जयंतीलाल भंडारी
नए वर्ष में व्यापार-कारोबार की सरलता के और उपाय करने होंगे। लोगों की क्रयशक्ति बढ़ाकर घरेलू बाजार को बढ़त देने के मद्देनजर देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 8-10 रुपए प्रति लीटर की कमी करना वांछनीय है। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कटौती इसलिए भी उपयुक्त है, क्योंकि वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमत लगातार घटते हुए 80 डालर प्रति बैरल से कम हो गई है।
इन दिनों प्रकाशित हो रही वैश्विक परिदृश्य संबंधी रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि वर्ष 2024 में वैश्विक मंदी और भू-राजनीतिक तनाव बढ़ने की आशंका के बीच दुनिया के विभिन्न देशों को अपनी विकास दर के मद्देनजर घरेलू मांग और निवेश बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। हाल ही में प्रकाशित विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में आगामी वर्ष में प्रमुख रूप से घरेलू बाजार में मांग और निवेश बढ़ाने के मद्देनजर चार जरूरतें उभरती दिखाई दे रही हैं।
एक, खाद्यान्न महंगाई पर नियंत्रण। दो, रोजगार के मौकों में बढ़ोतरी। तीन, सरकारी योजनाओं से लोगों की मुठ्ठियों में पहुंचते हुए धन को बाजार में खर्च करने के लिए प्रवृत्त करना और चार, पेट्रोल तथा डीजल की कीमतों में उपयुक्त कमी करके लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाना।
हालांकि इस समय देश के बाजारों में मुस्कुराहट का ग्राफ बढ़ा हुआ है, संवेदी सूचकांक और निफ्टी नई ऊंचाइयों पर पहुंच गए हैं। 11 दिसंबर को सेंसेक्स सत्तर हाजार अंकों की अभूतपूर्व ऊंचाई पर पहुंच गया। हाल ही में प्रकाशित एनआइक्यू इंडिया रिपोर्ट के मुताबिक ‘एशिया-प्रशांत क्षेत्र के बाजारों की तुलना में भारत में हाल के महीनों से बाजारों में तेज सुधार आगे बढ़े हैं।
इस समय देश की कंपनियों का मुनाफा भी बढ़ गया है। घरेलू निवेशकों के दम पर शेयर बाजार लगातार बढ़ रहा है। नवंबर 2023 में देखा गया कि भारतीय कंपनियों का विकास अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा है। हमारी कंपनियों की बाजार हिस्सेदारी चार खरब डालर का स्तर छू रही है। भारतीय कंपनियों के दुनिया की बाजार हिस्सेदारी में चौथे स्थान की ऊंचाई पर पहुंचने के पीछे छोटी और मझोली फर्मों का बढ़ता दबदबा प्रमुख कारण है।
बाजारों में तेज सुधार से चालू वित्तवर्ष में सरकार की कुल कर प्राप्तियां बजट अनुमान से काफी अधिक रहने की संभावना है। वित्तवर्ष 2023-24 में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर का सकल संग्रह 10.45 फीसद बढ़कर 33.61 लाख करोड़ रुपए पहुंच सकता है। इनमें से सरकार ने चालू वित्तवर्ष के लिए कार्पोरेट और व्यक्तिगत आयकर से प्राप्त होने वाला राजस्व 10.5 फीसद बढ़कर 18.23 लाख करोड़ रुपए रहने का अनुमान लगाया है।
इसी तरह जीएसटी संग्रह 12 फीसद बढ़ने का अनुमान है। लेकिन इन सब बाजार अनुकूलताओं के बाद भी वर्ष 2024 में घरेलू बाजार में मांग बनाए रखने की चुनौती का सफलतापूर्वक सामना करने के लिए रणनीतिक प्रयास करने होंगे। हालांकि वर्ष 2023 की शुरुआत से ही जहां दुनिया वैश्विक खाद्यान्न संकट और वैश्विक महंगाई की भारी पीड़ाओं का सामना करती दिखाई दे रही है, वहीं ऐसी प्रतिकूलताओं के बीच भी भारत के बाजारों में महंगाई पर नियंत्रण रहा और घरेलू बाजार बढ़ते रहे हैं। लेकिन अब वर्ष 2024 में देश में खाद्य कीमतों में इजाफा चुनौती बन सकता है।
इस परिप्रेक्ष्य में उल्लेखनीय है कि 12 दिसंबर को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा प्रकाशित उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीबीआइ) आधारित खुदरा महंगाई नवंबर 2023 में बढ़कर 5.55 फीसद रही, जबकि यह अक्तूबर में 4.87 फीसद थी। यह वृद्धि मुख्यतया सब्जियों, फलों, दालों, चीनी की कीमतों में इजाफे के कारण हुई है।
इसके साथ ही खुदरा महंगाई की दर लगातार पचास महीनों से मध्यम अवधि के चार फीसद के लक्ष्य से अधिक बनी हुई है। रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने महंगाई बढ़ने की चिंताओं के मद्देनजर एक बार फिर रेपो रेट को 6.5 फीसद पर स्थिर रखने का फैसला किया है। यह लगातार पांचवीं बार है, जब रेपो रेट को अपरिवर्तित रखा गया है।
