हैं। ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले समय में ये चार सौ नदियां नाला बन जाएंगी। भूजल का स्तर कम होने से चेन्नई जैसा महत्त्वपूर्ण शहर पानी के उपयोग को सीमित कर रहा है।
हालांकि यह कल-कारखानों की भी करतूत है कि जल स्तर कम हो गया है। कुछ जागरूक शहरों में जनता ने अपने स्तर पर पानी बचाओ समूह बना रखे हैं। ये लोग शपथ लेते हैं कि किसी भी तरह से हर व्यक्ति अपने हिस्से का कम से कम एक बाल्टी पानी रोज बचाएगा। उसके लिए कालोनी में टैंकर रखे गए हैं। लोग पूरी जिम्मेदारी के साथ वह बाल्टी उसमें भर दिया करते हैं। अब उस बचाए हुए जल से ही कालोनी के पार्क और बगीचे हरे-भरे रखे जाते हैं। धीरे-धीरे इतना अनुशासन आ गया है कि लोग हर दिन दो बाल्टी पानी बचाते हैं। मगर ऐसे उदाहरण इक्का-दुक्का ही मिलेंगे।
यह आशा की किरण तो है ही, मगर नक्कारखाने में तूती की आवाज जैसा ही एक गिलहरी प्रयास है। भारत के हजारों शहरों, कस्बों, गांवों तक यह बात पहुंचानी चाहिए कि पानी यों ही बर्बाद न किया करें। भविष्य बचाना है तो पानी को बचाने के लिए जागरूकता हर जगह होना ही चाहिए। एक बुजुर्ग महिला ने बहुत अच्छी बात कही थी कि पानी बचाने की जगह उसको बर्बाद न करने की बात सिखाना चाहिए। कहीं एक लोकगीत भी बज रहा था, जिसका बहुत ही प्यारा संदेश यह था कि पानी को व्यर्थ न फेंकने से अपार समृद्धि आती है। पानी बचाने से खुशहाली, संतुलन, स्वस्थ दिमाग की बेहद प्रेरक बात उस गीत में अभिव्यक्त हो रही थी।
आंकड़े बताते हैं कि संसार में पानी की लगभग एक करोड़ बोतलें खरीदी जाती हैं। कई बार आधा बोतल पानी पीकर फेंक दी जाती है। यह जल का अपमान है। हम सब एक टालने वाली मानसिकता के आदी हो गए हैं। हम गमले, बगीचे आदि की सिंचाई के लिए रसोई और स्नानघर का पानी उपयोग में नहीं लेते। हर दिन लाखों लीटर पानी गटर में चला जाता है, मगर धरती तरस जाती है कि पानी उसके पास वापस नहीं आता। घरेलू उपयोग में हम नब्बे फीसद पानी फेंक दिया करते हैं।
इसका सबसे शर्मनाक उदाहरण है आरओ का प्रयोग। आरओ इस तरह काम करता है कि दस लीटर पानी साफ करना है तो पच्चीस लीटर पानी बर्बाद होता है। वह पानी जाता कहां है? गटर में। पानी का इतना अपमान। जिस भारत देश में हर महीने जल की पूजा या अर्चना का कोई न कोई त्योहार मनाया जाता है, जहां बालक के जन्म से लेकर बुजुर्ग की मौत तक जल का संस्कार होता है, वहीं लोग बेहद निर्ममता के साथ जल का दुरुपयोग करते हैं। पानी की कीमत न समझने, उसे तरह-तरह से बर्बाद करने का परिणाम यह है कि पूरे देश में आज से बीस साल पहले जो जल उपलब्धता थी, वह काफी कम हो गई है।