इसके साथ ही सरकार ने इस महीने रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें नियंत्रित रखने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। 31 मार्च, 2024 तक प्याज के निर्यात पर रोक लगाई गई है। इससे पहले सरकार ने चावल और चीनी के निर्यात पर भी उपलब्धता का हवाला देते हुए प्रतिबंध लगाया था, जो अभी तक जारी है।
नए वर्ष में बाजारों में मांग बनाए रखने के लिए खाद्य महंगाई पर नियंत्रण के और अधिक प्रयास जरूरी होंगे। यद्यपि इस वर्ष देश में ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में रोजगार बढ़ने से बाजार में सुधार आया है। लेकिन वर्ष 2024 में रोजगार वृद्धि पर अधिक ध्यान देना होगा। असंगठित और संगठित दोनों क्षेत्रों में रोजगार की अच्छी स्थिति बनाए रखने की जरूरत होगी।
उल्लेखनीय है कि मनरेगा के तहत चालू वित्तवर्ष में काम की मांग तेज बनी हुई है। मनरेगा वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल से अक्तूबर 2023 तक इस योजना में करीब 77,634 करोड़ रुपए व्यय हुए। यह व्यय इस योजना के लिए आबंटित धन से अधिक है। अप्रैल से अक्तूबर 2023 के अंत तक करीब 206.9 करोड़ कार्यदिवसों का सृजन किया गया, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 188.9 करोड़ कार्यदिवसों का सृजन किया गया था। अब आगामी वर्ष में भी ऐसी स्थिति बनाए रखना जरूरी होगा। इससे ग्रामीण क्रयशक्ति बढ़ेगी। ग्रामीण मांग और ग्रामीण बाजार की तेजी में भी इजाफा होगा।
हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि चालू वर्ष में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में लाभार्थियों के पचास करोड़ से अधिक जनधन खातों में सरकारी योजनाओं का जो धन आया, उसे बड़ी संख्या में लाभार्थी बाजार में खर्च करते दिखाई दिए, इससे बाजारों में मांग बढ़ी है। ऐसे में देश में नए वर्ष में विभिन्न वर्गों में उपभोक्ता आशावाद बनाए रखना होगा, ताकि वे अपनी कमाई का बाजार में प्रवाह बनाए रखें।
हमें रेटिंग एजंसी मूडीज की ‘ग्लोबल मैक्रो आउटलुक 2024’ रपट में की गई इस टिप्पणी पर भी ध्यान देना होगा कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका की तुलना में भारत में कम प्रतिबंधात्मक व्यापार नीतियां, भारत के बाजार को आगे बढ़ा रही हैं।
नए वर्ष में व्यापार-कारोबार की सरलता के और उपाय करने होंगे। लोगों की क्रयशक्ति बढ़ाकर घरेलू बाजार को बढ़त देने के मद्देनजर देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 8-10 रुपए प्रति लीटर की कमी करना वांछनीय है। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कटौती इसलिए भी उपयुक्त है, क्योंकि वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमत लगातार घटते हुए 80 डालर प्रति बैरल से कम हो गई है।
12 दिसंबर को कच्चे तेल की कीमत 75.60 डालर प्रति बैरल हो गई। जहां खाड़ी देशों में कच्चे तेल की कीमत में कमी आई है, वहीं अमेरिकी कच्चे तेल की कीमत में भी गिरावट आ चुकी है। जनवरी 2024 में खाड़ी देशों का कच्चा तेल 70 डालर प्रति बैरल तक आ सकता है। जहां कच्चे तेल के दाम में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है, वहीं यूक्रेन युद्ध के दौरान जो नुकसान पेट्रोलियम कंपनियों को हुआ था, वह भी पूरा हो चुका है। तमाम सरकारी पेट्रोलियम कंपनियां फायदे में हैं।
यह भी महत्त्वपूर्ण है कि भारत पिछले डेढ़ साल से अधिक समय तक रूस से कच्चे तेल की खेप तुलनात्मक रूप से कम दामों पर प्राप्त करता रहा है और अब फिर दिसंबर 2023 में दुबई में काप-28 के इतर संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और भारत की तेल कंपनियों के अधिकारियों के बीच हुई बैठक के बाद यूएई से छूट के साथ कच्चा तेल वर्ष 2024 से मिलने की उम्मीद है।
ऐसे परिदृश्य के मद्देनजर जनवरी 2024 से सरकार और पेट्रोलियम कंपनियां पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी करके लोगों को राहत दे सकती हैं। इससे देश में महंगाई कम होगी। इससे लोगों की क्रयशक्ति बढ़ने से मांग में वृद्धि होगी। साथ ही, घरेलू बाजार ऊंचाई पर रहते हुए अर्थव्यवस्था को गतिशील करता रहेगा।